vartamaan samay mein aatmahatyaen rokane ke lie ek sashakt raashtreey neeti kee aavashyakata: uparaashtrapati

उपराष्ट्रपति, एम. वेंकैया नायडू ने अवसाद और निराशा के कारण युवाओं और अन्य लोगों में अपने जीवन को समाप्त करने की प्रवृत्ति को रोकने के लिए एक राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति बनाने की बात की। वे आज हैदराबाद में इंडियन एशोसिएशन ऑफ प्राइवेट साइकेट्री (आईएपीपी) के 19 वें वार्षिक सम्मेलन का उद्घाटन करने के बाद एक सभा को संबोधित कर रहे थे। देश में आत्महत्या की बढ़ती प्रवृति पर चिंता व्यक्त करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि वे युवाओं, किसानों और महिलाओं द्वारा आत्महत्या करने जैसे समाचारों से परेशान हो जाते हैं। उन्होंने इसके रोकथाम के लिए एक राष्ट्रीय अभियान चलाने की बात की और कहा कि आत्महत्या रोकने के लिए सभी हितधारकों के साथ परिवार के सदस्यों, सार्वजनिक स्वास्थ्य योजनाकारों, नीति निर्माताओं और गैर सरकारी संगठनों द्वारा सामूहिक प्रयास करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि ठीक समय पर परामर्श और पारिवार के सहयोग से अवसाद पीड़ित लोगों को इस प्रकार के कठोर कदम को उठाने से रोका जा सकता है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि अवसाद के समय योग, ध्यान और आध्यात्म से मानसिक संतुलन और शान्ति मिलेगी। उन्होंने कहा कि आधुनिक समय की तेज जीवन शैली और तनाव भी युवाओं में अवसाद उत्पन्न कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमें अपनी पुरानी पारिवारिक व्यवस्था को मजबूत करने की आवश्यकता है, जिसके माध्यम से अवसाद से पीड़ित लोगों को सहारा मिल सकता है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि आधुनिक दवाओं और सही उपचार से मनोवैज्ञानिक विकारों से पीड़ित लोगों को सामान्य जीवन जीने में मदद मिलेगी, भले ही वे लंबी अवधि से इस समस्या से जूझ रहे हों। उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि ऐसे लोगों को बुरे व्यवहार और भेदभाव का सामना करना पड़ता है और कभी-कभी इसमें करीबी रिश्तेदार और परिवार के सदस्य भी शामिल होते हैं।

नायडू ने कहा कि किसी को भी मानसिक बीमारी से जूझ रहे मरीजों के साथ बुरा व्यवहार करने का कोई अधिकार नहीं है और इस प्रकार के व्यवहार से बीमारी की गंभीरता में और बढ़ोत्तरी होगी। उपराष्ट्रपति ने कहा कि विकासशील और विकसित दोनों प्रकार के देश विभिन्न प्रकार के स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों से घिरे हुए हैं, मानसिक बीमारी गैर-संक्रामक बीमारियों में से एक प्रमुख बीमारी है जिसके द्वारा पूरी दुनिया बीमार हो रही है और यह एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या बन गई है। उन्होंने कहा कि डब्ल्यूएचओ के अनुसार, दुनिया भर में अक्षमता का मुख्य कारण अवसाद है और बीमारी का वैश्विक बोझ बढ़ाने में यह एक मुख्य अंशदाता है। उन्होंने कहा कि वैश्विक स्तर पर, सभी उम्र के 30 करोड़ से ज्यादा लोग अवसाद से पीड़ित हैं। उपराष्ट्रपति ने कहा कि पुरुषों की तुलना में महिलाएं अवसाद से ज्यादा प्रभावित हुई हैं। उन्होंने कहा कि यह अनुमान लगाया जा रहा है कि भारत की सामान्य आबादी का कम से कम 13.7 प्रतिशत विभिन्न मानसिक बीमारियों से पीड़ित है और इसमें से 10.6 प्रतिशत मामलों में तुरंत हस्तक्षेप करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि एनआईएमएचएएनएस (निमहान्स) के द्वारा केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय को दिए गए राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-2016 के अनुसार, लगभग 150 मिलियन भारतीयों को तुरंत सक्रिय चिकित्सा देने की आवश्यकता है।

इस बात को चिन्हित करते हुए कि भारत को एक विशिष्ट लाभप्रद स्थिति मिली हुई है क्योंकि यहां की 65 प्रतिशत आबादी 35 साल से कम उम्र के लोगों की है, उपराष्ट्रपति ने युवाओं की मदद के लिए अपने प्रयासों को बहुत हद तक बढ़ाने की आवश्यकता पर बल दिया जिससे कि अवसाद से ग्रस्त युवा अपनी समस्या से छुटकारा पा सकें। उन्होंने सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली को मजबूत बनाने के अलावा, चिकित्सा बीमा में मनोवैज्ञानिक विकारों को भी शामिल करने की बात की। इस अवसर पर आईएपीपी के अध्यक्ष, डॉ एम. एस. रेड्डी, आईएपीपी के उपाध्यक्ष, डॉ जी प्रसाद राव, आईएपीपी के महासचिव, डॉ प्रमोद कुमार और अन्य गणमान्य व्यक्ति मौजूद थे।

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