Government to take steps to tackle arsenic florride, serious challenge of indiscriminate exploitation of ground water.

नयी दिल्ली। भूजल पर सिंचाई, ग्रामीण एवं शहरी पेयजल आवश्यकताओं के लिए उसके अंधाधुंध दोहन के कारण उत्पन्न गंभीर चुनौती के बीच सरकार ने इससे निपटने के लिए राष्ट्रीय जल विज्ञान परियोजना को आगे बढ़ाने, आर्सेनिक, फ्लोराइड की समस्या से निपटने, राष्ट्रीय भूजल सुधार कार्यक्रम, समग्र जल सुरक्षा के लिए उसे मनरेगा से जोड़ने एवं अन्य गतिविधियों को आगे बढ़ाने की पहल की है। पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय के एक अधिकारी ने ‘भाषा’ को बताया कि जल प्रदूषण एवं उसमें आर्सेनिक, फ्लोराइड की मौजूदगी जैसी स्थिति से निपटने के लिए राष्ट्रीय जल विज्ञान परियोजना को आगे बढ़ाने, राष्ट्रीय भूजल सुधार कार्यक्रम आगे बढ़ाया जा रहा है। इसके अलावा समग्र जल सुरक्षा के लिए उसे मनरेगा से जोड़ने, जल क्रांति और अन्य गतिविधियों को आगे बढ़ाने की पहल की गई है। उन्होंने बताया कि पेयजल राज्यों के अधिकारी क्षेत्र का विषय है हालांकि जल प्रदूषण तथा भूजल में आर्सेनिक एवं फ्लोराइड की मौजूदगी जैसे विषयों से निपटने के लिये राज्यों को मदद प्रदान की जा रहा है। कुछ दिन पहले राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के विषय में एक कार्यशाला का आयोजन किया गया था जिसमें देश के विभिन्न राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के अधिकारियों ने हिस्सा लिया था ।

पिछले संसद सत्र में एक प्रश्न के उत्तर में सरकार ने राज्यसभा में स्वीकार किया था कि देशभर के करीब 66,700 बसावटों में पेयजल पीने लायक नहीं है, क्योंकि यह आर्सेनिक और फ्लोराइड से प्रभावित हैं। तत्कालीन स्वच्छता एवं पेयजल मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने सदन को बताया था कि सरकार जनता को साफ, स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने की दिशा में काम रही है और इस संबंध में विभिन्न योजनाएं लाई गई हैं । उन्होंने कहा था कि पाइप के जरिए 2022 तक 80 प्रतिशत जनसंख्या को पाइप को जरिए पानी पहुंचाया जाएगा। नीति आयोग ने विभिन्न राज्यों में पेयजल में सुधार के लिए 800 करोड़ रुपये विशेष रूप से आवंटित किए हैं। पश्चिम बंगाल और राजस्थान को 100-100 करोड़ रुपये की विशेष सहायता दी गई है, जो कि फ्लोराइड और आर्सेनिक से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। जल संसाधन पर एक ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि सामान्यत: भूजल स्वच्छ होता है लेकिन देश के विभिन्न भागों से भूजनित एवं मानव जनित प्रदूषण की सूचनाओं की भी पुष्टि हुई है। देश के स्तर पर बात करें तो 10 राज्यों के 89 जिलों में भूजल आर्सेनिक से प्रभावित है। इसी प्रकार से 20 राज्यों के 317 जिले भूजल में फ्लोराइड से प्रभावित हैं। 21 राज्यों के 387 जिले भूजल में नाइट्रेट से और 26 राज्यों के 302 जिले लौह तत्वों से संदूषित पाये गए हैं। इसमें कहा गया है कि भूजल पर सिंचाई की आवश्यकता की 60 प्रतिशत, ग्रामीण पेयजल आवश्यकताओं की 85 प्रतिशत और शहरी जल आवश्यकताओं की 50 प्रतिशत निर्भरता है। विगत 40 वषोर् में कुल सिंचाई क्षेत्र की वृद्धि में भूजल का योगदान 80 प्रतिशत से अधिक है। जीडीपी में इसका लगभग 9 प्रतिशत योगदान है । वर्ष 1975 से खाद्य और फाइबर की पैदावार के लिए भारतीय कृषि विश्व में भूजल के सबसे बड़े उपभोक्ता के रूप सामने आई है । ऐसे में भूजल के स्थायित्व की स्थिाति भविष्य की बड़ी चुनौती है।

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