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नयी दिल्ली : न्यायाधीशों की नियुक्ति से जुड़े दिशा निर्देश तय करने वाले एक महत्वपूर्ण दस्तावेज के लंबित होने के साथ विधि मंत्रालय ने गुजरे साल न्यायिक नियुक्तियों को लेकर न्यायपालिका के साथ अपनी लड़ाई और तेज कर दी। साथ ही उसने तीन तलाक पर रोक लगाने के लिए मसौदा कानून लाने और अप्रवासी भारतीयों को प्रॉक्सी के जरिये वोट देने की मंजूरी के लिए प्रमुख कदम उठाए।

उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति की खातिर नये मेमोरेंडम ऑफ प्रोसिजर (एमओपी) को अंतिम रूप देने को लेकर कार्यपालिका एवं न्यायपालिका के बीच मतभेदों को सुलझाने की राह में विधि मंत्रालय और उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम कहीं नहीं दिख रहे।उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने 16 दिसंबर, 2015 को इस तरह की नियुक्तियों के लिए दिशा निर्देश तय करने वाले दस्तावेज से संबंधित एमओपी के पक्ष में फैसला सुनाया था जिसके बाद विधि मंत्रालय ने एक मसौदा तैयार किया जिसे कॉलेजियम के पास भेज दिया गया।

लेकिन सरकार और न्यायपालिका के बीच मतभेद होने के साथ न्यायिक नियुक्तियां अब भी पुराने एमओपी के आधार पर हो रही हैं।जैसे न्यायिक नियुक्तियों को लेकर मतभेद ही काफी नहीं थे, कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद और प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा शासन के तीनों अंगों के बीच ‘‘अधिकारों के बंटवारे’’ को लेकर खुलकर लड़े।दोनों के बीच जब विवाद हुआ तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी वहां मौजूद थे और उन्होंने दोनों अंगों से लोगों की भलाई के लिए मिलकर काम करने की अपील की।बीता साल अटॉर्नी जनरल, सॉलिसिटर जनरल और दोनों अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के अकस्मात इस्तीफे देने का भी गवाह रहा।

जहां के के वेणुगोपाल ने अटॉर्नी जनरल के पद पर मुकुल रोहतगी की जगह ली, सरकार ने सॉलिसिटर जनरल के पद से इस्तीफा देने वाले रंजीत कुमार की जगह अब तक किसी को नियुक्त नहीं किया है।न्यायपालिका के साथ विवाद के बीच विधि मंत्रालय ने तीन तलाक के चलन को अपराध के दायरे में लाने का विधेयक पेश किया। सरकार गत गुरूवार को लोकसभा में विधेयक पारित कराने में सफल रही और उसने कहा कि पिछले साल अगस्त में उच्चतम न्यायालय द्वारा निरस्त किए जाने के बावजूद ‘तलाक ए बिद्दत’ जारी है और उसके बाद से तीन तलाक के 66 मामले सामने आए हैं। विधेयक के तहत तीन तलाक देने वाले पति के लिए तीन साल तक की कैद का प्रावधान है। मसौदा कानून में अवैध एवं निष्प्रभावी घोषित कर दिए गए तीन तलाक को लेकर अब राज्यसभा की मंजूरी का इंतजार है।

भारतीय चुनावों में अप्रवासी भारतीयों के लिये मतदान के मुद्दे पर एक बार फिर से बहस हो रही है। सरकार सैन्यकर्मी वोटरों की तर्ज पर उन्हें भी प्रॉक्सी मतदान के अधिकार देने के लिए लोकसभा में विधेयक ला रही है।विधेयक में कहा गया है कि विदेशों में रहने वाले मतदाताओं को वोट डालने की खातिर भारत आने के जरूरी प्रावधान से ‘‘दिक्कतें’’ हो रही हैं।इस समय अप्रवासी भारतीय – विदेशों में रहने वाले या काम करने वाले लोग जिन्होंने भारतीय नागरिकता नहीं छोड़ी है – उन निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान कर सकते हैं जहां वे पंजीकृत हैं।इसका मतलब है कि उन्हें पहले मतदाताओं के रूप में पंजीकरण कराना होगा और फिर मतदान के दिन मौजूद होने के लिए भारत के लिए लंबी उड़ान भरनी होगी।

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