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जयपुर. जयपुर के जगदगुरु रामानंदाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय में कॉपियों के मूल्यांकन में हुई अनियमितता विवाद का विषय बनी हुई है। यह रहस्य तब खुला जब २७ जून को परीक्षा परिणाम जारी हुआ। इसके बाद एक के बाद एक पर्दा उठता गया कि एक परीक्षक द्वारा दिए गए नंबर दूसरे परीक्षक के विपरीत हैं। पहले मूल्यांकन में विद्यार्थियों को न्यूनतम 40% से 72% अंक दिए गए थे। जबकि दूसरे मूल्यांकन में ये अंक घटकर शून्य तक आ गए। इससे संस्कृत विश्वविद्यालय की मूल्यांकन प्रक्रिया पर सवालिया निशान उठे हैं। दूसरे मूल्यांकन की जानकारी तब आई जब विद्यार्थियों ने अपेक्षाओं से नीचे आये अंकों के बारे में शिकायत की।
परीक्षा विभाग के रिकार्ड के अनुसार विश्वविद्यालय में एक बार जाँची जा चुकी कॉपियों की फिर से जांच के लिए कोई प्रावधान नहीं है, जब तक की जांच प्रक्रिया में कोई गंभीर आपत्ति नहीं देखी जाती है। एक बार मूल्यांकन हो जाने के बाद छात्र के अनुरोध पर ही फिर से कॉपी जांची जा सकती है। लेकिन संस्कृत विवि में कुछ और ही खेल हुआ। दर्शन विभाग के छात्रों की उत्तर पुस्तिकाएं पहले जयपुर के राजकीय महाराज आचार्य संस्कृत महाविद्यालय में दर्शन विभाग के प्रोफेसर गोपाल मिश्र द्वारा जाँची गई, जिन्होंने 50 अंकों में से न्यूनतम 24 तथा अधिकतम 36 अंक दिए। ये कॉपियां बिना किसी शिकायत के दुबारा जांच दी गई।

पुनः जाँच करने को सही बताते हुए केंद्रीय मूल्यांकन के संयोजक प्रो. भास्कर शर्मा ने तर्क दिया कि मिश्र द्वारा जाँची गई कॉपियों में कई अनियमितताएं थीं। यहाँ तक कि विशेषज्ञों की एक टीम ने भी अनियमितता मानी, इसी कारण गोपाल मिश्र द्वारा की गई जाँच रद्द करनी पड़ी। बाद में कुलपति प्रो. विनोद शास्त्री के निर्देशानुसार उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन के लिए दिल्ली की रानी दाधीच को नियुक्त किया गया। दूसरी मूल्यांकनकर्ता रानी दाधीच ने ऐसे कई छात्रों को शून्य नंबर दे दिए। जिन्हें गोपाल मिश्र ने 70% तक अंक दिए थे। यह जरूर अपवाद है कि यूनिवर्सिटी के छात्रसंघ के अध्यक्ष भोलूदास के नंबर बढे।
विश्वविद्यालय के रिकॉर्ड में है कि दूसरे मूल्यांकन के लिए रानी दाधीच को नियुक्त करने का परीक्षा नियंत्रक नरेंद्र चतुर्वेदी ने विरोध किया। चतुर्वेदी का तर्क था कि मूल्यांकन उसी व्यक्ति द्वारा किया जाना चाहिए जिसका शैक्षिक योग्यता सहायक प्रोफेसर के बराबर हो तथा उसे इस पद का तीन वर्ष का अनुभव भी हो। लेकिन विवि ने कुलपति विनोद शास्त्री ने 15 जुलाई को परीक्षा नियंत्रक नरेंद्र चतुर्वेदी को ही अनुशासन कारणों से निलंबित कर दिया। जिसका शिक्षकों तथा कर्मचारियों ने विरोध किया। छात्रों की बिना शिकायत के ही बिना योग्यता के कर्मचारी से मूल्यांकन करने का कोई कारण नहीं है। इस बीच, छात्रों ने 17 जुलाई को कुलपति को प्रार्थना पत्र लिखकर पूरे मामले की जांच की मांग की है। विश्वविद्यालय की एक छात्रा अपर्णा शर्मा ने कहा कि “मैंने हमेशा फर्स्ट डिवीजन हूँ पर इस बार मुझे 4 अंक मिले हैं, जिससे मैं भारी परेशान तथा हताश हूँ। मैं राज्यपाल को शिकायत करूंगी।” दर्शन विभाग के अध्यक्ष रामेश्वरनाथ द्विवेदी ने कुलपति को चिट्ठी लिखकर पूरे मामले की न्यायिक जाँच की मांग की है।
इधर, छबड़ा विधायक प्रताप सिंह सिंघवी ने पूरी घटना के लिए लापरवाह अधिकारियों के विरुद्ध कार्यवाही की मांग करते हुए उच्च स्तरीय जांच की मांग की है। सिंघवी ने राज्यपाल कल्याण सिंह तथा मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को पत्र लिखकर संस्कृत विश्वविद्यालय में तुरंत हस्तक्षेप की भी मांग की है। जनप्रहरी एक्सप्रेस ब्यूरो।

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