नई दिल्ली। देश में 13 अप्रेल के दिन को बैसाखी के त्योहार के रुप में मनाया जाता है। लेकिन भारतीय सेना ने इस दिन को अपने अदम्य पराक्रम के जरिए यादगार बना दिया था। यही वो दिन है जब भारतीय सेना के रणबांकुरों ने अपने साहस और सूझबूझ के बल पर विश्व के सबसे ऊंचे रणक्षेत्र कहे जाने वाले सियाचिन ग्लेसियर पर अपना कब्जा जमाया। आज से 33 साल पहले वर्ष 1984 में भारतीय सेना ने सियाचिन पर अपना कब्जा जमाने के लिए ऑपरेशन मेघदूत को लॉच किया। 80 के दशक में पाकिस्तान ने सियाचिन पर कब्जे को लेकर अपनी तैयारी शुरू कर दी। वहीं भारत ने भी अपनी तैयारियों के मद्देनजर जवानों को अंटार्कटिका भेज दिया। इसका मकसद बर्फीले जीवन के तर्जुबों को हासिल करना था। 1984 में पाकिस्तान ने बर्फ में काम आने वाले साजो सामानों के लिए लंदन की कंपनी को ठेका दिया। तभी भारत ने 13 अप्रेल 1984 को सियाचिन पर अपना कब्जा करने के लिए ऑपरेशन मेघदूत शुरू कर दिया। पाकिस्तान ने सियाचिन पर कब्जे के लिए 17 अप्रेल से ऑपरेशन शुरू करने का निर्णय लिया। जबकि भारत ने समय से पहले ही कार्रवाई कर उसे अंचभें में डाल दिया। भारत ने ऑपरेशन मेघदूत के तहत सैनिकों को वायुसेना के विमानों से ऊंचाई वाले एयरफील्ड तक पहुंचाया। यहां से एमआई-17, एमआई-8, चेतक व चीता हेलीकॉप्टरों से सैनिकों को ग्लेसियर की चोटियों तक पहुंचा दिया गया। यहां कुमाऊं रेजिमेंट की प्लाटून के कैप्टन संजय कुलकर्णी के नेतृत्व में जांबाजों ने तिरंगा लहरा दिया। पाकिस्तानी फौज जब यहां पहुंची तो उन्हें पहले ही भारतीय जांबाज सियाचिन, साई लॉ, सलतोरो ग्लेशियर, बिलाफोंड लॉ दर्रे पर कब्जा जमाए नजर आए। जिससे पाकिस्तानी सैनिक मायूस होकर लौटने को मजबूर हो गए। तभी से भारतीय सेना सियाचिन की दुर्गम कहे जाने वाली पहाडिय़ों पर बेहद मुश्किल हालातों में भी पूरी तरह मुस्तैद बैठी है। बता दें सियाचिन ग्लेसियर विश्व का सबसे ऊंचा और ठंडा रणक्षेत्र है।
-जनप्रहरी की ताजातरीन खबरों के लिए यहां लाइक करें।


































