Hingonia Gaushala: Kalicharan Saraf
Hingonia Gaushala: Kalicharan Saraf

– राकेश कुमार शर्मा

जयपुर। राजस्थान की सबसे बड़ी सरकारी गौशाला हिंगोनिया गौ-माता की कब्रगाह बनी हुई है। ऐसा कोई दिन नहीं जा रहा है, जब चालीस से पचास गायें अकाल मौत मर रही है। एक पखवाड़े पहले तक यहीं आंकडा अस्सी से एक सौ के बीच था। सामान्य दिनों मे भी यहां पच्चीस से तीस गायों की मौत होना आम बात है। हाल ही राजस्थान हाईकोर्ट के निर्देश पर नियुक्त कोर्ट कमिश्नर सज्जनराज सुराणा ने एक रिपोर्ट मुख्यमंत्री कार्यालय को दी, जिसमें यह चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है कि  गत एक दशक में गौशाला प्रशासन के कृत्यों व लापरवाही के चलते एक लाख से अधिक गायों को लील चुकी है। हालांकि हमेशा की तरह राज्य सरकार और जयपुर नगर निगम प्रशासन का दावा रहता है कि मरने वाली अधिकांश गायें बीमार थी और उनके पेट में भारी मात्रा में पॉलीथीन जमा थी। इस बार बारिश में जो गायें मरी, उनके लिए सरकार-प्रशासन चुप्पी साध रखी है। लगातार तेज बारिश से भीगती गायों और उन्हें चारा खिलाने के इंतजाम में क्यों लापरवाही बरती गई। जब ठेकाकर्मी हडताल पर चले गए तो दूसरे कर्मचारी नहीं लगाए। एक मूक जीव, जिसे पूरे हिन्दुस्तान में माता का दर्जा दिया हुआ है, उसके प्रति इतनी लापरवाही की कि गोबर नहीं उठने से गौशाला परिसर पूरा दलदली हो गया और उस दलदल में धंसकर गायें तिल-तिलकर दम तोड़ती रही, लेकिन नगर निगम प्रशासन, मेयर और दूसरे आला अफसरों की कानों पर जूं तक नहीं रेंगी। मीडिया में मामला उछला तो जनता की तीखी प्रतिक्रिया और विपक्ष की घेरेबंदी के बाद सरकार जागी तो सही, लेकिन अभी भी इंतजाम पर्याप्त नहीं है। सरकारी संसाधनों से ज्यादा गौ-सेवक और सामाजिक कार्यकर्ता वहां दिन-रात मेहनत करके गौशाला की गंदगी व दूसरी अव्यवस्थाओं को सुधारने में लगे हुए हैं। सरकार के मंत्री, कारिंदे और आला अफसर तो सिर्फ दौरे और निर्देशों में ही लगे हुए हैं। हजारों की तादाद में गायें होने पर भी उनके उचित खाने, रहने, चिकित्सा की पर्याप्त इंतजाम नहीं होना सरकार व नगर निगम प्रशासन की सीधी लापरवाही दर्शाता है। वो भी जब इस गौशाला के लिए करोड़ों रुपए का चंदा आम जन व व्यापारी ही दे देते हैं। हर रोज हरे चारे व गौ-ग्रास की रोटियां गाडिय़ों में आती है। इसके बावजूद गौशाला कब्रगाह बनी हुई है। गौशाला गायों की सेवा के लिए है, लेकिन अफसरों और कर्मचारियों ने सेवा के बजाय इसे मेवा कमाने का अड्डा बना लिया है। कई सालों से राजस्थान हाईकोर्ट गौशाला की व्यवस्था सुधारने के लिए कई आदेश-निर्देश दे चुका है। कोर्ट कमिश्नर नियुक्त होकर सरकार को रिपोर्ट दे चुके हैं। निगम को फटकार लग चुकी है। दर्जनों मामले एसीबी में दर्ज है, लेकिन इसके बावजूद हालात सुधरने के नाम नहीं ले रहे हैं। अब जब सरकार की किरकिरी हुई और जनता का आक्रोश भी सामने आया तो यह कहा जा रहा है कि सरकार गौशाला संभाल नहीं सकती है। इसकी आऊटसोर्सिंग करेंगे। गोपालन विभाग के मंत्री यूडीएच मंत्री पर आरोप जड़ रहे हैं कि उन्होंने गौशाला मांगी थी, लेकिन मंत्री उनकी बात पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। कृषि मंत्री प्रभुलाल सैनी भी इस मसले पर हाथ खड़े करते हुए कह चुके हैं कि गौशाला को संभाल नहीं सकते हैं। ऐसे में यह तो तय है कि अब तक सरकारी संरक्षण में चल रही हिंगोनिया गौशाला अब निजी हाथों में जाएगी। जब सरकार खुद मान रही है कि वह इसे संभाल नहीं सकती है तो यह कदम गायों के लिए उचित भी लगता है। वो इसलिए कि सेवाभावी हाथों में गौशाला जाने से गायों की मौतों का सिलसिला तो थमेगा, साथ ही सेवा के नाम पर जो सरकारी लूट-खसोट चल रही थी कि उस पर भी लगाम लग सकेगी। दानदाताओं और सरकार से मिलने वाली राशि सीधे तौर पर गायों पर खर्च हो सकेगी।

मेवा खाने का अड्डा बना

गौशाला में लावारिस और कमजोर गायें, उनके बछड़े-बछड़ी आते हैं। इसी वजह से सरकार भी खासा अनुदान और बजट इनके खाने-पीने, चिकित्सा और संरक्षण पर रखती है। हर साल करीब पन्द्रह से बीस करोड़ रुपए इन गायों के रखरखाव पर खर्चा होता है सरकारी और दानदाताओं से आई इस राशि के हिसाब से। लेकिन इसे विडम्बना कहे या सरकारी स्तर पर लापरवाही, कि इतनी राशि और संसाधन होने के बावजूद प्रशासन गायों की सेवा नहीं कर पा रहा है। ना गायों की सेवा हो रही है और ना ही गायों की मौतों का सिलसिला थम पा रहा है। यह सब खेल हो रहा है गायों के लिए आने वाले मोटे बजट को ठिकाने लगाने के चक्कर में। करीब दस हजार गायें हैं इस गौशाला में। इन गायों के खाने के लिए सूखा व हरा चारा, पौष्टिक आहार के लिए हर साल टेण्डर होते हैं। सफाई व रखरखाव के लिए ढाई-तीन सौ ठेकाकर्मी नियुक्त है। इसके भी टेण्डर प्रक्रिया है। इन टेण्डरों के माध्यम से कंपनियों को उपकृत करके मोटा कमीशन खाने का खेल चलता है। हर गाय के हिसाब चारा तय है, लेकिन तय मात्रा से काफी कम डाला जाता है। ठाणों में एक साथ ही डाल दिया जाता है। हर गाय के हिसाब से देेने का प्रावधान नहीं है। यहीं स्थिति हरे चारे और पौष्टिक आहार (बांट)की है। कुछ दुधारु गायों को ही मिलता है। बीमार व कमजोर गायों को तो ना तो हरा चारा और ना ही पौष्टिक आहार नसीब हो पाता है। कंपनी सूखा, हरा और पौष्टिक आहार गौशाला में पहुंचाती है या नहीं, इसके लिए तोल-नाप के प्रबंध तो पूरे कर रखे हैं, लेकिन मिलीभगत के चलते ये सब कागजों में ही चल रहा है। ना तो पूरा चारा डलता है और ना ही पौष्टिक आहार व हरा चारा। बीमार गायों की दवाईयों की खरीद में भी भारी घपला है। वैसे ही अधिकतर गायें तो मर जाती है, उन दवाईयों को उपयोग में लेना बता दिया जाता है। ऐसा नहीं है कि इस बारे में पता नहीं हो। दर्जनों शिकायतें नगर निगम व सरकार के स्तर पर लंबित है। कई मामले एसीबी में दर्ज है। खुद वर्तमान में पशु नियंत्रण एवं संरक्षण समिति के अध्यक्ष भगवत सिंह देवल इन सभी मुद्दों को उठाकर महापौर निर्मल नाहटा, यूडीएच मंत्री राजपाल सिंह शेखावत व यूडीएच सेक्रेटरी मंजीत सिंह व आला अफसरों को अवगत करा चुके हैं। किस तरह से चारा कम आने और कम ही गायों को डालने, हरे चारे व पौष्टिक आहार की खरीद में हो रहे घपले, रात को गौवंश को निकालकर चोरी-छिपे बेचने जैसी कई शिकायतें दे सप्रमाण दे चुके हैं। नियुक्त कर्मचारियों में से आधे ही काम पर आने और शेष की राशि अफसर-कर्मचारी व ठेकेदार कंपनी द्वारा हड़प कर लेने संबंधी शिकायत भी सामने ला चुके हैं। करीब पौने तीन सौ गायों के एक ही रात में गायब होने को लेकर वे कानोता थाने में मामला भी दर्ज करवा चुके हैं।  गौशाला के संबंध में हाईकोर्ट में चल रही याचिका की सुनवाई में इन मसलों को उठाकर सशपथ बयान भी दे चुके है। गौशाला में मृत गायों की खाल उतारने और सींग काटने का मामला रंगे हाथ पकड़कर प्रशासन को अवगत करा चुके हैं, लेकिन इसके बावजूद निगम प्रशासन ने इन मुद्दों पर ध्यान देने के बजाय दोषी अफसरों व कर्मचारियों को बचाने में लगी रही। हाल ही पूर्व मुख्यमंत्री व उपराष्टÓपति भैरोंसिंह शेखावत के समाधि स्थल पर हिंगोनिया गौशाला में गायों की मौत मसले पर हुए मौन उपवास कार्यक्रम में भाजपा के वरिष्ठ विधायक घनश्याम तिवाड़ी ने भी सरकार को आड़े हाथ लेते हुए आरोप लगाया कि भ्रष्टाचार के चलते ही गौशाला में गायों की मौतें हो रही है। चारे, दवाईयों व दूसरी सामग्री की खरीद में अनियमितता बरती जा रही है। गायों को पूरा पौष्टिक आहार व चारा नहीं मिल रहा है और ना ही वहां गायों की सेवा के लिए अच्छे इंतजाम है। तिवाड़ी ने यह भी आरोप लगाया कि खाल और सींगों के लिए गायों को मारा जा रहा है। इन्हें दफनाने से पहले इनकी खाल उतारी जा रही है और सींग काटे जाते हैं। इस मसले पर आरएसएस, विहिप भी सरकार के खिलाफ खुलकर आ चुकी है। कांग्रेस ने जयपुर समेत पूरे प्रदेश में आंदोलन शुरु करके सरकार को घेर रखा है। गाय के मुद्दे पर कांग्रेस का अब तक सबसे बड़ा आंदोलन बताया जा रहा है।

एक ही दिन में मार दी थी चार हजार गायें

हिंगोनिया गौशाला में भ्रष्टाचार किस कदर व्याप्त है, इसका एक प्रत्यक्ष उदाहरण करीब एक दशक पहले उजागर भी हो चुका है। फर्जी तरीके से गौशाला में हजारों गायें दर्शाकर अफसर-कर्मचारी हर महीने लाखों रुपए का चारा घोटाला करते रहे। यह घोटाला कई महीनों तक चलता रहा। जब इस मामले की भनक सरकार को लगी तो सरकार ने गायों के भौतिक सत्यापन करवाने का फैसला किया। इस बारे में भ्रष्ट अफसर-कर्मचारियों को पता चला तो मामला पकड़ा नहीं जा सके, इसके लिए एक ही दिन में 3954 गायों को मृत दर्शा दिया। जबकि वे गौशाला में करीब साढ़े सात हजार गायें बताकर सूखा, हरा चारा और पौष्टिक आहार के नाम पर लाखों रुपए उठाकर सरकार को चपत लगाते रहे। जब जांच व भौतिक सत्यापन हुआ तो यह घोटाला सामने आया। मामला एसीबी में दर्ज हुआ और तत्कालीन गौशाला आयुक्त सांवरमल मीणा, पशु चिकित्सा अधिकारी कैलाश मोढ़े व अन्य के खिलाफ चालान पेश किया गया। करीब एक साल तक यह घोटाला चलता रहा और सरकार को करीब सवा करोड़ रुपए से अधिक चपत लगाई गई। इसके बाद भी एक ही कंपनी से महंगी दरों पर चारा खरीदने और टेण्डर नहीं करके उसे ही उपकृत करने का मामला भी एसीबी में चल रहा है।  गौशाला में ठेकाकर्मियों के टेण्डर और टेण्डर में तय कर्मचारियों के एवज में काफी कम ही कर्मी लगाने को लेकर भी नगर निगम और एसीबी में शिकायतें चल रही है। पूर्व महापौर ज्योति खण्डेलवाल के कार्यकाल के दौरान भी खुद महापौर गौशाला में चारा खरीद समेत अन्य सामग्री की खरीद में हुए घोटालों को लेकर अफसरों के खिलाफ एसीबी में प्राथमिकी दर्ज करवा चुकी है। इतना होने पर भी नगर निगम प्रशासन और अफसरों में खौफ नहीं है। शिकायतों पर तत्काल कार्रवाई नहीं होने से ऐसे भ्रष्ट अफसरों के हौंसले तो बुलंद है और आज भी गौवंश के नाम से लूट-खसोट मची हुई है।

पथमेडा व दूसरी निजी गौशालाएं आदर्श है। इनसे भी अधिक गायें है। दानदाताओं के भरोसे चल रही है। वहां मौतों का सिलसिला इस तरह से नहीं है, बल्कि गोसेवकों के दम पर गायें स्वस्थ है और बहुत सी गौशालाएं समृद्ध भी बनी हुई है।

हर रोज मरती है 21 गायें

हिंगोनिया गौशाला में 2004 से अब तक एक लाख गायों की मौत की बात सामने आई है। राजस्थान हाईकोर्ट के आदेश पर नियुक्त कोर्ट कमिश्नर सज्जनराज सुराणा ने मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के ओएसडी को सौंपी रिपोर्ट में बताया है कि मार्च 2004 से मार्च 2010 तक गौ शाला में 50 से 60 हजार गायों की मौत हुई।  2004 से गौशाला में सालाना 8500 गायों की मौत हो रही है। रिपोर्ट के मुताबिक रोजाना 21 गायों की मौत हो रही है। बारिश व दूसरे कारणों से यह आंकड़ा बढ़कर पचास से अस्सी तक पहुंच जाता है। ढाई साल के दौरान तो करीब 27 हजार से अधिक गायें मर चुकी है। गायों की मौत के पीछे सबसे बड़ा नगर निगम प्रशासन की लापरवाही बताई गई है। समय पर पर्याप्त चारा नहीं मिलना, हरे व पौष्टिक आहार नहीं देना, गौवंश के हिसाब से काफी कम बाड़े होना, बाडों में तय गायों के हिसाब ज्यादा पशुओं को ठूंसकर रखना, बीमार व कमजोर गायों को अलग से नहीं रखना और ना ही पर्याप्त तरीके से चिकित्सा होना। कर्मचारियों में गौवंश के प्रति सेवा का भाव नहीं होना। गोबर समय पर नहीं उठना और ना ही सफाई होना जैसे कई कारण रिपोर्ट में बताए गए हैं, जिनके चलते गौशाला में इतनी मौतें हो रही है। उधर, गौशाला में लगातार गायों की मौतों को लेकर राजस्थान हाईकोर्ट ने भी तेवर तल्ख किए हुए हैं। हाईकोर्ट ने इसके लिए बाकायदा नगर निगम प्रशासन की लापरवाही बताते हुए फटकार लगाई, साथ ही गायों की मौतों का कारण जानने और अव्यवस्थाओं को लेकर एसीबी को जांच करने को कहा है। कोर्ट ने एसओजी के आईजी दिनेश एम.एन. से भी इस मसले पर पूरी रिपोर्ट मांगी है। कोर्ट की सख्ती के बाद एडवोकेट जनरल एनएम लोढ़ा ने भी हिंगौनिया गौशाला जाकर हालात देखे। कोर्ट की तल्खी से अफसरों और सरकार में भी हडकम्प मचा हुआ है। आला अफसरों के साथ मंत्री भी दौरे करके व्यवस्था सुधारने में लगे हुए हैं।

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