Justice Mahendra Maheshwari, RAJASTHAN High Court, Retired

जरूरी नहीं कि दहेज प्रताडऩा के मामले में सभी आरोपियों की गिरफ्तारी हो, एफआईआर दर्ज होने के बाद छह माह से ज्यादा जांच लम्बित नहीं हो। चोरी का माल बरामद न होने तथा मुल्जिम के नहीं मिलने के मामलों में पहली बार एफआर मंजूर नहीं करें अदालतें।
JAIPUR. राजस्थान के न्यायिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण मिसाल कायम करने वाले जस्टिस महेन्द्र माहेश्वरी 30 मार्च को हाईकोर्ट की जयुपर पीठ से सेवानिवृत्त हो गए। अजमेर के सिविल लाइन निवासी जस्टिस माहेश्वरी से सेवानिवृत्त के मौके पर एक अप्रैल को मेरा संवाद हुआ। जस्टिस माहेश्वरी का कहना रहा कि साधारण वकील से हाईकोर्ट के न्यायाधीश तक का उनका सफर शानदार रहा है। उनका हमेशा प्रयास रहा कि जरुरतमंद व्यक्ति को न्याय मिले और अपराधी को सजा। इसी उद्देश्य को लेकर उन्होंने हाईकोर्ट में न्यायाधीश की भूमिका निभाई। 1982 में उन्होंने अजमेर के जिला न्यायालय में एडवोकेट एसके वर्मा के साथ वकालत शुरू की थी।

1996 में उनका चयन एडीजे के पद पर हुआ। 2003 में अस्थायी तौर पर डीजे बने के बाद जयपुर, हनुमानगढ़ आदि की अदालतों में काम किया और फिर स्थायी तौर पाली के जिला एवं सत्र न्यायाधीश का पद संभाला। टोंक, दौसा, जयपुर, उदयपुर, जोधपुर आदि में डीजे रहने के बाद 21 जून 2013 को हाईकोर्ट में न्यायाधीश के पद पर नियुक्ति मिली। राजस्थान हाईकोर्ट की जोधपुर स्थित मुख्य और जयपुर स्थित पीठ दोनों में उन्हें काम करने का अवसर मिला। जस्टिस माहेश्वरी के पुत्र अनीष माहेश्वरी वर्ष 2010 से सुप्रीम कोर्ट में पैरवी कर रहे हैं। हाईकोर्ट के न्यायाधीश के पद पर रहते हुए जस्टिस माहेश्वरी ने आम लोगों के हित में अनेक फैसले किए हैं। तीन प्रमुख फैसले जो आज मिसाल बन गए हैं, उनका ब्यौरा इस प्रकार है।

-दहेज प्रताडऩा में सभी आरोपियों की गिरफ्तारी जरूरी नहीं:
शर्मिष्ठा बनाम राज्य सरकार के प्रकरण में जस्टिस माहेश्वरी का आदेश रहा कि आईपीसी की धारा 498ए में मुकदमा दर्ज होने के बाद यह जरूरी नहीं कि पुलिस सभी आरोपियों को गिरफ्तार करे और कोर्ट जेल भेज दे। दहेज प्रताडऩा के मामलों में प्रताडऩा और डिमांड को सुनिश्चित किया जाना चाहिए। शादी का मतलब यह नहीं कि विवाहिता अपने ससुराल के सभी सदस्यों को आरोपी मान लें। पुलिस के जांच अधिकारी को भी यह देखना चाहिए कि किस आरोपी के खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं। इसी प्रकार जिला न्यायाधीश को आरोपी को जेल भेजने से पहले पत्रावली का गहन अध्ययन करना चाहिए। जिला न्यायाधीश भी यह सुनिश्चित करे कि असली मुल्जिम को ही जेल भेजा जाए। गंगानगर के इस प्रकारण में जस्टिस माहेश्वरी ने जो आदेश दिया, उसका प्रदेशभर में व्यापक असर हुआ और अनेक निर्दोष लोगों को राहत मिली।
जांच 6 माह से ज्यादा लम्बित न हो:
एफआईआर दर्ज होने के बाद पुलिस थानों पर वर्षों तक जांच लम्बित रहती है। पुलिस की ऐसी प्रवत्ति को देखते हुए जस्टिस माहेश्वरी ने 11 अप्रैल 2016 को प्रदेश के तत्कालीन पुलिस महानिदेशक मनोज भट्ट को जोधपुर की मुख्य पीठ में तलब किया। जस्टिस माहेश्वरी ने आदेश दिया कि एफआईआर दर्ज होने के 6 माह के अंदर जांच का काम पूरा हो। यदि किन्हीं परिस्थितियों में जांच अधिकारी बदला जाता है तो पुराने जांच अधिकारी पर कार्यवाही होनी चाहिए। जांच के नाए मामले को लम्बित नहीं रखा जा सकता। जस्टिस माहेश्वरी के आदेश के बाद पुलिस महानिदेशक ने सभी पुलिस अधीक्षकों को छह माह में जांच पूरी करने के आदेश दिए। जस्टिस माहेश्वरी के इस फैसले से लोगों को राहत मिली।
पुलिस की एफआर मंजूर नहीं:
आम तौर पर देखा गया है कि चोरी डकैती, ब्लाइंड मर्डर आदि के मामलों में पुलिस माल और मुल्जिम की बरामदगी नहीं होने पर कोर्ट में एफआर प्रस्तुत कर देती है। जबकि अधिकांश मामलों में पीडि़त पक्ष पुलिस की जांच से संतुष्ट नहीं होता है। पुलिस की ऐसी प्रवृत्ति में सुधार के लिए ही जस्टिस माहेश्वरी ने आदेश दिया कि चोरी, डकैती, हत्या जैसे मामलों में बरामदगी नहीं होने पर एफआर मंजूर नहीं की जाए। संबंधित मजिस्ट्रेट पुलिस को दोबारा से जांच के निर्देश दें। मजिस्ट्रेट को यह लगे कि अब वाकई माल और मुल्जिम की बरामदगी नहीं हो सकती है तथा पुलिस हर एंगल से प्रयास कर लिए हैं तभी एफआर मंजूर की जाए। जस्टिस माहेश्वरी के इस आदेश से भी पुलिस की प्रवृत्ति में सुधार आया तथा लोगों को राहत मिली।

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