जयपुर। राजस्थान हाईकोर्ट ने पूर्व मुख्यमंत्री को आजीवन सुविधाएं मुहैया कराने के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर मुख्य सचिव और प्रमुख विधि सचिव को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। न्यायाधीश केएस झवेरी और न्यायाधीश वीके व्यास की खंडपीठ ने यह आदेश मिलाप चंद डांडिया की ओर से दायर जनहित याचिका को स्वीकार करते हुए दिए। याचिका में अधिवक्ता विमल चौधरी ने अदालत को बताया कि राज्य सरकार ने गत 18 मई को राजस्थान मंत्री वेतन (संशोधन) अधिनियम, 2017 लागू किया था। इसके तहत 1956 के अधिनियम में संशोधन करते हुए पांच साल तक लगातार मुख्यमंत्री रहने वाले पूर्व मुख्यमंत्री को आजीवन निवास, कार, टेलीफोन और स्टाफ सहित अन्य सुविधाएं देने का प्रावधान किया गया है। इसी तरह किसी भी अवधि के लिए बने मुख्यमंत्री को यदि पूर्व के किसी आदेश से सुविधाएं मिल रही हैं तो उन्हें भी इस संशोधन अधिनियम से जारी रखने का प्रावधान किया गया। याचिका में कहा गया कि यह संशोधन अधिनियम संविधान के प्रावधानों के खिलाफ है। संविधान में वर्तमान मुख्यमंत्री और मंत्रियों के ही वेतन-भत्तों के संबंध में कानून बनाने के बारे राज्य सरकार को अधिकार दिए गए हैं। इसके बावजूद भी संविधान के प्रावधानों के खिलाफ जाकर राज्य सरकार की ओर से यह संशोधन अधिनियम लागू किया है। इसके अलावा इसकी अधिसूचना राज्यपाल के नाम से भी जारी नहीं की गई है। जबकि नियमानुसार राज्य सरकार के सभी आदेश और अधिसूचनाएं राज्यपाल के नाम से जारी की जाती है।
ये दी गई हैं सुविधाएं
– मंत्रियों के समान मकान या किराया
– स्वयं या परिजनों के लिए देशभर में यात्रा करने के लिए सरकारी कार
– टेलीफोन
– निजी सचिव, निजी सहायक या तय मासिक राशि, एक लिपिक ग्रेड-1, दो सूचना सहायक या तय मासिक राशि, एक चालक या तय मासिक राशि, तीन चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी या तय मासिक राशि। इसके अलावा राज्य सरकार अतिरिक्त कर्मचारी अस्थाई रूप से उपलब्ध करा सकती है।