लखनऊ। आखिरकार रविवार को योगी आदित्यनाथ के रुप में उत्तरप्रदेश को नया मुख्यमंत्री मिल ही गया। कांशीराम स्मृति उपवन में आयोजित एक समारोह में योगी आदित्यनाथ ने सीएम तो केशव मौर्य व दिनेश शर्मा ने डिप्टी सीएम तथा 46 अन्य ने मंत्री पद की शपथ ली। इस दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी सहित 9 राज्यों के सीएम उपस्थित थे। समारोह के दौरान सपा के मुलायम सिंह व अखिलेश यादव भी मौजूद रहे। सीएम पद की शपथ लेने के बाद आदित्यनाथ ने लालकृष्ण आडवाणी के चरण छूकर आशीर्वाद लिया। योगी आदित्यनाथ की टीम में श्रीकांत शर्मा, सतीश महाना, राजेश अग्रवाल, लक्ष्मीनारायण चौधरी, सुरेश खन्ना, सत्यदेव पचौरी, जयप्रताप सिंह, ओमप्रकाश राजभर, स्वामी प्रसाद मौर्य, जयप्रकाश सिंह, सिद्धार्थनाथ सिंह, नंदगोपाल नंदी, दारा सिंह चौहान, एसपी सिंह बधेल, धरमपाल सिंह, रमापति शास्त्री, बृजेश पाठक, राजेन्द्र सिंह, मुकुल बिहारी, आशुतोष टंडन व रीता बहुगुणा शामिल हैं। ऐसा पहली बार हुआ जब यूपी में एक साथ दो-दो डिप्टी सीएम बनाए गए। कैबिनेट में पूर्व क्रिकेटर मोहसिन रजा को शामिल किया गया। इधर योगी आदित्यनाथ ने सभी जिलों के एसएसपी से कहा कि जीत के जश्न नाम पर आमजन को बाधा या उत्पात किसी भी दशा में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। गौरतलब है कि आदित्यनाथ की कट्टर हिंदूवादी छवि व भाजपा के फायर ब्रांड नेता है। मंदिर आंदोलन से जुड़े होने के कारण वे राम मंदिर का मुद्दा उठाते रहे हैं। इसी तरह उन्होंने पश्चिमी यूपी से लेकर पूर्वांचल तक पार्टी का प्रचार किया। उन पर भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगे तो गुटबंदी से दूर रहे। गोरखपुर से 5 मर्तबा सांसद रहने के कारण विधायिका का अनुभव रहा। जो उनके सीएम पद तक के सफर के लिए आसान रहा। वैसे यूपी में सीएम का पद कांटों भरा ताज साबित हो सकता है। उनके सामने कई चुनौतियां है। जिनका सामना योगी आदित्यनाथ को करना है। केंद्र सरकार की योजनाओं को आमजन पहुंचाने, नौकरशाही पर पकड़ बनाने, हिंदुत्व की उम्मीदें, अल्पसंख्यकों के हित, अति पिछड़ा, दलित समेत सभी वर्ग को साथ लेकर चलने की चुनौतियां प्रमुख होंगी। हालांकि यह भी कहा जा रहा है कि योगी को प्रशासनिक अनुभव नहीं है। ब्यूरोक्रेसी गुमराह कर सकती है। साधु-संन्यासी का प्रभाव के साथ उन पर ठाकुरवादी होने का आरोप लगता रहा है। ऐसे में अन्य वर्ग नाराज हो सकते हैं। वहीं उनके बोल अक्सर विवादित हो जाते हैं। जिन पर अब आदित्यनाथ को काबू रखना होगा।

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