Snoop on smug: demand for electoral issue arises

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में स्मॉग दम घोंटू स्तर तक पहुंच चुका है। राज्य सरकार का मानना है कि अब यह साधारण विषय नहीं रह गया है और बहुत गम्भीरता से इसका समाधान खोजना होगा। प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में पिछले करीब एक हफ्ते से हवा की गुणवत्ता बेहद खराब है और यह स्वास्थ्य के लिये खतरनाक स्तर तक पहुंचगयी है। स्मॉग को आगामी नगरीय निकाय चुनाव के प्रमुख मुद्दों में शामिल करने की भी मांग उठ रही है। उप मुख्यमंत्री केशव मौर्य ने बातचीत में जहरीली होती हवा का समाधान पूछने पर कहा, मैं मानता हूं कि यह अब साधारण विषय नहीं रह गया है। इसका समाधान बहुत गम्भीरता से खोजना होगा। उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय और राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने जहरीले स्मॉग से निपटने के कई तरीके सुझाये हैं। प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार इस मामले को लेकर सतर्क है और समस्या से निपटने के लिये जो भी आवश्यक निर्णय होगा, वह लिया जाएगा। मालूम हो कि एनजीटी के आदेश के मद्देनजर प्रदेश सरकार ने पूरे प्रदेश में खेतों में फसलों के अवशेषों को जलाने पर पाबंदी लगा दी है। साथ ही सभी जिलाधिकारियों को आदेश दिया है कि वे अपने-अपने जिलों के हालात को देखते हुए जरूरी निर्णय लें ताकि जहरीली हवा के संकट से निपटा जा सके।

इस बीच, नेशनल एयर क्वालिटी इंडेक्स (राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक) के अनुसार आज अपराह्न तीन बजे तक गाजियाबाद और वाराणसी की हवा में पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 की मात्रा 491-491 प्रति क्यूबिक मीटर थी। वहीं, लखनऊ में 490, नोएडा में 488, कानपुर में 450, आगरा में 404 और मुरादाबाद में 388 प्रति क्यूबिक मीटर पायी गयी। हवा में पीएम 2.5 की मात्रा 200 प्रति क्यूबिक मीटर से अधिक होते ही यह खतरनाक हो जाती है। इसकी मात्रा 400 प्रति क्यूबिक मीटर या उससे ऊपर जाना पूर्ण रूप से स्वस्थ लोगों को भी बीमार कर सकता है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन लखनऊ के अध्यक्ष डॉक्टर पी. के गुप्ता ने बताया कि पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 सल्फर डाईआॅक्साइड, नाइटोजन डाईआॅक्साइड, कार्बन मोनोआॅक्साइड और धूल कण का मिला जुला रूप है जिनका आकार अति सूक्ष्म होता है। यह कण हमारी नाक के बालों से भी नहीं रुकते और फेफड़ों और यहां तक खून में भी पहुंच जाते है। इससे फेफड़ों के साथ-साथ दिल पर भी बुरा असर पड़ता है। उन्होंने बताया कि ज्यादा समय तक ऐसी हवा के सम्पर्क में रहने से सांस सम्बन्धी गम्भीर बीमारियां हो सकती हैं। ज्यादा प्रभाव पड़ने पर लकवा और फेफड़े का कैंसर भी हो सकता है। डॉक्टर गुप्ता ने बताया कि अगर कोई व्यक्ति लगातार ऐसी हवा के सम्पर्क में रहता है तो वह उसकी सेहत के लिये बेहद खतरनाक है। यह खासकर बच्चों के फेफड़ों के स्वाभाविक विकास पर असर डालता है। इसी तरह बुजुर्गों के लिये भी खतरनाक है। जब पीएम 2.5 की मात्रा 400 के पार हो तो घर के अंदर ही रहना बेहतर है। पर्यावरण विज्ञानी डॉक्टर सीमा जावेद ने कहा, स्मॉग की समस्या अब आपदा का रूप ले चुकी है। वायु प्रदूषण को आगामी नगरीय निकाय चुनावों में प्रमुख मुद्दा बनाया जाना चाहिये। साफ हवा और साफ पानी तो देश के सभी नागरिकों का संवैधानिक अधिकार है और इन दोनों मुद्दों की उपेक्षा करके जनसेवा नहीं की जा सकती। मौजूदा हालात ह्यगैस चैम्बरह्ण जैसे हैं। उन्होंने कहा कि सरकार को इस समस्या से निपटने के लिये कोयला आधारित बिजली संयंत्रों में प्रदूषणकारी तत्वों के निस्तारण की अनिवार्यता को सख्ती से लागू करना चाहिये।

साथ ही ज्यादा प्रदूषण फैला रहे वाहनों पर पाबंदी भी लगानी चाहिये। इसके अलावा रियल एस्टेट के कार्यों में भी नियमों का पालन कराया जाए। इसमें आम लोगों की सहभागिता भी जरूरी है। सीमा ने कहा कि सरकार ने पानी का मोल तो तय कर दिया है लेकिन अब हवा का मोल तय करने की नौबत आ गयी है। पिछले साल दिल्ली में जब स्मॉग की समस्या पैदा हुई तो सम्पन्न लोगों ने एयर प्यूरीफायर लगा लिये और मास्क खरीद लिये। मगर क्या कोई रिक्शावाला यह सब खरीद सकता है। सरकार से गुजारिश है कि वह हवा का मोल तय ना होने दे। सरकार को कहीं ना कहीं कठोर रुख अपनाना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि कोयला आधारित बिजली संयंत्रों के लिये अगले महीने से नये मानक लागू करने की बात हो रही है। उन मानकों में ऐसे बिजली संयंत्रों के लिये अपने यहां उत्सर्जित होने वाले प्रदूषकों के निस्तारण का अनिवार्य रूप से इंतजाम करना भी शामिल है। मगर अफसोस की बात यह है कि जो नये 16 ऐसे बिजली संयंत्र तैयार किये गये हैं, उन्होंने भी इस तकनीक को महंगा बताते हुए, नहीं अपनाया है। सरकार को इस पर अंकुश लगाना चाहिये।

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