-बाल मुकुन्द ओझा
सिखों के पहले गुरु गुरुनानक देव की पुण्यतिथि हर साल 22 सितंबर को मनाई जाती है। गुरु नानक देव ने 22 सितंबर 1539 को करतारपुर में अपने प्राण का त्याग किया था। इस दिन देश भर में गुरु नानक देव की याद में विशेष कार्यक्रम आयोजित किये जाते है। देशभर में जगह-जगह पर लंगरों का आयोजन किया जाता है। इस दिन गुरुवाणी का पाठ भी किया जाता है। महात्मा गांधी, स्वामी विवेकानन्द सहित अनेक महापुरुषों ने कहा था आप अहंकार छोड़ दीजिये, सुखों की
अनुभूति होना प्रारम्भ हो जाएगा। धर्मपुस्तक, देवालय और प्रार्थना की कोई आवश्यकता नहीं, यदि हमने अहंकार त्याग दिया है। गुरु नानक देव की शिक्षा का सार भी यही था अहंकार मनुष्य का सबसे बड़ा दुश्मन है। इसलिए अहंकार कभी नहीं करना चाहिए बल्कि विनम्र होकर सेवाभाव से जीवन गुजारना चाहिए। मगर आज हम अपने महापुरुषों के बताये मार्ग पर न चलकर अपने मन और भाव में अहंकार पाले हुए है जो समाज और राष्ट्र को पतन के मार्ग की ओर धकेल रहा है। हमारे साधु संतों ने सदा सर्वदा समाज को भलाई का मार्ग दिखाया था। इसी परम्परा का निर्वहन करते हुए गुरु नानक देव ने समाज को झूठ, प्रपंच और अहंकार को त्याग कर सामाजिक एकता और भाईचारे का पाठ पढ़ाया था। 22 सितम्बर को उनकी पुण्य तिथि पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम समाज में प्रेम, भलाई और एक दूसरे के सुख दुःख में भागीदारी देकर गुरु नानक देव जैसे संतों को अपनी सच्ची श्रद्धांजलि देंगे।
संत, महात्माओं में गुरु नानक देव का नाम इतिहास में आदर पूर्वक सवर्ण अक्षरों में दर्ज है। सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव का जन्म रावी नदी के किनारे पाकिस्तान के गाँव तलवंडी, शेखुपुरा में 15 अप्रैल 1469 में कार्तिक पूर्णिमा, संवत् 1527 को हुआ था। यह स्थान ननकाना साहब के नाम से सिक्खों का पावन तीर्थ बन गया। 22 सितंबर 1539 ईस्वी को इनका परलोकवास हुआ। गुरु नानक देव की 22 सितम्बर को पुण्य तिथि है। इस दिन हमें नानक देव के विचारों का गहन मंथन कर आत्मसात करने की जरुरत है। वे महान समाज सुधारक थे। उनके बताये मार्ग पर चलकर हम अपने समाज को शांति और भलाई का रास्ता दिखा सकते है।
गुरु नानक देव ने ही इक ओंकार का नारा दिया यानी ईश्वर एक है। ईश्वर सभी जगह मौजूद है। हम सबका पिता वही है इसलिए सबके साथ प्रेमपूर्वक रहना चाहिए। उनका कहना था किसी भी तरह के लोभ को त्याग कर अपने हाथों से मेहनत कर और न्यायोचित तरीकों से धन का अर्जन करना चाहिए। कभी भी किसी का हक नहीं छीनना चाहिए बल्कि मेहनत और ईमानदारी की कमाई में से जरूरतमंदों की भी मदद करनी चाहिए। धन को जेब तक ही सीमित रखना चाहिए। उसे अपने हृदय में स्थान नहीं बनाने देना चाहिए अन्यथा नुकसान हमारा ही होता है। स्त्री-जाति का आदर करना चाहिए। गुरु नानक देव, स्त्री और पुरुष सभी को बराबर मानते थे। तनाव मुक्त रहकर अपने कर्म को निरंतर करते रहना चाहिए तथा सदैव प्रसन्न रहना चाहिए। संसार को जीतने से पहले स्वयं अपने विकारों और बुराईयों पर विजय पाना अति आवश्यक है। अहंकार मनुष्य का सबसे बड़ा दुश्मन है। इसलिए अहंकार कभी नहीं करना चाहिए बल्कि विनम्र होकर सेवाभाव से जीवन गुजारना चाहिए। इनके उपदेश का सार यही था कि ईश्वर एक है उसकी उपासना हिंदू मुसलमान दोनों के लिये हैं। मूर्तिपूजा, बहुदेवोपासना को अनावश्यक कहते थे। हिंदु और मुसलमान दोनों पर इनके विचार का प्रभाव था। कुछ लोगों ने तत्कालीन शासक इब्राहीम लोदी से नानक देव की शिकायत की। जिस पर नानक देव को कारावास में डाल दिया गया। पानीपत की लड़ाई में जब इब्राहीम हारा और बाबर के हाथ में राज्य गया तब कारावास की यंत्रणा से रिहाई मिली। गुरुनानक का व्यक्तित्व असाधारण था। उनमें पैगम्बर, दार्शनिक, राजयोगी, गृहस्थ, ,सुधारक, कवि, संगीतज्ञ, देशभक्त, बंधुत्व आदि सभी के गुण विद्यमान थे। उनमें विचार-शक्ति का अपूर्व सामंजस्य था। उन्होंने पूरे देश की यात्रा की। लोगों पर उनके विचारों का बहुत प्रभाव पड़ा। उनकी रचना जपुजी का सिक्खों के लिए वही महत्त्व है जो हिंदुओं के लिए गीता का है। गुरु नानक सन् 1539 ई० में अमरत्व को प्राप्त हो गए। परन्तु उनके उपदेश और शिक्षा अमरवाणी बनकर हमारे बीच उपलब्ध हैं जो आज भी हमें जीवन में अहंकार त्याग कर सादा जीवन और उच्च विचारों को अपनाने लिए प्रेरित करती हैं ।

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