chhatteesagadh-madhyapradesh mein kaangres lahar, satta se baahar dikh rahee hai bhaajapa
जयपुर। राजस्थान की भाजपा सरकार की ओर से भ्रष्ट लोकसेवकों को राहत देने वाले और मीडिया पर पाबंदी लगाने वाले विधेयक को लेकर विरोध शुरु हो गया है। मीडिया तो इसके विरोध में है, साथ ही अब राजनीतिक दल और सामाजिक संगठन भी विरोध में उतर गए हैं। भाजपा सरकार सोमवार को विधानसभा सत्र के दौरान एक विधेयक पेश कर रही है, जिसमें भ्रष्ट लोकसेवकों (जज, अधिकारी व कर्मचारी) के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति नहीं मिलने तक उन भ्रष्ट अफसरों के नाम, फोटो व समाचार प्रकाशित नहीं करने के प्रावधान है। ऐसे करने पर दो साल की सजा और जुर्माने के प्रावधान भी किए है, जो सीधे तौर पर मीडिया पर हमला बताया जा रहा है और एक तरह से भ्रष्ट अफसरों और लोकसेवकों को बचाने वाला विधेयक। कांग्रेस व दूसरे संगठन इसे काला कानून बता रहे हैं, जो भ्रष्टाचार में लिप्त दागी अफसरों को बचाने के तौर पर यह विधेयक काम आएगा। पूर्व सीएम अशोक गहलोत, पीसीसी चीफ सचिन पायलट, नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी, पीयूसीएल अध्यक्ष कविता श्रीवास्तव इस विधेयक को काला कानून बता चुकी है। इसके विरोध का ऐलान कर दिया है। कांग्रेस ने कह दिया है कि इस विधेयक का सदन में पुरजोर विरोध करेंगे।
आज से कांग्रेस ने जिला मुख्यालयों पर भी प्रदर्शन शुरु कर दिया है. पीयूसीेल ने इस विधेयक को हाईकोर्ट में चुनौती देने का ऐलान किया है। उधर, इस विधेयक को लेकर आज कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने तंज कसा। राहुल गांधी ने आज टिवट्र पर ट्वीट किया है, सीएम मेडम, हम २१वीं सदी में है, ना कि १८१७ में है। वे बड़ी बिनम्रता से कह रहे हैं कि वे इस विधेयक को वापस ले। राहुल गांधी के ट्वीट से राजस्थान सरकार का यह विधेयक देश भर में सुर्खियों में आ गया है। कांग्रेस ने सड़क से सदन तक विरोध का ऐलान कर दिया है। गौरतलब है कि सीआरपीएससी की धारा १५६ में संशोधन करने के लिए यह विधेयक लाया जा रहा है। यह विधेयक सोमवार को पेश होगा, जिसमें किसी लोकसेवक पर भ्रष्टाचार के आरोप लगने पर तब तक उस भ्रष्ट लोकसेवक के नाम, पता और फोटो व खबर छापने पर पाबंदी रहेगी, जब तक सरकार उस लोकसेवक के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति ना दे। यह अभियोजन स्वीकृति १८० दिन में दी जाएगी। १८० दिन में अभियोजन स्वीकृति नहीं मिलने पर लोकसेवक के खिलाफ स्वत- स्वीकृति मानी जाएगी। जब तक अभियोजन स्वीकृति नहीं मिलेगी, तब तक कोर्ट भी केस की जांच व सुनवाई के आदेश नहीं दे पाएगी। इसके लिए पहले सरकार या विभाग से अनुमति लेनी होगी।

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