– राकेश कुमार शर्मा
जयपुर। कहा जाता है जो पेड जितना फलदार होता है वह उतना ही झुका हुआ होता है। यानी जिनके पास जितनी ज्यादा जिम्मेदारी होती है उन्हें ही उतना ही नम्र होना चहिए, लेकिन प्रदेश की भाजपा सरकार के विधायकों के बयान और काम इसके बिल्कुल उलट दिख रहे हैं। कोई अधिकारियों को धमका रहा है तो कोई अजीब बयान दे रहा है और कोई सीधे गाली गलौच ही कर रहा है। विधायकों के ये बेलगाम बोल उनकी पार्टी और सरकार दोनों के लिए ही परेशानी खडी कर रहे है। यही कारण रहा कि हाल में दो विधायकों को तो मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने फ टकार भी लगाई और कडी हिदायत दी कि विपक्ष के प्रति संयमित भाषा का इस्तेमाल करें। जिस दिन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने मुख्यमंत्री के रूप में अपने दूसरे कार्यकाल की कमान सम्भाली थी उस दिन उन्होंने प्रदेश की जनता का हाथ जोड कर अभिवादन किया था और कहा था कि प्रदेश की जनता ने 163 सीटें जीता कर जो समर्थन दिया है, उससे वे अपने ऊपर बहुत बडी जिम्मेदारी का अनुभव कर रही हैं। उन्होंने बहुत नम्रता से इस जनादेश को स्वीकार करते हुए काम करने का भरोसा दिलाया था। आज सवा दो वर्ष के कार्यकाल में वे और उनके ज्यादातर मंत्री तो अपने व्यवहार से उस भरोसे को कायम रखे हुए है, लेकिन पार्टी के विधायकों को लगता है कि यह सफलता उन्हें पच नहीं रही है। पार्टी के सात विधायक प्रहलाद गुंजल, भवानी सिंह राजावत, कंवरलाल, अशोक डोगरा, धनसिंह रावत, कैलाश चौधरी और ज्ञानदेव आहूजा के अब तक अपने बेलगाम बयानों और हरकतों ंके कारण पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचा चुके हैं। ये वे हैं जिनके बयान और हरकतें जनता के सामने आ गई। इनके अलावा भी कुछ हैं, जिनके व्यवहार को ले कर कई तरह की चर्चा सामने आती रहती हैं। जहां तक कार्रवाई का सवाल है, इनमें से सिर्फ एक प्रहलाद गुंजल के खिलाफ पार्टी ने अभी तक निलम्बन की कार्रवाई की और वह निलम्बन भी कुछ समय पहले ही वापस ले लिया गया।
प्रहलाद गुंजल ही थे जिनके खिलाफ सबसे पहले इस तरह का मामला सामने आया था। कोटा जिले के मुख्य चिकित्सा व स्वास्थ्य अधिकारी को उन्होंने जिस ढंग से धमकाया था, वह पूरे देश में चर्चा का विषय बना और पार्टी को उन पर कडी कार्रवाई करनी पडी। हालांकि इस कार्रवाई के पीछ जहां से वे विधायक है ,उस कोटा शहर की भाजपा की राजनीति भी एक बडा कारण था। लेकिन उन्होंने जो किया उसे किसी भी तरह से उचित नहंी ठहराया जा सकता।इसके कुछ दिन बाद ही कोटा में उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी भवानी सिंह राजावत का वो वीडियो सामने आय,ा जिसमें वे वोट देेने के लिए एक बस्ती के वोटरों को धमका रहे थे। फि र एक बयान में उन्होंने हेलमेट की उपयोगिता पर ही सवाल खडे कर दिए। हालांकि इस सबके बावजूद पार्टी नेे उन पर कोई कार्रवाई नहीं की।
इसी तरह कुछ समय पहले बूूंदी के विधायक अशोक डोगरा अपने क्षेत्र के बिजली विभाग के इंजीनियर को कुछ उसी अंदाज में धमकाते हुए सुने गए, जिस अंदाज में गुंजल धमका रहे थे। अधिकारी ने मामले की शिकायत पुलिस तक भी की और अपनी जान को खतरा बताया, हालाकि बाद में मामला रफ ा-दफ ा हो गया। इसी तरह मनोहरथााना के विधायक कंवरलाल पर स्वयंसेवी संगठनों द्वारा निकाली जा रही जवाबदेेही यात्रा पर हमले का आरोप लगा। एक वीडियो वायरल हुआ और मामला पुलिस तक भी पहुंचा। वीडियो में पूरे सबूत होने के बावजूद विधायक और उनके समर्थकों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। इस मामले को लेकर स्वयं सेवी संगठन अभी तक आंदोलित है। हाल में बांसवडा के विधायक धनसिंह रावत तो स्कूली बच्चों और छात्रावास के वार्डनों को यह कहते सुने गए कि सरकार के काम का प्रचार करना वरना कार्रवाई करेंगे। वे पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर भी टीका-टिप्पणी करने से नहीं चूके। सबसे ज्यादा चर्चा में रहे बायतू विधायक कैलाश चौैधरी और रामगढ विधायक ज्ञानदेव आहूजा के बयान। देश भर में बहस का विषय रहे जवाहर लाल नेहरू विष्वविद्यालय के मामले में कैलाश चौधरी ने कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को फ ांसी पर चढाने की बात कह दी तो आहूजा ने जेएनयू के बारे में ऐसे अजीब आंकडे पेश किए. जिनकी पूरे देश में आलोचना हुई और पार्टी को भी बचाव की मुद्रा में आना पडा। ये दोनों बयान इतने अनर्गल थे कि पार्टी नेताओं ने पहले दिन ही इनसे पल्ला झाड लिया और इन्हें विधायकों की निजी राय बता दिया। हालांकि कांग्रेस ने इन्हें मुद्दा बना दिया। विधानसभा में इसे लेकर हंगामा किया गया और राज्यपाल कल्याण सिंह को अभिभाषण तक नहंी पढने दिय गया। कैलाश चौधरी के घर पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने हमला भी कर दिया था। हाल ही राहुल गाँधी को पप्पू कह कर फिर मामले को गरमा दिया है।