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जयपुर। जलदाय विभाग में चार सालों से फाइलों में घूम रहे दो पब्लिक प्राईवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) प्रोजेक्ट को बड़े ताले का इंतजार है। लंबे समय से फाइलों में दौड़ रहे ये 2165 करोड़ की लागत के ये प्रोजेक्ट्स अब शायद ही धरातल पर उतरेंगे। दरअसल राजस्थान वाटर ग्रिड प्रोजेक्ट के तहत बाड़मेर और जैसलमेर जिले को लेकर राज्य सरकार की ओर से पीपीपी मोड पर सी-वाटर बेस्ड डिसलीनेटेड वाटर सप्लाई प्रोजेक्ट शुरू करने की योजना बनाई थी। टाटा पावर कंपनी की ओर से इस प्रोजेक्ट की 1800 करोड़ की डीपीआर भी तैयार की गई थी, जिसके तहत गुजरात के मूंदड़ा से समुद्र के खारे पानी को आरओ के माध्यम से ट्रीट कर बाड़मेर और जैसलमेर में पेयजल की सप्लाई किया जाना था। लेकिन पिछले चार सालों से यह प्रोजेक्ट राज्य सरकार और टाटा पावर कंपनी के बीच शर्तों में ही उलझकर दम तोड़ रहा है।

पिछले एक साल से यह इस प्रोजेक्ट को लेकर राज्य सरकार और जलदाय विभाग की ओर से ठंडे बस्ते में डाल रखा है। इसी प्रकार ढेलावास ट्रीटमेंट प्लांट से जुड़े 125 एमएलडी रिसाइकल और रियूज वाटर प्रोजेक्ट का भी ये ही हाल है। 125 एमएलडी क्षमता के रिसाइकल वाटर प्रोजेक्ट की डीपीआर मैसर्स विश्वराज कंपनी की ओर से तैयार की गई थी। विश्वराज कंपनी की शर्तों के अनुसार राज्य सरकार को रोजाना 125 एमएलडी रिसाइकल पानी के उपयोग की गारंटी देने के साथ ही भुगतान की जिम्मेदारी लेनी थी। रिसाइकल पानी की दरें ज्यादा होने के कारण यह प्रोजेक्ट भी जलदाय विभाग, एलएसजी और विश्वराज कंपनी के बीच उलझकर दम तोड़ रहा है। पिछले एक साल से जलदाय विभाग से जुड़ा यह पीपीपी प्रोजेक्ट भी ठंडे बस्ते में है।

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