– राकेश कुमार शर्मा

जयपुर। पर्यटन नगरी के नाम से मशहूर जयपुर में दस बाय दस की एक दुकान की कीमत भी लाखों में है और किराया भी पांच-सात हजार रुपए महीने कम से कम होता है। भारतीय रेलवे के उत्तर-पश्चिम रेलवे जयपुर मण्डल की अंधेरगर्दी कहे या मिलीभगत का खेल मानें कि जयपुर में प्राइम लोकेशन की बेशकीमती हजारों वर्गगज जमीन को नाम-मात्र के किराये पर दे रखा है। उत्तर पश्चिम रेलवे  जयपुर मंडल ने अपनी करीब सवा आठ हजार वर्गगज जमीन जयपुर क्लब को मात्र एक हजार रुपए मासिक किराये पर दे रखी है यानि सालाना बारह हजार रुपए में। जबकि यह जमीन अजमेर रोड से सटे सार्वजनिक निर्माण विभाग के सामने जैकब रोड पर है। किसी भी सामान्य व्यक्ति से भी इस जमीन के बारे में पूछे तो वह भी बता सकता है कि अरबों रुपए की इस जमीन का किराया महीने में दस-पन्द्रह लाख रुपए से कम नहीं हो सकता है। स्थिति यह है कि किरायेदार तो मामूली किराया देकर हर साल करोड़ों रुपए की आय कर रहा है, वहीं मालिक भारतीय रेलवे जो घाटे में चल रहा है, नाम-मात्र के किराये से संतुष्ठ है। नई लाइसेंस नीति के बाद इस जमीन का किराया बाजार भाव जितना तो नहीं, लेकिन ठीक-ठाक कर दिया, पर रेलवे के अफसर इसे लागू नहीं करवा पा रहे हैं और ना ही क्लब प्रबंधन से वसूल पा रहे हैं। रेलवे क्लब से नई नीति के तहत किराया वसूलने के लिए तकाजा तो करता है, लेकिन वह सिर्फ कागजी साबित हो रहा है। इस तरह के कागजी तकाजों की क्लब प्रबंधन परवाह नहीं कर रहा है और उन्हें खारिज करता रहता है। वर्ष 2004-05 में रेलवे बोर्ड की नई लाइसेंस फीस नीति आई। उसके आधार पर रेलवे ने अपनी जमीन में स्थापित क्लब प्रबंधन से नए किराए की मांग की। रेलवे की नई लाइसेंस फीस को जयपुर क्लब के पदाधिकारियों ने ना केवल ठेंगा दिखा दिया है, बल्कि उन्होंने किराए चुकाना तक उचित नहीं समझा है। रेलवे के लगातार तकाजे के बावजूद क्लब किराया चुकाने को तैयार नहीं है।

रेलवे नई लाइसेंस फीस के तहत वर्तमान में जयपुर क्लब से सालाना 44 लाख रुपए किराए की मांग कर रहा है। इसकी एवज में क्लब केवल 12 से 14 हजार रुपए ही सालाना चुका रहा है। इसतना कम किराया ििमलने के बावजूद रेलवे अधिकारी कोई कदम उठाने से बच रहे हैं। सिर्फ नोटिस देकर रेलवे अफसर अपने कार्य की इतिश्री कर रहे हैं। इन्हें ना तो कानून का भय दिखाया जा रहा है और ना ही जमीन वापस लेने के लिए कोई कदम उठाने का फैसला किया जा रहा है। जिसके चलते क्लब प्रबंधन भी रेलवे के तकाजों व नोटिसों को कोई अहमियत नहीं देता है। बताया जाता है कि जयपुर क्लब में उत्तर-पश्चिम रेलवे जयपुर मण्डल के आला अफसर सदस्य बने हुए हैं, जिनके शामें क्लब में होने वाली पार्टी में बीतती है। साथ ही अफसरों के बच्चे व रिश्तेदार क्लब से जुड़ी क्रिकेट, टेनिस व दूसरे खेल इकाईयों से जुड़े हुए हैं और क्लब के बैनर तले बाहर खेलने जाते हैं। यहीं नहीं अफसरों व नजदीकी रिश्तेदारों की शादी व दूसरे आयोजनों में क्लब परिसर सस्ते या नि:शुल्क मिल जाता है। इस तरह से उपकृत होने के चलते आला अफसर भी क्लब प्रबंधन पर ठोस कार्रवाई करने के बजाय मामले को सिर्फ कागजी कार्यवाही तक सीमित रखे हुए हैं। यहीं वजह है कि जिस जमीन से भारतीय रेलवे हर साल करोड़ों रुपए की आय प्राप्त कर सकती है, उससे नाम-मात्र की आय हो रही है और उस जमीन का फायदा क्लब प्रबंधन उठा रहा है।

-सोते अफसर, मजे मारते क्लब प्रबंधन

वित्तीय वर्ष 2008 तक जयपुर मंडल ने जयपुर क्लब प्रशासन को किराये की बाबत एक नोटिस थमाया। इसमें नई लाइसेंस नीति के तहत 91.21 लाख रुपए किराए की मांग की गई। इस किराए को लेकर बार-बार स्मरण पत्र भी क्लब प्रबंधन को दिए गए। मगर जयपुर क्लब के पदाधिकारियों के कानों में जूं तक नहीं रेंगी। आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार रेलवे प्रशासन ने क्लब प्रशासन से वर्ष 2014 में बकाया किराए के रुप में करीब 2.88 करोड़ रुपए की मांग करते हुए नोटिस भी भेजे, लेकिन ना तो जवाब दिया और ना ही किराया।  वित्तीय वर्ष 2015 मार्च में करीब 3.72 करोड़ रुपए बकाया हो गया, जो अब बढ़कर करीब चार करोड़ रुपए से पार हो गया है। कुछ हजार रुपए का किराया देकर क्लब प्रबंधन मनमानी पर उतारा हुआ है।  बताया जाता है कि बाजार भाव के मुताबिक रेलवे की इस जमीन की बाजार दर दो लाख रुपए प्रतिगज है। उस हिसाब से यह जमीन अरबों रुपए की है। अगर यहां वाणिज्यिक कॉम्पलैक्स बनाया जाए तो यह जमीन एक हजार करोड़ रुपए से ऊपर पहुंच सकती है। इस बेशकीमती जमीन को रेलवे ने मात्र कुछ हजार रुपए में दे रखी है। उधर नोटिसों के संबंध में जयपुर क्लब के सचिव अजीत सक्सैना का कहना है कि क्लब की ओर से उपयुक्त लाइसेंस फीस रेलवे को समय पर जमा कराते रहे हैं। हमारी तरफ से कोई बकाया नहीं है। नई लाइसेंस नीति का पता नहीं है।

नोटिस थमाने में भी लापरवाही

हालांकि रेलवे समय-समय पर अपने किराए की मांग को लेकर जयपुर क्लब को नोटिस थमाता आया है। इसके बावजूद क्लब प्रशासन इसकी अनदेखी कर रहा है। किराया चुकाने में कोताही बरतने के बावजूद रेलवे ने अपनी करोड़ों की जमीन खाली कराने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की है। इससे क्लब प्रशासन के हौंसले बुलंद होते चले गए। उत्तर-पश्चिम रेलवे के मंडल प्रबंधक (निर्माण) की ओर से जयपुर क्लब के सचिव को 5 जून 2014 को एक नोटिस भेजा गया। रजिस्टड्र नोटिस के इस पत्र की भाषा सामान्य पत्र से अलग थी। इसमें ऊपर लिखा गया, बिना पूर्वाग्रह के रजि. एडी द्वारा। दीगर की बात है कि सरकारी पत्रों में इस तरह की भाषा का प्रयोग सामान्य नहीं है। इससे जाहिर है कि रेलवे अफसर भी क्लब प्रबंधन से मिले हुए हैं और सख्ती बरतने से बच रहे हैं।

अफसर लूट रहे मजे

जयपुर क्लब पर लाखों रुपए किराया बकाया होने के बावजूद रेलवे के अफ सर कार्रवाई करने से बच रहे हैं। आमजन से पाई-पाई बटोरने वाले रेलवे अफसर आखिर इस काम में पीछे कैसे रह गए। ऐसी क्या मजबूरी है जो वसूली करने में उनके पसीने छूट रहे हैं। जेहन में यह सवाल उठना लाजमी है। जब इस सवाल के जवाब के पीछे लगे तो पता चला कि जयपुर मंडल और जोन के करीब 300 अफ सरों और कर्मचारियों का इस क्लब में आना-जाना रहता है और क्लब की सुविधाओं का उपभोग करते हैं। हालांकि बहुत से अफसर ऐसे भी है, जो क्लब से दूरी बनाए हुए हैं, लेकिन आला अफसरों के आने-जाने से क्लब प्रबंधन पर ठोस कार्रवाई करने से बचते हैं। क्लब सूत्रों के मुताबिक जयपुर में स्थापित रेलवे के अधिकांश अफसरों का जयपुर क्लब में आना-जाना बदस्तूर जारी है। बताया जाता है कि  गणपति नगर में स्थित रेलवे के आफिसर क्लब का कार्ड जयपुर क्लब में भी मान्य है। इसी आधार पर इन अधिकारियों को यहां प्रवेश दिया जाता है। सूत्र के मुताबिक रेलवे के 300 अफ सर जयपुर क्लब की सुविधाओं का लुत्फ ले रहे हैं, लेकिन मेम्बरशिप कुछ ही ने ले रखी है। शेष सभी अफसर रेलवे कार्ड से ही क्लब का उपभोग करते हैं। अफसरों व नजदीकी रिश्तेदारों के बच्चों की शादी, जन्मदिन व दूसरे आयोजन निहायत ही सस्ती दरों पर होते हैं। इन सुविधाओं का उपभोग करने के चलते ही अफसर भी क्लब पर ठोस कार्रवाई करने से बचते हैं।

खुद तरस रहे हैं जमीन के लिए

दीगर की बात है जनसुविधाओं के लिए भारतीय रेलवे को भी जमीन की जबरदस्त दरकार है। रेल प्रशासन जयपुर जंक्शन के सामने वाली जमीन का कुछ टुकड़ा इसी आधार पर राज्य सरकार को देने में आनाकानी करता आया है। जबकि सरकार इस जमीन को लेकर सड़क को चौड़ा करना चाहती है। इसके बावजूद रेलवे इसे सिरे से नकार रहा है, जबकि जयपुर क्लब किराए में दी गई जमीन खाली करवाने में उसको कोई रूचि नहीं है। अगर भारतीय रेलवे क्लब की इस जमीन को लेकर यहां वाणिज्यिक कॉम्पलैक्स खड़ा कर दे तो ना केवल रेलवे को अरबों रुपए की आय हो सकती है, बल्कि यात्रियों की सुविधाओं के लिए जंक्शन के आस-पास जमीन भी खरीद सकती है। जयपुर जंक्शन के नजदीक होने के कारण इस जमीन पर यात्रियों की सुविधाओं के लिए क्लब जमीन पर होटल-गेस्ट हाउस भी संचालित हो सकते हैं और पार्किंग सुविधा भी बेहतर हो सकती है।

करार की शर्तों का उल्लंघन

किराए की जमीन होने के बावजूद जयपुर क्लब प्रशासन इसे खुद की ही जमीन मानता आया है।। क्लब ने यहां मनमर्जी के हिसाब से निर्माण खड़े कर लिए हैं। जबकि किसी भी निर्माण से पहले भारतीय रेलवे की अनुमति लेना जरुरी होता है। लेकिन क्लब प्रबंधन ने कभी भी इस संबंध में ना तो भारतीय रेलवे को सूचना दी और ना ही निर्माण संबंधी कोई अनुमति दी। जयपुर क्लब ने रेलवे की जमीन पर क्लब भवन के अलावा स्पोटर्स कॉम्पलैक्स खड़ा कर दिया और मैरिज गार्डन भी बना दिया है। यहीं नहीं दूसरे अन्य भी कई निर्माण कर लिए हैं।

क्लब लाखों कमा रहा है, रेलवे को दे रहा है फूटी कौडी

भारतीय रेलवे को करीब सवा आठ हजार वर्गगज भूमि को किराये पर देने के एवज में भले ही फूटी कौड़ी मिल रही हो, लेकिन जयपुर क्लब प्रबंधन इस बेशकीमती जमीन से लाखों रुपए की कमाई कर रहा है। क्लब मेम्बरशिप से ही हर साल लाखों रुपए की इंकम होती है, वहीं खाने-पीने से भी हर रोज ही मोटी कमाई का प्रबंध हो रहा है। इसके अलावा क्लब प्रबंधन परिसर में शादी, जन्मदिवस आदि के समारोह भी करवाते हैं। ऐसे प्रत्येक आयोजन के ही लाखों रुपए की फीस वसूलते हैं, हालांकि क्लब मेम्बर के लिए फीस काफी कम है। दूसरे लोगों से मोटी रकम वसूली जाती है। इसके अलावा यहां स्पोटर्स कॉम्पलैक्स बना रखा है, जिसमें इनडोर और आऊटडोर के गेम्स की सुविधाएं जैसे टेनिस, क्रिकेट, जूडो जैसे खेल सिखाए जाते हैं। खेलों मे हिस्सा लेने वाले खिलाडिय़ों से भी अच्छी खासी फीस ली जाती है।

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