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नई दिल्ली : मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार का पक्ष रखने के लिये विधि अधिकारियों की अपने यहां नियुक्ति पर सवाल उठाने वाली जनहित याचिका खारिज कर दी है। इसके साथ ही, शासकीय वकीलों की नियुक्ति की प्रक्रिया के मामले में राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में दखल देने की गुहार भी अस्वीकार कर दी गयी है। उच्च न्यायालय की इंदौर पीठ के न्यायमूर्ति पीके जायसवाल और न्यायमूर्ति वीरेंदर सिंह ने संबंधित पक्षों की दलीलें सुनने के बाद स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता महेश गर्ग की जन​हित याचिका खारिज कर दी।

याचिका में आरोप लगाया गया था कि उच्च न्यायालय में प्रदेश सरकार की नुमाइंदगी के लिये विधि अधिकारियों की नियुक्ति सत्तारूढ़ दल (भाजपा) की मनमर्जी के मुताबिक की गयी है और चयन प्रक्रिया में वकालत के न्यूनतम अनुभव के मापदंड और अन्य तय पैमानों की सरासर अनदेखी की गयी है। अदालत ने हालांकि गर्ग की याचिका खारिज करने के निर्णय में उच्चतम न्यायालय की एक टिप्पणी का हवाला दिया, जिसमें विधि अधिकारियों की नियुक्ति प्रक्रिया को अपेक्षाकृत ज्यादा पारदर्शी तथा निष्पक्ष बनाने के लिये राज्य सरकारों द्वारा चयन तंत्र में उचित सुधार किये जाने और जरूरत पड़ने पर नियम-कायदों में बदलाव पर भी बल दिया गया है।

युगल पीठ ने कहा कि विधि अधिकारियों की नियुक्ति के तंत्र में सुधार के संबंध में शीर्ष न्यायालय के जारी निर्देशों पर राज्य सरकार को विचार करना है। इसके साथ ही, उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता की यह गुहार भी खारिज कर दी कि वह विधि अधिकारियों की नियुक्ति की प्रक्रिया में बदलाव के लिये प्रदेश सरकार को निर्देशित करे। अदालत ने कहा कि इस सिलसिले में उसके द्वारा कोई निर्देश देना प्रदेश सरकार के काम-काज में दखलंदाजी करना होगा। उधर, प्रदेश सरकार ने इस याचिका को निराधार और सत्य से परे बताते हुए कहा कि विधि अधिकारियों की नियुक्ति के लिये 27 फरवरी 2013 को बाकायदा दिशा-निर्देश जारी किये गये हैं। इसके साथ ही, सरकारी वकीलों की नियुक्ति तय मापदंडों के मुताबिक ही की गयी है। प्रदेश सरकार की ओर से उच्च न्यायालय को यह भी बताया गया कि अदालती मामलों में शासकीय वकीलों के प्रदर्शन की लगातार निगरानी और समीक्षा की जा रही है।

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