Four years before the BJP government, the glorious state has not left it worthwhile: Gehlot

जयपुर। अखिल भारतीय कांग्रेस महासचिव एवं राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे पर आरोप लगाया है कि अपने पिछले चार वर्ष के कार्यकाल में उन्होंने गौरवशाली राजस्थान को न केवल बबार्दी की ओर धकेला है, बल्कि देश में कहीं मुंह दिखाने लायक भी नहीं छोड़ा है। गहलोत ने राजे सरकार के चार साल के कार्यकाल पर सवाल किया कि इन चार सालों में हुआ क्या है जिस पर राजे और भाजपा गर्व कर रही है और जश्न मना रही है? उन्होंने कहा कि सच कड़वा होता है और उन्हें यह सच स्वीकार करना चाहिए कि इन चार सालों में राजस्थान में खूब भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद हुआ है। अपराध, खास तौर पर मासूम बच्चियों से बलात्कार, गैंग रेप और उनकी हत्या रोज की बातें हो गयी हैं। यहां कानून व्यवस्था नाम की कोई चीज दिखती नहीं है। बीमारियों से सैंकडों की संख्या में लोग मर रहे हैं, स्कूल बंद हो रहे हैं और सड़कें इस तरह की हो गयी है कि उन पर चलना मौत को दावत देना है। उन्होंने कहा कि अफसोस इस बात का है कि विपक्ष ही नहीं सत्ता पक्ष के विधायक और नेता भी ये सारी बातें कह रहे हैं। उन्होंने कहा कि इन सबसे आगे उच्च न्यायालय से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक ने राज्य सरकार के कामकाज पर जिस तरह और जितनी तीखी टिप्पणियां की, उतनी तो 70 सालों में नहीं हुई होगी। लेकिन मुख्यमंत्री हैं कि चैन की नींद सो रही हैं। उल्टे अव्यवस्थाओं से कराह रही राज्य की जनता के घावों पर नमक छिड़कने के लिये वे और भाजपा के कुछ राष्ट्रीय नेता राजस्थान को अपना मॉडल स्टेट बता रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि पिछले 50 सालों के अपने राजनीतिक जीवन में मैंने कभी ऐसी निकम्मी, निकृष्ट और नाकारा सरकार नहीं देखी जिसके गृह मंत्री और स्वास्थ्य मंत्री, सरकार में मंत्री होने पर शर्मिंदगी महसूस करते हों, जिसके विधायक खुद सरकार और स्वास्थ्य विभाग पर हत्यारा होने का आरोप लगाते हों और फिर भी सरकार चल रही हो। उन्होंने कहा कि लगता है जैसे मुख्यमंत्री को पता हो कि यह उनका आखिरी टर्म है। ऐसे में एक ओर जहां हर तरफ जमकर भ्रष्टाचार हो रहा है, सारे फैसले विभागों के मंत्री नहीं मुख्यमंत्री कार्यालय के स्तर पर हो रहे हैं। उन्होंने दावा किया कि मुख्यमंत्री जन असंतोष को जानती हैं, इसीलिए अजमेर, अलवर और माण्डलगढ उप चुनावों को लेकर अब इन क्षेत्रों में डेरा डाले हुए है, परन्तु जनता हकीकत जानती है। गहलोत ने कहा कि आज राज्य की जनता का कोई तबका इस सरकार से खुश नहीं है। कर्मचारी सातवें वेतनमान को लेकर नाराज हैं। व्यापारी जीएसटी से दुखी है।

युवा नौकरी के रास्ते नहीं खुलने से परेशान है। महिला घर से बाहर निकलने में डरती है। किसान अपनी उपज का वाजिब दाम नहीं मिलने से आत्महत्या कर रहा है। आमजन को बिजली मिल नहीं रही, पानी मिल नही रहा। अस्पतालों में सिवाय घक्कों के कुछ नहीं मिल रहा। रिसर्जेंट राजस्थान और विदेश दौरों के नाम पर सरकार ने करोड़ों रुपए फूंक दिये, लेकिन नतीजा जीरो है। उन्होंने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री राजनीतिक लाभ के लिये राजस्थान से जितना लगाव दिखायें और राजपूत, जाट, गुर्जर आदि जातियों को अपना बताएं लेकिन हकीकत में उन्हें किसी से भी कोई अपनापन नहीं है। यदि ऐसा होता तो बाडमेर में रिफाइनरी कभी की लग गई होती और जयपुर में मेट्रो का दूसरा चरण कभी का शुरू हो गया होता। इसी तरह राज्य की अन्य महत्वाकांक्षी योजनायें, भीलवाडा में मेमो कोच फैक्ट्री, कोटा-झालावाड-बारां की परबन सिंचाई एवं पेयजल योजना, डूंगरपुर-बांसवाडा-रतलाम रेल परियोजना अब तक अटकी नहीं रहती। गहलोत ने कहा कि सरकार ने नया कुछ किया नहीं और 70 साल की मेहनत से जो चीजें तैयार हुई उन्हें भी निजीकरण या पीपीपी के नाम पर अपनों को बांटने में लगी है। उन्होंने कहा कि राज्य की बिजली कम्पनियां और उनकी जमीनें राजस्थान रोडवेज और उसकी जमीनें, स्पिन फेड, खासा कोठी, होटल आनन्द और आरटीडीसी के अन्य होटल-मोटल सब इसके उदाहरण हैं। हर सरकारी खरीद में भ्रष्टाचार की बू आने लगी है, लेकिन सरकार है कि अरबों के खान महाघोटाले तक की सीबीआई या न्यायिक जांच को तैयार नहीं है, जबकि उसके छींटे खुद उन तक पहुंच रहे हैं। उन्होंने दावा किया कि यदि खान महाघूस कांड, पेयजल, यातायात, सहकारी उपभोक्ता भण्डार एवं जेडीए में भ्रष्टाचार की जांच सीबीआई से कराई जाये तो बडे़ खुलासे सामने आयेंगे। गहलोत ने आरोप लगाया कि ऐसे आरोपों की सच्चाई को राज्य की जनता तक नहीं पहुंचने देने की नीयत से ही तमाम विरोध के बावजूद मुख्यमंत्री ऐसा कानून लेकर आई (जिसे प्रवर समिति को भेजना पडा) जिससे मीड़िया का मुंह बंद हो जाये और न्यायपालिका तथा पुलिस के हाथ बंध जायें। उन्होंने जोर देकर कहा कि कांग्रेस राज्य की जनता के सहयोग से उनके इन इरादों को पूरा नहीं होने देगी, न केवल इस कानून को बनने से रोका जायेगा अपितु जनता की अदालत में भी इस सरकार की तमाम नाकामियों को जोर-शोर से उजागर किया जायेगा। जनता इस सरकार को कभी माफ नहीं करेगी। ऐसे हालात में अगर मुख्यमंत्री स्वयं इस्तीफा देने की पेशकश कर देती तो उनके स्वयं के लिए बेहतर होता।

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