चंडीगढ़. पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह 19 सितंबर को भाजपा में शामिल होंगे। अमरिंदर सिंह उसी दिन अपनी ‘पंजाब लोक कांग्रेस’ पार्टी का भी भाजपा में विलय करेंगे। कैप्टन के साथ उनके करीबी पंजाब के 5-6 पूर्व मंत्री भी बीजेपी की सदस्यता लेंगे। भाजपा पंजाब में पार्टी के पुनर्गठन की तैयारी में हैं, क्योंकि वर्तमान भाजपा प्रदेश प्रधान अश्वनी शर्मा का कार्यकाल खत्म होने वाला है। ऐसे में पंजाब लोक कांग्रेस का बीजेपी में विलय होने के बाद पार्टी नेतृत्व कैप्टन और उनके करीबियों को पंजाब में अहम जिम्मेदारियां सौंप सकता है। जनवरी-2020 में पंजाब भाजपा इकाई के प्रधान बने अश्वनी शर्मा का 3 साल का कार्यकाल जनवरी-2023 में खत्म रहा है। हालांकि कैप्टन के पार्टी जॉइन करने और पीएलसी के विलय के बाद भाजपा हाईकमान उससे पहले ही नई राज्य कार्यकारिणी का ऐलान कर सकता है। कैप्टन अमरिंदर सिंह की पीएलसी के भाजपा में विलय की चर्चाओं ने उस समय जोर पकड़ा, जब कैप्टन ने महीनेभर पहले दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से तकरीबन पौने घंटे तक मीटिंग की थी। हालांकि मीटिंग के बाद कैप्टन ने बाहर निकलकर पंजाब लोक कांग्रेस (पीएलसी) के भाजपा में विलय संबंधी सवाल को नकारते हुए इसे केवल अटकलें बताया था। उसके बाद 30 अगस्त को अमरिंदर सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की।
प्रधानमंत्री के साथ मीटिंग के बाद कैप्टन ने ट्विटर पर लिखा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मुलाकात करके पंजाब के विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करके राज्य और देश की सुरक्षा के लिए संयुक्त रूप से काम करने का संकल्प लिया, जो हम दोनों के लिए हमेशा सर्वोपरि रहा है और रहेगा। कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पिछले साल नवजोत सिद्धू के मुद्दे पर कांग्रेस हाईकमान के साथ हुए टकराव के बाद पंजाब के सीएम पद से इस्तीफा देने के साथ ही कांग्रेस पार्टी छोड़ दी थी। उसके बाद उन्होंने ‘पंजाब लोक कांग्रेस’ (पीएलसी) पार्टी बनाई। इसी साल फरवरी में हुए पंजाब विधानसभा के चुनाव में कैप्टन भाजपा के साथ गठजोड़ करके मैदान में उतरे। हालांकि न वह खुद अपनी पटियाला सीट बचा पाए और न ही सूबे में उनका कोई दूसरा कैंडिडेट जीता। आम आदमी पार्टी की आंधी में भाजपा भी विधानसभा की महज 2 सीटें ही जीत पाई। भाजपा का पंजाब में शिरोमणि अकाली दल के साथ 24 साल से गठबंधन था, मगर मोदी सरकार के 3 खेती कानूनों के मुद्दे पर 26 सितंबर 2020 को शिरोमणि अकाली दल ने यह गठजोड़ तोड़ दिया। उस समय पंजाब भाजपा के नेता भी इस गठजोड़ को जारी रखने के हक में नहीं थे, क्योंकि अकालियों के साथ उनकी भूमिका हमेशा ‘छोटे भाई’ की रही। अकाली दल पंजाब विधानसभा की 117 में से भाजपा को सिर्फ 23 सीटें देता था।

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