-देसी जुगाड़ से निकाला बाहर, 100 फीट पर फंसी थी मासूम
-जनप्रहरी एक्सप्रेस
बांदीकुई (दौसा). राजस्थान में बांदीकुई (दौसा) के आभानेरी के पास 2 साल की बच्ची 200 फीट गहरे बोरवेल में गिरी थी, जिसे साढ़े 7 घंटे बाद देसी जुगाड़ से बाहर निकाला गया। मासूम की मां उसे देखते ही खुशी से रो पड़ी। उसने अपनी बेटी को सीने से लगा लिया। एंबुलेंस से बच्ची को हॉस्पिटल ले जाया गया है। वह स्वस्थ बताई जा रही है। सूचना मिलते ही प्रशासन की टीम मौके पर पहुंच गई थी और बच्ची को निकालने के प्रयास शुरू कर दिए गए थे। मासूम 100 फीट की गहराई पर नजर आई थी।  बच्ची को बचाने के लिए बाेरवेल के बगल में 100 फीट गहरा गड्‌ढा खोदा जा रहा था। करीब 50 फीट तक गड्‌ढा खोदा जा चुका था। रस्सी से बांध कर पानी की बोतल बच्ची तक पहुंचाई गई थी। पानी पीने के लिए बोतल पर निप्पल भी लगी हुई थी। यह सारी कवायद कैमरे में दिख रही थी। बच्ची को सकुशल देख परिवार वालों के साथ ही टीम ने भी राहत की सांस ली थी। गांव में देवनारायण गुर्जर की बेटी अंकिता सुबह अपने घर के बाहर खेल रही थी। घर के पास ही एक ओपन बोरवेल है। खेलते-खेलते अचानक वह उसी बोरवेल में गिर गई। काफी देर तक बच्ची घर के बाहर नजर नहीं आई तो परिवार वाले परेशान हो गए। उन्होंने उसकी तलाश शुरू की। इसी बीच, बोरवेल से उसके रोने की आवाज आई। उन्होंने तुरंत इसकी सूचना प्रशासन को दी। इसके बाद एसडीआरएफ की टीम पहुंची थी। थोड़ी देर के लिए तेज बारिश की वजह से रेस्क्यू ऑपरेशन रोकना पड़ा था। बाद में एसडीआरएफ की टीम भी बच्ची को बचाने के लिए पहुंच गई थी। बच्ची के मूवमेंट पर नजर रखने के लिए सीसीटीवी कैमरा बोरवेल में डाला गया था। कैमरा दिखते ही बच्ची ने उसे पकड़ने की भी कोशिश की। इधर, जैसे ही मां को पता चला तो वह भी उसे देखने मौके पर पहुंच गई थी। रेस्क्यू टीम ने बताया कि बच्ची मूवमेंट कर रही थी और कैमरे को पकड़ने की भी कोशिश की थी। मासूम को एसडीआरएफ टीम ने देसी जुगाड़ से सुरक्षित निकाला। यह देसी जुगाड़ जालोर जिले के बागोड़ा क्षेत्र के रहने वाले मादाराम की तकनीक पर बनाया गया। मादाराम इससे पूर्व सात बार बोरवेल में फंसे मासूमों को निकाल चुके हैं। देसी जुगाड़ के लिए बराबर लंबाई के पाइप जैसे रॉड लिए जाते हैं। इनको 10-10 फीट पर बांधा जाता है और लास्ट में एक छल्ला होता है। छल्ले लगी रॉड को बोरवेल में उतारा जाता है। इस पर कैमरा भी जोड़ा जाता है। इससे पता चलता है कि बच्चा जुगाड़ में फंसा या नहीं। मास्टर रस्सी का कंट्रोल बाहर खड़े साथी के पास रहता है। इस पूरे स्ट्रक्चर को बोरवेल में उतारा जाता है। जैसे ही यह स्ट्रक्चर बच्चे पर जाता है। तो उस मास्टर रस्सी को बाहर से खींचा जाता है, जिससे बच्चा उसमें फंस जाए। जैसे ही बच्चा उसमें फंसता है, बच्चे को बाहर खींच लिया जाता है। अंकिता के दादा कमल सिंह (65) ने बताया, ‘ये बोरवेल दो साल पहले खोदा गया था, लेकिन वो सूखा निकला। तब इस बोरवेल को ढक्कन लगाकर छोड़ दिया गया। आज सुबह ही मैंने बोरवेल में मिट्टी भरने के लिए ढक्कन खोला था। करीब 11 बजे तक बोरवेल में 100 फीट तक मिट्टी भी भर दी थी। उसके बाद मैं कमरे में थोड़ा आराम करने चला गया और पीछे से अंकिता खेलते हुए बोरवेल के पास पहुंची और गिर गई।’ बता दें कि बोरवेल घर के चबूतरे पर ही था। बच्ची का पिता डूंगरपुर में है। वह वहां ठेकेदारी करता है। इधर, घर के बाहर खड़ी मासूम की मां का रो-रोकर बुरा हाल हो गया था। वह बार-बार प्रार्थना कर रही थी कि उसकी बेटी सकुशल बाहर निकाल ली जाए। आस-पड़ोस के लोग और रिश्तेदार उसे हिम्मत बंधा रहे थे।

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