चीन में जो वायरस अगली महामारी फैला सकता है, वह वहां पहले से सक्रिय है। यह एच7एन९ नामक बर्ड फ्लू है। कुछ समय से उसने मुर्गियों से मानवों में फैलना शुरू कर दिया है। यह बुरी खबर है क्योंकि वायरस जानलेवा है। अभी हाल में वायरस से प्रभावित 88% लोगों को निमोनिया हो गया था। इनमें से तीन चौथाई लोगों को इंटेसिवकेयर यूनिट में भर्ती करना पड़ा था और 41% लोगों की मौत हो गई। एच7एच9 अब तक मानवों से मानवों में आसानी से नहीं फैल पाया है लेकिन विशेषज्ञ जानते हैं, ऐसा हो सकता है। वायरस जितने लंबे समय तक मनुष्यों में मौजूद रहेगा, उसके अधिक संक्रामक होने का खतरा रहता है। पश्चिम अफ्रीका में इबोला, दक्षिण अमेरिका में जिका से लेकर मध्य पूर्व में एमईआरएस जैसी खतरनाक बीमारियां दुनियाभर में फैल रही हैं। पिछले ६० वर्षों में हर दशक में नई बीमारियों की संख्या चार गुना बढ़ी है। 1980 के बाद से हर वर्ष फैलने वाली बीमारियों की संख्या तीन गुना बढ़ी है। मिनेसोटा यूनिवर्सिटी में संक्रामक बीमारी रिसर्च और पॉलिसी सेंटर के डायरेक्टर एवं पुस्तक – डेडलिएस्ट एनिमी : अवर वार अगेंस्ट किलर जर्म्स- के लेखक माइकेल ओस्टर होल्म कहते हैं, ‘हम बहुत बड़े खतरे एच7एन9 का सामना कर रहे हैं। बर्ड फ्लू का कोई भी मामला गंभीर हो सकता है। पर इसके फैलने तक बहुत देर हो चुकी होगी’। बहुत देर इसलिए कि माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स, विश्व स्वास्थ्य संगठन के डायरेक्टर डॉ. मार्गरेट चान सहित कई वैज्ञानिक चेतावनी दे चुके हैं कि महामारियों से निपटने के लिए हम पूरी तरह तैयार नहीं हैं। दरअसल, संक्रामक बीमारियों से निपटने का सिस्टम टूट चुका है। इतना कि बिल गेट्स और उनकी पत्नी मेलिंडा को संक्रामक बीमारियों से लड़ने के सार्वजनिक और निजी प्रयास (सीइपीआई) के तहत अगले पांच वर्ष में 640 करोड़ रुपए देने की घोषणा करना पड़ी है। डोनाल्ड ट्रम्प के अमेरिका का राष्ट्रपति बनने के बाद से स्वास्थ्य विभाग में कई पद खाली हैं। स्वास्थ्य और मानव सेवाओं के विभाग के बजट में 970 अरब रुपए की कटौती कर दी गई है। बीमारियों के फैलने में जलवायु परिवर्तन की भी भूमिका है। बढ़ते तापमान ने जिका फैलाने वाले एडीज एजिप्ती मच्छरों जैसे कीड़ों और जानवरों का दायरा बढ़ा दिया है। और कुदरत ही काफी नहीं है। जेनेटिक इंजीनियरिंग के साधनों ने आतंकवादी समूहों या किसी पागल व्यक्ति के लिए घातक विषाणु फैलाना आसान बना दिया है। विशेषज्ञों का कहना है, संभव है कि नई महामारी फैलने की स्थिति में हमारे पास बचाव के लिए कोई वेक्सीन या दवा न हो। 2014 में इबोला का प्रकोप होने पर 11000 व्यक्तियों की मृत्यु हो गई थी। वायरस वैज्ञानिकों के लिए रहस्य नहीं था। इसका पता 1976 में लग गया था। फिर भी, उससे बचाव की दवा या वेक्सीन नहीं बन पाई है। राहत की बात है कि संक्रामक बीमारियों के खतरे को वैज्ञानिक बहुत अच्छे से समझने लगे हैं। नए या रहस्यमय वायरस की खोज के लिए अगली पीढ़ी के जेनेटिक सीक्वेंसिंग साधनों का उपयोग किया जा रहा है। लेकिन, मानवों के समान सूक्ष्म कीटाणु भी चार करोड़ गुना तेजी से विकसित होते हैं। हार्वर्ड ग्लोबल हेल्थ इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर डॉ. आशीष झा कहते हैं,‘अगले दस वर्षों में लाखों लोगों को बहुत कम समय में मारने वाली कोई चीज संक्रामक बीमारी ही होगी’। वैज्ञानिक जितनी भी नई संक्रामक बीमारियों के बारे में जानते हैं, वे जानवरों से फैलती हैं। एचआईवी की शुरुआत चिम्पांजियों, सार्स की चीनी चमगादड़ों और इंफ्लूएंजा की जलीय पक्षियों से हुई थी। जानवरों से यह मनुष्यों में फैलती है। क्या इसे रोकना संभव है? उभरते रोगाणुओं को तेजी से पहचानने के लिए एक महत्वाकांक्षी कार्यक्रम प्रेडिक्ट 2009 में प्रारंभ किया गया है। अंतरराष्ट्रीय विकास के लिए अमेरिकी जेन्सी(यूएसएड) की सहायता से चलने वाले प्रेडिक्ट ने जानवरों और मानवों में लगभग 1000 वायरस खोजे हैं। एक अन्य कार्यक्रम ग्लोबल वाइरोम प्रोजेक्ट के तहत मानवों में फैलने की क्षमता रखने वाले करीब पांच लाख वायरस की पहचान का काम चल रहा है। प्रोजेक्ट से जुड़े वैज्ञानिकों का अनुमान है कि कार्यक्रम पर २०० अरब रुपए से अधिक खर्च आएगा। यूएसएड के बजट में कटौती को देखते हुए ऐसे कार्यक्रमों के लिए जरूरी धन नहीं मिल पाएगा। इसलिए संक्रामक बीमारियों के अधिकतर विशेषज्ञों को नए इलाज या वेक्सीनों से अधिक उम्मीद नहीं है।

LEAVE A REPLY