Two-time president and member will not be able to fight the election of cooperative societies

लखनऊ । सहकारी समितियों में समाजवादी पार्टी का वर्चस्व तोडऩे के लिए खास इंतजाम किए जा रहे हैं। समितियों में 120 दिन की बजाय 45 दिन पहले बनने वाले सदस्य को मतदान का अधिकार देने के बाद अब हुकूमत ने नया दांव खेला है। नियमावली में बड़ा बदलाव करते हुए यह तय किया गया है कि सहकारी समितियों के प्रबंध कमेटी में लगातार दो बार चुनाव जीतने वाले अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्य तीसरी बार चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। इससे सपा से जुड़े बहुत से पदाधिकारियों को चुनाव लडऩे का मौका ही नहीं मिलेगा क्योंकि पिछले कुछ वर्षों से उनका ही दबदबा रहा है।

सहकारी समितियों के निर्वाचन की प्रक्रिया सात अक्टूबर से शुरू हो रही है। सबसे पहले न्याय पंचायत स्तर पर गठित प्रारंभिक कृषि ऋण समितियां (पैक्स) का चुनाव होना है। करीब सात हजार पैक्स के चुनाव अलावा केंद्रीय स्तर पर जिला सहकारी बैंक, जिला सहकारी विकास संघ, केंद्रीय उपभोक्ता भंडार और शीर्ष स्तर पर उप्र कोआपरेटिव बैंक जैसी संस्थाओं में चुनाव होने हैं। लगातार नियमावली में बदलाव हो रहे हैं। समितियों में दो बार चुनाव जीतने वाले अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्यों को तीसरी बार चुनाव लडऩे पर रोक लगाकर बहुत से मठाधीशों के मंसूबों पर पानी फेर दिया है। आधे से ज्यादा प्रबंध समितियों पर ऐसे लोग काबिज हैं जो दो-दो बार से अध्यक्ष और सदस्य हैं। वे चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। इन्हें मैदान में आने के लिए फिर अगले चुनाव का इंतजार करना होगा।

सहकारिता चुनाव अभियान से जुड़े भाजपा के बलवीर सिंह कहते हैं कि ‘पिछली सरकारों में बेईमानी, भ्रष्टाचार और सत्ता का दुरुपयोग करके अवैध ढंग से कब्जा किया गया था। भाजपा सरकार निष्पक्ष, पारदर्शी और नियमपूर्वक चुनाव कराएगी। पहले व्यवस्था थी कि निर्वाचन से चार माह पहले समिति का सदस्य बनने वाले को ही मतदान का अधिकार होगा लेकिन, नई व्यवस्था में 45 दिन पहले सदस्य बनने वाले को भी मतदान का अधिकार मिल गया है। जाहिर है कि इस व्यवस्था से भाजपा को मुकाबले मे मजबूत होने का मौका मिल गया है। भाजपा ने बड़े पैमाने पर अपने सदस्य बनाये हैं। ये सदस्य समाजवादी पार्टी के गढ़ को तोडऩे में मददगार बनेंगे।

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