-बाल मुकुन्द ओझा
देश में 14 वां राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस 24 अप्रैल को मनाया जायेगा। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आजादी का अमृत महोत्सव के हिस्से के रूप में संयुक्त प्रगति (समावेशी विकास) की विषय-वस्तु के तहत मध्य प्रदेश के रीवा में 24 अप्रैल 2023 को राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस के दौरान नौ अभियानों का शुभारंभ करेंगे। नौ अभियानों में प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण के तहत समग्र आवास, जिला स्तर पर वित्तीय साक्षरता, ग्राम पंचायत स्तर पर डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देना और स्वयं सहायता समूह नेटवर्क में पात्र ग्रामीण महिलाओं का सामाजिक जुड़ाव तथा मनरेगा के तहत नदी के किनारों पर वृक्षारोपण अभियान शामिल है। भारत में प्रचीन काल से ही पंचायती राज व्यवस्था आस्तित्व में रही हैं। सबसे पहले ब्रिटिश शासन काल में 1882 में तत्कालीन वायसराय लार्ड रिपन ने स्वायत्त शासन की स्थापना का प्रयास किया लेकिन वह सफल नहीं हुआ। इसके उपरांत ब्रिटिश शासकों ने स्थानीय स्वशासन संस्थाओं की स्थिति की जांच करने तथा उसके संबंध में सिफारिश करने के लिए 1882 तथा 1907 में शाही आयोग का गठन किया, जिसके तहत 1920 में संयुक्त प्रांत, असम, बंगाल, बिहार, मद्रास और पंजाब में पंचायतों की स्थापना के लिए कानून बनाए गए। पंचायती राज
व्यवस्था को लोकतांत्रिक जामा पहनाने का काम आजादी के बाद शुरू हुआ। भारत की शासन व्यवस्था में ग्राम पंचायत बहुत ही पुरानी अवधारणा है गाँधी जी के शब्दों में अगर हम इसे समझने की कोशिश करें तो इसे बेहतर ढंग से समझा जा सकता है। भारत की आत्मा गाँवों में बसती है। स्वतंत्रता से पूर्व उन्होंने पंचायती राज की कल्पना करते हुए कहा था कि सम्पूर्ण गाँव में पंचायती राज होगा, उसके पास पूरी सत्ता और अधिकार होंगे। अर्थात सभी गाँव अपने-अपने पैरों पर खड़े होंगे और अपनी जरूरतों की पूर्ति उन्हें स्वयं करनी होगी। साथ ही दुनिया के विरुद्ध अपनी रक्षा स्वयं करनी होगी यही ग्राम स्वराज में पंचायती राज हेतु मेरी अवधारणा है। स्वतंत्र भारत में पंचायतीराज व्यवस्था महात्मा गांधी की देन है। वे स्वतंत्रता आंदोलन के समय से ही ब्रिटिश सरकार पर पंचायतों को पूरा अधिकार देने का दबाव बना रहे थे। आजादी के बाद देश में लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए प्रयास हुए । इन्हीं प्रयासों में से एक है-पंचायतीराज व्यवस्था की स्थापना। पंचायत राज व्यवस्था को मज़बूत बनाने की सिफ़ारिश करने के लिए 1957 में बलवंत राय मेहता की अध्यक्षता में ग्रामोद्धार समिति का गठन किया गया। इस समिति ने गाँवों के समूहों के लिए प्रत्यक्षतः निर्वाचित पंचायतों, खण्ड स्तर पर निर्वाचित तथा नामित सदस्यों वाली पंचायत समितियों तथा ज़िला स्तर पर ज़िला परिषद् गठित करने का सुझाव दिया गया। मेहता समिति की सिफ़ारिशों को 1 अप्रैल, 1958 को लागू किया गया और इस अधिनियम के प्रावधानों के आधार पर 2 अक्टूबर,1959 को राजस्थान के नागौर ज़िले में पंचायती राज का उदघाटन किया गया। देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने साल 1959 में दो अक्टूबर गांधी जयन्ती के दिन पंचायतीराज व्यवस्था की नींव रखी थी। 1993 में संविधान में 73वां संशोधन करके पंचायत राज व्यवस्था को संवैधानिक मान्यता दी गई। बाद में संविधान में भाग 9 को फिर से जोड़ कर तथा इस भाग में सोलह नए अनुच्छेदों को मिलाकर संविधान में 11वीं अनुसूची जोड़कर पंचायत के गठन, पंचायत के सदस्यों के चुनाव, सदस्यों के लिए आरक्षण तथा पंचायत के कार्यो के संबंध में व्यापक प्रावधान किए
गए। पंचायतीराज व्यवस्था ने विकास का विकेंद्रीकरण करके उसका लाभ आम जनता तक पहुंचाने में अहम भूमिका का निर्वहन किया है। आज ग्रामीण जीवन की सकारात्मक प्रगति से साफ है कि जिस उद्देश्य से पंचायतीराज व्यवस्था का ताना-बाना बुना गया था, वह अपने लक्ष्य को आसानी से साध रहा है। प्रत्येक पंचायत एक छोटा गणराज्य होता है, जिसकी शक्ति का स्रोत पंचायतीराज व्यवस्था है। भारतीय लोकतंत्र की सफलता भी इसी गणराज्य में निहित है। भारत गांव और ग्रामीण के विकास और उन्नति के लिए वहां की ग्राम पंचायत की महत्वपूर्ण भूमिका है। यदि देश की हर एक ग्राम पंचायत पूरी ईमानदारी और सजगता से अपने कर्तव्य पूरे करे, तो फिर कोई ग्रामीण रोज़ी-रोटी की तलाश में शहरों में नहीं भटकेगा।

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