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-बाल मुकुन्द ओझा
गद्दार और वफादार के अंतर कलह के बीच राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार अपने कार्यकाल के चार साल 17 दिसंबर 2022 को पूरे करने जा रही है। गहलोत ने इस अवधि में मुख्यमंत्री की एक अदद कुर्सी के पीछे कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के ओहदे को ठुकरा दिया। गाँधी परिवार ने अपने सबसे वफादार साथी को कांग्रेस अध्यक्ष बनाने की पेशकश की थी। इस बीच राहुल गाँधी भारत जोड़ों यात्रा पर राजस्थान में है और उनके चार साल के जश्न में भी शामिल होने की घोषणा की गई है। अशोक गहलोत 17 दिसंबर, 2018 को तीसरी बार राजस्थान के मुख्यमंत्री बने थे। इस मौके पर सरकार 17 दिसंबर से 28 दिसंबर तक पूरे 12 दिन प्रदेश में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन करेगी। अशोक गहलोत के मुख्यमंत्रित्व के पहले दो कार्यकाल जितने आत्मविश्वास पूर्ण थे उनके मुकाबले वर्तमान कार्यकाल के चार वर्ष घबराये हुए से लगते है। इस दौरान गहलोत ने कोरोना संकट को तो काबू में कर लिया मगर आंतरिक विग्रह ने उनके तन मन को घायल कर दिया
जिसके फलस्वरूप एक सौम्य मुख्यमंत्री को अपने ही एक साथी को गद्दार, निक्कमा और नकारा घोषित करना पड़ा। यह आरोप भी लगाया गया की विधायकों को सरकार गिराने के लिए दस दस करोड़ रुपये दिये गये थे। गहलोत का आरोप है जिस आदमी के पास 10 विधायक नहीं हैं, जिसने ​​बगावत की हो, जिसे गद्दार नाम दिया गया है, उसे लोग कैसे स्वीकार कर सकते हैं। दूसरी तरफ बागी नेता सचिन पायलेट कह रहे है वे प्रदेश में सरकार रिपीट करने के प्रयासों में जुटे है। असंतुष्टों ने जब भी सिर उठाया है तब वे खुद तो डुबे ही है साथ ही अपनी सरकार को भी ले डूबे। ताज़ा उदाहरण घनश्याम तिवाड़ी का हमारे सामने है। तिवाड़ी की पार्टी पिछले विधानसभा चुनाव में बुरी तरह हारी मगर वसुंधरा को भी जीतने नहीं दिया। इसका खामियाजा भाजपा को उठाना पड़ा। गहलोत के सामने पांच साल में सरकार बदलने का रिवाज़ मौजूद है। जो विशेषकर हिमाचल चुनाव के बाद किसी सदमे से कम नहीं है। किसी भी सरकार की गति, प्रगति और अर्जित उपलब्धियों के लेखे जोखे के लिए चार साल पर्याप्त होते है। गहलोत सरकार का दावा है कि इन चार सालों में सरकार ने जनता की सरकार के रूप में संवेदनशीलता से कार्य किये और यह उसीका परिणाम है कि आज समाज के सभी वर्ग सरकार के कार्यों से बेहद संतुष्ट है। वहीँ विपक्ष का आरोप है कि सरकार की जनविरोधी नीतियों से सम्पूर्ण समाज खफा है। सरकार नाम की चीज़ कहीं दिखाई नही दे रही। गहलोत 17 दिसंबर, 2018 को तीसरी बार राजस्थान के मुख्यमंत्री बने। गहलोत शासन के वर्तमान कार्यकाल के 4 साल के कार्यों की समीक्षा करें तो पाएंगे इस अवधि में उनके आत्मविश्वास में कमी आयी है और वे बात बात पर अपनों के साथ केंद्र और मोदी पर हमलावर होते दिखाई दे रहे है। राजस्थान जैसे प्रदेश में जहां की राजनीति लगातार क्षत्रियों, जाटों और ब्राह्मणों के प्रभाव में रही हो, वहां जाति से माली और खानदानी पेशे से जादूगर के बेटे ने अपने आपको कांग्रेस के सबसे बड़े नेता के रूप में स्थापित कर लिया। वो 1998 में ऐसे समय पहली बार मुख्यमंत्री बने, जब प्रदेश में ताकतवर जाट और प्रभावशाली ब्राह्मण नेताओं का बोलबाला था। पहले कार्यकाल में वरिष्ठ नेता परसराम मदेरणा और नवल किशोर शर्मा के मुकाबले कांग्रेस आलाकमान ने गहलोत को तरजीह देकर सरकार का मुखिया बनाया था। तब उन्होंने भरपूर आत्मविश्वास के साथ अपनी सरकार चलाई। दूसरा कार्यकाल भी बिना विघ्न बाधा के पूरा किया। 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद सचिन पायलेट को प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपी गयी थी। पांच साल तक पायलेट जनता के बीच संघर्ष करते रहे और संगठन को मजबूत बनाते हुए 2018 में एक बार फिर कांग्रेस को सत्ता पर काबिज करवाया मगर मुख्यमंत्री की गद्दी तक नहीं पहुँच पाए। कांग्रेस आलाकमान ने पायलेट के संघर्ष को नजरअंदाज करते हुए एक बार फिर अपने सिपहसालार को मुख्यमंत्री
की कुर्सी पर बैठा दिया। भाजपा ने गहलोत के चार साल के शासन को विफलताओं से भरा करार दिया है। विपक्षी नेताओं का कहना है इस अवधि में भ्रष्टाचार और और दुष्कर्म के अपराधों में प्रदेश सिरमौर है। युवाओं को बेरोजगारी भत्ता देने
में सरकार विफल रही है। चहुंओर अराजकता का माहौल है। गहलोत के ये चार साल निश्चय ही चुनौतीपूर्ण रहे है। मगर इससे कोई इंकार नहीं कर सकता की गहलोत के पहले के दो कार्यकालों के मुकाबले वर्तमान चार सालों में गहलोत ने अपने सियासी विश्वासों को खोया है। अपने चार साल की उपलब्धियों के बूते गहलोत सरकार अगले विधानसभा चुनावों में जीतने का दावा कर रही है। मगर कांग्रेस के आपसी घमासान को देखते हुए उनका यह दावा किसी के गले नहीं उतर रहा है।

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