-बाल मुकुन्द ओझा
16 अक्टूबर को विश्व खाद्य दिवस हम ऐसे समय में मनाने जारहे है जब भूख की मार झेल रहे लोगों की संख्या में इजाफा हो रहा है। विश्व खाद्य दिवस लोगों को भुखमरी जैसी समस्यों से जागरूक करना तथा भोजन को खराब होने से बचाने के लिए मनाया जाता है। विश्व खाद्य कार्यक्रम ने चेतावनी जारी की है कि दुनिया में भूख की मार झेल रहे लोगों की संख्या रिकॉर्ड स्तर पर पहुँचने का जोखिम उभर रहा है। वैश्विक खाद्य संकट के कारण बड़ी संख्या में लोगों के लिये खाद्य असुरक्षा हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं, जिसके मद्देनज़र, यूएन एजेंसी ने 16 अक्टूबर को 'विश्व खाद्य दिवस' से ठीक पहले, मौजूदा संकट की बुनियादी वजहों से निपटने की पुकार लगाई है। जलवायु व्यवधान, हिंसक टकराव और आर्थिक दबाव समेत अनेक विकराल चुनौतियों की पृष्ठभूमि में वैश्विक खाद्य संकट पनप रहा है। इन संकटों की वजह से विश्व भर में भूख की मार झेल रहे लोगों की संख्या, वर्ष 2022 के शुरुआती महीनों में 23 करोड़ 20 लाख से
बढ़कर 34 करोड़ 50 लाख तक पहुँच गई। भारत भूख और गरीबी के दल दल से बाहर निकलने के लिए प्रयासरत है। देश और दुनिया में अभी भी करोड़ो लोग भुखमरी के शिकार है। चाहे विकासशील देश हो या विकसित देश हो। भुखमरी की समस्या पूरा विश्व झेल रहा है। कोरोना महामारी की गिनती भी इसी संकट से की जा सकती है जब लाखों लोग बेरोजगार होकर रोजी रोटी के लिए दर दर भटक रहे है। भारत सहित दुनिया के अनेक देशों ने संकट में अपने जरुरतमंद देशवासियों की मदद के लिए हाथ बँटाये है मगर यह नाकाफी है। गौरतलब है विश्व खाद्य कार्यक्रम ने अपने जीवन रक्षक कार्यों के लिए 2020 का नोबेल शांति पुरस्कार जीता है। कोरोना संकट के कारण लाखों पुरुष, महिला और बच्चे भुखमरी का सामना कर रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि कोरोना के कारण हुई वैश्विक मंदी ने 83 से 132 मिलियन लोगों को भुखमरी में धकेल दिया। विश्व खाद्य दिवस भूख के खिलाफ लड़ाई का एक दिन है। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) की स्थापना के उपलक्ष्य में समूचे विश्व में 16 अक्तूबर को विश्व खाद्य दिवस मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का मूल उद्देश्य विश्व के भूखे और कुपोषित लोगों की दशा के बारे में लोगों में जागरूकता पैदा करना और भूख के अभिशाप से मुक्ति पाना तथा इस समस्या के समाधान के ठोस उपाय करने के लिए सभी संबद्ध व्यक्तियों संस्थाओं को प्रोत्साहित करना है। यह दिन अब रश्मि होता जारहा है। ढोल नगाड़ा पीटने से न गरीबी दूर होगी और न हीं भूखे को खाना मिलेगा। यह हमारी जमीनी सच्चाई है जिसे स्वीकारना ही होगा।

दुनियां से जब तक अमीरी और गरीबी की खाई नहीं मिटेगी तब तक भूख के खिलाफ संघर्ष यूँ ही जारी रहेगा। चाहे जितना चेतना और जागरूकता के गीत गालों कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है। अब तो यह मानने वालों की तादाद कम नहीं है कि जब तक धरती और आसमान रहेगा तब तक आदमजात अमीरी और गरीबी नामक दो वर्गों में बंटा रहेगा। शोषक और शोषित की परिभाषा समय के साथ बदलती रहेगी मगर भूख और गरीबी का तांडव कायम रहेगा। अमीरी और गरीबी का अंतर कम जरूर हा ेसकता है मगर इसके लिए हमें अपनी मानसिकता बदलनी पड़ेगी। प्रत्येक संपन्न देश और व्यक्ति को संकल्पबद्धता के साथ गरीब की रोजी और रोटी का माकूल प्रबंध करना होगा। दुनिया भर में भूखे पेट सोने वालों की संख्या में कमी नहीं आई है। यह संख्या आज भी तेजी से बढ़ती जा रही है। अब तो यह मानने वालों की तादाद कम नहीं है कि जब तक धरती और आसमान रहेगा तब तक आदमजात अमीरी और गरीबी नामक दो वर्गों में बंटा रहेगा। शोषक और शोषित की परिभाषा समय के साथ बदलती रहेगी मगर भूख और गरीबी का तांडव कायम रहेगा। अमीरी और गरीबी का अंतर कम जरूर हो सकता है मगर इसके लिए हमें अपनी मानसिकता बदलनी पड़ेगी। प्रत्येक संपन्न देश और व्यक्ति को
संकल्पबद्धता के साथ गरीब की रोजी और रोटी का माकूल प्रबंध करना होगा। बिना इसके खाध दिवस मनाना बेमानी और गरीब के साथ एक क्रूर मजाक होगा। एक तरफ देश में भुखमरी है वहीं हर साल सरकार की लापरवाही से लाखों टन अनाज बारिश की भेंट चढ़ रहा है। हर साल गेहूं सड़ने से करीब 450 करोड़ रूपए का नुकसान होता है। भारत में गरीबी उन्मूलन और खाद्य सहायता कार्यक्रमों पर करोड़ों रुपये खर्च किए जाने के बावजूद कुपोषण लगातार एक बड़ी समस्या बनी हुई है। भूख के कारण कमजोरी के शिकार बच्चों में बीमारियों से ग्रस्त होने का खतरा लगातार बना रहता है।

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