-बाल मुकुन्द ओझा
मां का दूध शिशु के लिए अमृत समान है। शिशु एवं बाल मृत्यु दर में कमी लाने के लिए आवश्यक है कि जन्म के एक घंटे के अंदर शिशु को स्तनपान प्रारम्भ करा दिया जाए। मां का पहला गाढ़ा और पीला दूध कुदरती टीके का काम करते हुए तमाम बीमारियों से शिशु की रक्षा करता है। हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी अगस्त माह के प्रथम सप्ताह में विश्व स्तनपान दिवस पूरी दुनिया में मनाया जाएगा। भारत में भी विश्व स्तनपान सप्ताह प्रत्येक वर्ष 1-7 अगस्त तक मनाया जाता है। विश्व स्तनपान सप्ताह 2022 की थीम- स्तनपान शिक्षा और सहायता के लिए कदम बढ़ाएं’ रखी गई है। तन मन की सुरक्षा पूरी मानव जाति की जिम्मेदारी है। इस अवसर पर बच्चों के सर्वागीण विकास एवं मृत्यु दर में कमी लाने के लिए जन्म से 6 माह तक केवल स्तनपान को बढ़ावा देने के लिए आम लोगों को जागरूक किया जाता है। माँ का दूध ना मिल पाने की वजह से हर वर्ष आठ लाख 20 हजार बच्चों की मौत होती है और वैश्विक अर्थव्यवस्था को 300 अरब डॉलर का नुकसान होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि स्तनपान कराने से कोविड-19 संक्रमण होने का खतरा नगण्य है और इस प्रकार का कोई भी मामला अब तक दर्ज नहीं किया गया है। प्रसव के दौरान जिन महिलाओं ने अपने शिशुओं को स्तनपान कराया है उनमें ब्रेस्ट कैंसर का खतरा बहुत कम होता है। एक वैश्विक रिपोर्ट के अनुसार हर साल स्तन कैंसर के लगभग 21 लाख मामले मिलते है। भारत में महिलाओं में होने वाले कैंसर रोगों में 14 प्रतिशत ब्रेस्ट कैंसर होता है। मॉं का दूध बच्चों को बड़ी से बड़ी बीमारी से लड़ने में मदद करता है और उन्हें कई प्रकार के रोगों से बचाता है। नवजात शिशुओं के लिए माँ का दूध अमृत के समान है। माँ का दूध शिशुओं को कुपोषण व अतिसार जैसी बीमारियों से बचाता है। इससे शिशु मृत्युदर में भारी गिरावट लाई जा सकती है। डब्ल्यूएचओ ने सिफारिश की है कि माँ का पीला व गाढ़ा कोलोस्ट्रम वाला दूध नवजात शिशु के लिए सर्वोत्तम आहार है। विशेषज्ञों का मानना है कि जन्म के 1 घंटे के भीतर ही यदि शिशु को स्तनपान कराया जाए तो हजारों नवजातों को मरने से बचाया जा सकता है। सामान्यता बच्चे को 6 महीने की अवस्था तक स्तनपान कराने की अनुशंसा की जाती है। शिशु को 6 महीने की अवस्था और 2 वर्ष अथवा उससे अधिक समय तक स्तनपान कराने के साथ-साथ पौष्टिक पूरक आहार भी देना चाहिए। स्तन में दूध पैदा होना एक नैसर्गिक प्रक्रिया है जब तक बच्चा दूध पीता है तब तक स्तन में दूध पैदा होता है एवं बच्चे के दूध पीना छोड़ने के पश्चात कुछ समय बाद अपने आप ही स्तन से दूध बनना बंद हो जाता है।

स्तनपान के व्यवहार को अपनाकर 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों में होने वाली 13 प्रतिशत मृत्यु को बचाया जा सकता है। अधिक समय तक स्तनपान करने वाले बच्चों की बुद्धि उन बच्चों की अपेक्षा 3 प्वाईंट अधिक होती है जिन्हें मां का दूध थोड़े समय के लिए प्राप्त होता है। स्तनपान स्तन कैंसर से होने वाली मृत्यु को भी कम करता है। स्तनपान शिशु को अपने शरीर का तापमान सामान्य रखने में मदद करता है। उसे गर्माहट प्रदान करने के अलावा, त्वचा से त्वचा का स्पर्श आपके और शिशु के बीच के भावनात्मक बंधन को और मजबूत बनाता है। स्तनदूध शिशु की इनफेक्शन से लड़ने में मदद करता है। इसमे रोगप्रतिकारक होते हैं, जो शिशु की जठरान्त्रशोथ, सर्दी-जुकाम, छाती में इनफेक्शन और कान के संक्रमण आदि से रक्षा करते हैं। स्तनपान करवाने से बचपन में शिशु की सांस फूलने और गंभीर एग्जिमा विकसित होने का खतरा कम हो सकता है।
पिछले वर्षों में कामकाजी माताओं की संख्या बढ़ने के साथ ही स्तनपान को नजरअंदाज किया जाने लगा और बॉटल से ऊपर के दूध को प्राथमिकता दी जाने लगी। भागदौड़ भरी जिंदगी में कामकाजी महिलाओं की संख्या बढ़ने से स्तनपान में गिरावट आयी है। शिशुओं को ऊपरी दूध पिलाया जा रहा है जो बच्चों के लिए कभी-कभी घातक होता है। इसका अंदाजा बढ़ रहे कुपोषित बच्चों की तादाद से लगाया जा सकता है। बॉटल फीडिंग व ऊपर के दूध से जुड़े खतरों के बारे में लोग ज्यादा नहीं जानते। इन सभी बातों को लेकर जागरूकता बढ़ाने के लिए विश्व के विभिन्न देशों और वहां के विभिन्न समुदायों और तबकों में स्तनपान को बढ़ावा देने के लिए प्रयास किए जाते हैं। मां के दूध में सभी पोषक तत्व बिलकुल सही अनुपात में होते हैं, इसका कोई विकल्प हो ही नहीं सकता।

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