-बाल मुकुंद ओझा
वन अग्नि सुरक्षा सप्ताह प्रतिवर्ष 1 फरवरी से 7 फरवरी तक आयोजित किया जाता है ताकि लोगों को वनों की महत्ता, वनों का प्रबंधन, संरक्षण और सतत विकास के प्रति जागरूक किया जा सके। दुनिया में जलवायु परिवर्तन और अन्य कारणों से जंगलों में आग लगने की घटनाओं में तेजी से वृद्धि हुई है। इससे जंगल खत्म हो रहे हैं तो कीट -पतंगों और जानवरों की हजारों तादाद में प्रजातियां खत्म हो रही है। वनों में अचानक लगने वाली आग से बड़े पैमाने पर जन-धन हानि के साथ-ही पेड़-पौधों और वन्य जीवों को नुकसान होता है। कार्बन डाई ऑक्साइड का लेवल बढ़ रहा है, ग्लेशियर पिघल रहा है। जंगलों में आग लगने से वायु प्रदूषण का स्तर भी तेजी से बढ़ रहा है। राष्ट्रमंडल वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान संगठन ने पिछले 30 सालों के विश्लेषण में पाया कि 3,24,000 वर्ग किलोमीटर जंगलों में आग लग चुकी है। वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड की रिपोर्ट बताती है कि जंगल में लगने वाली सभी तरह की आग में से 75 प्रतिशत आग के लिए इंसान जिम्मेदार हैं। प्राकृतिक रूप से बिजली गिरने, ज्वालामुखी और कोयले के जलने की वजह से जंगल में आग लग सकती है लेकिन ऐसा अपेक्षाकृत बहुत कम होता हैं।
भारत में, वनाग्नि सबसे अधिक गर्मियों में दर्ज की जाती है। इस दौरान जमीन में बड़ी मात्रा में सूखी लकड़ी, लॉग, मृत पत्ते, स्टंप, सूखी घास और खरपतवार होते हैं। प्राकृतिक परिस्थितियों में अत्यधिक गर्मी और सूखापन, एक दूसरे के साथ शाखाओं की रगड़ से बनाया गया घर्षण भी आग शुरू करने के लिए जाना जाता है। गर्मी का रौद्र रूप शुरू होते ही जंगलों में आग लगने का सिलसिला भी शुरू हो जाता है। भीषण गर्मी की बदौलत कई देशों में जंगल धधक उठते हैं। जंगलों की आग को बुझाने के लिए हजारों फायरकर्मियों को कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है। जंगलों में लगी आग से सैकड़ों किमी के जंगल खाक हो गए हैं। जंगलों में रहने वाले पशु-पक्षी और जीव-जंतु भी अपनी जान गंवा रहे है। जलवायु परिवर्तन और तापमान सामान्य से बहुत अधिक होने से जंगलों में आग लगने की घटनाओं में भी तेजी से इजाफा होने लगा है। जंगल में आग लगने के कई कारण होते हैं। इनमें ईंधन, ऑक्सीजन और गर्मी मुख्य है। अगर गर्मियों का मौसम है, तो सूखा पड़ने पर ट्रेन के पहिए से निकली एक चिंगारी भी आग लगा सकती है. इसके अलावा कभी-कभी आग प्राकृतिक रूप से भी लग जाती है। ये आग ज्यादा गर्मी की वजह से या फिर बिजली कड़कने से लगती है। जंगलों में आग लगने की ज्यादातर घटनाएं इंसानों के कारण होती हैं, जैसे आगजनी, कैम्पफायर, बिना बुझी सिगरेट फेंकना, जलता हुआ कचरा छोड़ना, माचिस या ज्वलनशील चीजों से खेलना आदि। जंगलों में आग लगने के मुख्य कारण बारिश का कम होना, सूखे की स्थिति, गर्म हवा, ज्यादा तापमान भी हो सकते हैं। इन सभी कारणों से जंगलों में आग लग सकती है। जंगलों में आग से करोड़ों अरबों की वन संपदा खाक हो जाती है। पेड़ पौधों के साथ जंगली जानवर मौत के शिकार होते है वहां भूमि भी बंजर हो जाती है। आग की वजह से पूरा पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित होता है। आग लगने से उठने वाले धुआँ तथा विभिन्न प्रकार की विषैली गैसें मानव जाति के साथ ही पशु-पक्षियों के लिये भी घातक होते हैं। लोगों को इस धुएँ की वजह से साँस तथा हृदय रोग होने की सम्भावनाएँ रहती हैं।
भारत की बात करे तो वर्ष 2020-2021 में जंगलों में आग की 3.98 लाख से अधिक घटनाओं की सूचना मिली जो पिछले वर्ष की तुलना में दोगुने से अधिक है। भारतीय वन सर्वेक्षण के अनुसार 1 जनवरी से 31 मार्च 2022 तक देश में एक लाख 36 हज़ार से अधिक जगहों से आग फैली जिसने मीलों तक जैव-विविधता से भरपूर जंगलों को जलाकर राख कर दिया। काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर के एक अध्ययन में बताया गया कि पिछले दो दशकों में जंगलों में आग के हादसों में दस गुना वृद्धि हुई है। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत के 36 प्रतिशत जंगलों में बार-बार आग लगती है। इसलिए भारत को व्यापक वन अग्नि-शमन रणनीतियों की आवश्यकता है। आग से रोकथाम के लिये व्यापक स्तर पर सामुदायिक भागीदारी को महत्त्व दिया जाना चाहिए। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने जंगलों की आग पर तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा था कि पर्यावरण मंत्रालय और अन्य प्राधिकरण वन क्षेत्र में आग लगने की घटना को हल्के में लेते हैं। जब भी ऐसी घटनाएं घटती हैं, तो किसी ठोस नीति की आवश्यकता महसूस की जाती है। लेकिन बाद में सब कुछ भुला दिया जाता है।

LEAVE A REPLY