Rahul's style on the tour of Gujarat remembered his grandmother

नई दिल्ली। राहुल गांधी जिस तरीके से इन दिनों मुखर हो रहे हैं उसे देखकर इंजरजेंसी के बाद इंदिरा गांधी ने जिस तरीके से वापसी की थी उसी कि याद दिला दी है। जिस तरह की शैली उन्होंने इन दिनों अफना रकी है वो वैसे उनकी शैली है नहीं मगर लगता है कि यह शायद उनको लगता है कि अब कांग्रेस का अध्यक्ष पद मिलने वाला है तो पार्टी की सारी जिम्मेदारी मेरे कंधों पर है और अब शायद वह खुलकर भी सामने आने में लगे हैं। भाजपा भी पहले उनके बयानों का मजाक उड़ाया करती थी मगर इन दिनों राहुल के भाषणों और बयानों से भाजपा को तकलीफ महसूस होने लगी है। इसी के चलते भाजपा ने राहुल को उनके चुनावी क्षेत्र अमेठी में घेरने का प्रयास किया ताकि राहुल को गुजरात में धुआंदार प्रचार करने से रोका जाए। ऐसा ही हाल इन्दिरा गांधी का इमरजेन्सी के बाद था जब इमरजेंसी की वजह से मिली करारी हार के बाद इंदिरा गांधी लंदन दौरे पर थीं. एअरपोर्ट पर इंदिरा गांधी का इंतजार कर रहे एक पत्रकार ने सवाल पूछा, इमरजेंसी से आपको क्या मिला?

इंदिरा ने व्यंग्यात्मक लहजे में जवाब देते हुए कहा, हां इन 21 महीने में हमने देश के हर वर्ग के लोगों को खुद से अलग कर दिया. संसद के केंद्रीय हॉल में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उस स्पीच को याद करते हुए कहा, ऐसी स्थिति में खुद में सुधार करना खुद के पक्षों के समर्थन से बेहतर होता है. 30 साल बाद कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी अपनी दादी इंदिरा की किताब से कुछ पन्ने उधार लेते हुए साल 2019 के आम चुनाव की तैयारी कर रहे हैं. साल 2014 में उन्होंने भी करारी हार का सामना किया है. गांधी परिवार के वारिस लगातार ये स्वीकार कर रहे हैं कि यूपीए-2 में घमंड आ गया था. यह उनकी पार्टी की हार के कारणों में से एक था. वडोदरा में व्यापारियों और बुद्धिजीवियों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, साल 2014 की हार पार्टी की मदद नहीं कर सकी. उन्होंने कहा, इतनी बुरी तरह हारे कि पिट-पिटकर अक्ल आ गई. गुजरात में प्रचार के दौरान उन्होंने कहा, ‘बीजेपी-आरएसएस की तरह मेरी विचारधारा नहीं है. मैं उनसे लडूंगा. लेकिन मैं भाजपा-आरएसएस मुक्त भारत के बारे में नहीं सोच सकता.’ इसे बीजेपी के कांग्रेस मुक्त नारे के खिलाफ राहुल की प्रतिक्रिया के तौर पर देखा जा रहा है. मतदाताओं द्वारा नकारे गए राजनैतिज्ञों को भारत में कई बार माफी मांगकर वापसी करते देखा गया है.

अब राहुल गांधी एक बार फिर से उसे ही दोहरा रहे हैं. साल 1998 में राष्ट्रीय लोक दल के नेता अजीत सिंह बागपत से लोकसभा का चुनाव हार गए थे. वहीं, चौधरी चरन सिंह के शागिर्द सोमपाल शास्त्री को भी हार का सामना करना पड़ा था. लेकिन 13 महीने बाद हुए उपचुनाव में अजीत सिंह ने बड़े अंतर से चुनाव में जीत हासिल की. कुछ वरिष्ठ नेताओं को जब किसी उम्मीदवार से कड़ी टक्कर मिलती है तो वह ‘आखिरी मौका’ का हवाला देते हैं. इसके बाद एक बुजुर्ग हो रहे नेता की आखिरी ख्वाहिश के तौर पर चुनावी जीत देने की चर्चा जोर पकड़ लेती है. आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने साल 2015 के चुनाव में भी 49 दिन की सरकार से इस्तीफा देने को गलती बताते हुए दोबारा 5 साल की सरकार के लिए प्रचार किया था. इसके बाद उन्हें शानदार जीत मिली. पिछले हफ्ते जीएसटी के नियमों में परिवर्तन के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अर्थव्यवस्था में निराशा फैलाने वाले लोगों पर निशाना साधा था. उन्होंने कहा था, हम परिवर्तन चाहते हैं. हम लकीर के फकीर नहीं हैं. वहीं विपक्ष में मौजूद राहुल गांधी अपनी पार्टी के भीतर संरचनात्मक और व्यवहारिक खामियों को स्वीकार कर रहे हैं और खुद को नरेंद्र मोदी के सामने मजबूत विपक्षी नेता के तौर पर प्रस्तुत कर रहे हैं।

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