आज की राजनीति अमर्यादित हो गई है जहाँ नेता अपनी मर्यादाओं का उल्लंघन बड़ी आसानी से करते दिखाई दे रहे हैं और कौन कब क्या बोल जाए कोई नहीं कह सकता। वर्तमान राजनीतिक परिवेश संक्रमण काल के दौर से गुजर रहा है जिसमें मर्यादाओं का कोई स्थान नही है और इससे भी आश्चर्य की बात यह है कि ऐसे नेताओं को अपनी हरकतों पर जरा भी मलाल नही होता और बड़ी शान से अपने घटिया बयानों पर कुतर्क करते नजर आते हैं।ऐसे ही हालात आगे भी रहे तो राजनीति में गम्भीरता और शिष्टाचार की बातें किवदन्तियां बनकर रह जाएंगे।
राजनीति में नेताओं को गम्भीरता शालीनता के प्रतीक रहे दिवंगत प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी से सीखना चाहिए। ये दोनों भारत की राजनीति में गम्भीरता के लिए अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं।स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने राजनीतिक जीवन का अधिकांश समय विपक्ष में ही बिताया था लेकिन विपक्ष में होते हुए उन्होंने कभी अपनी मर्यादाओं का उल्लंघन नहीं किया।उनके खिलाफ बोलने वालों को उन्होंने बड़ी शालीनता से जवाब दिया और वो भी बड़े सम्मान के साथ क्योंकि स्वर्गीय वाजपेयी एक उच्चकोटि के साहित्यकार भी थे जिन्होंने कभी अमर्यादित भाषा का प्रयोग नही किया। उनकी इसी  विशेषता से विपक्षी भी उनका सम्मान करते थे। अटल बिहारी वाजपेयी के लिए एक बात बड़ी मशहूर थी कि उनके भाषण को सुनने के लिए विपक्षी दलों के लोग भी जाया करते थे।भारत की राजनीति में वाजपेयी जैसी विलक्षण प्रतिभा का नेता अब दुर्लभ है।यह उनकी विशेषता थी कि देश की पॉवरफुल प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी भी बड़े आदर के साथ उनके सम्मान में खड़ी हो जाती थी और लोकसभा में भी प्रश्नकाल के दौरान उनके तर्क संगत उद्बोधन को सुनना पसंद करती थी। यह वाजपेयी ही थे जिन्होंने अपनी विरोधी नेता इंदिरा गांधी को आयरन लेडी की उपाधि से सुशोभित किया था लेकिन आज की राजनीति में इतना बड़ा जिगर किसी नेता के पास नहीं है कि वो अपने विरोधी के अच्छे कार्यों की प्रशंसा मुक्तकंठ से कर सके।यहाँ तो अब अच्छे को भी बुरा साबित करने की परम्परा चल रही है जो भविष्य में बड़े खतरे की इशारा कर रही है।
वहीं राजनीति में गम्भीरता और शालीनता का एक और उदाहरण है कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी जिन्होंने कभी अमर्यादित भाषा का प्रयोग नही किया भले ही उनके विपक्षियों ने उन पर सार्वजनिक रूप से गलत बयानबाजी की हो लेकिन सोनिया की विशेषता रही है कि उन्होंने पलट कर किसी को जवाब नही दिया। मुझे आज भी सन 2004 की वह घटना याद आती है जब सोनिया गांधी के नेतृत्व में लोकसभा चुनाव जीता गया तो उनके विरोधियों के जमकर हंगामा किया कि एक विदेशी मूल की महिला को देश का प्रधानमंत्री स्वीकार नहीं किया जाएगा। इस पर सोनिया ने बड़ी गम्भीरता और शालीनता के साथ डॉक्टर मनमोहन सिंह को देश का प्रधानमंत्री बनाकर विरोधियों को बिना बोले चारों खाने चित कर दिया था और दुनिया को बता दिया था कि राजनीति की शतरंज की वो भी बड़ी खिलाड़ी हैं। आज भी उनके विरोधी उन्हें उकसाने में कोई कसर नहीं छोड़ते लेकिन उनकी खामोशी ही उनका जवाब होती है जो हर किसी नेता में सम्भव नहीं है उनकी यही विशेषता उन्हें विशिष्ट श्रेणी में खड़ा करती है।
मेरा किसी की प्रशंसा करना उद्देश्य नही है लेकिन वर्तमान राजनीति और नेताओं की बेलगाम बयानबाजी पर खामोश रहना भी मुनासिब नहीं है। अटल बिहारी वाजपेयी और सोनिया गांधी देश की राजनीति में ऐसे उदाहरण है जिनका उल्लेख करना भी आवश्यक है।क्योंकि देश की राजनीति की सुई भाजपा और कांग्रेस के आस पास ही घूमती है ये दोनों  बड़े राजनीतिक दल है। आज देश की राजनीति में नेताओं का बड़बोलापन आम बात हो गई है वे अपने विरोधियों के खिलाफ बहुत  घटिया स्तर के बयान जारी कर बड़े गर्व से सीना तान कर चलते हैं साथ ही आजकल तो विरोधियों के लिए उनके  व्यक्तिगत जीवन पर भी खुलकर बोला जाता है वो भी अमर्यादित भाषा में और हद तो जब हो जाती है कि कभी कभी अपनी ही पार्टी के साथी नेताओं से मतभेद होने पर उनके खिलाफ भी सार्वजनिक रूप से गलत बयानबाजी करने से भी बाज नहीं   आते । ऐसे में कोई भी इसे रोकने को तैयार नहीं है भले ही उनका राजनीतिक भविष्य भी खतरे में पड़ जाए। ऐसी परिस्थिति में  उनके साथ उनकी  पार्टी की छवि  खराब हो रही है और देश की भी। राजनीति में अमर्यादित भाषा का प्रयोग और व्यक्तिगत आरोप लगाना आज फैशन बनता जा रहा है जो सरासर निजता का हनन है और इसके लिए सरकार के साथ विपक्ष भी गम्भीर नही है।
भला ऐसी घटिया स्तर की राजनीति से हम आने वाली नस्ल को विरासत में क्या संदेश देंगे ? यह प्रश्न लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए गम्भीर रूप से विचारणीय है।

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