-बाल मुकुन्द ओझा
पृथ्वी को बचाने के तरह तरह के जतन के मध्य हम 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस मनाने जा रहे है। इस वर्ष पृथ्वी दिवस की थीम हमारे ग्रह में निवेश करे और हमारे भविष्य की रक्षा करें रखी गई है जो व्यक्तियों, समुदायों, सरकारों और व्यवसायों को प्राथमिकता देने तथा वर्तमान और भावी पीढ़ियों के लिए हमारे ग्रह की रक्षा और संरक्षण की दिशा में कार्रवाई करने का आह्वान करती है। पृथ्वी दिवस पर पृथ्वी से जुड़ी चुनौतियों जैसे, क्लाइमेट चेंज, ग्लोबल वार्मिंग, प्रदूषण पर चर्चाएं की जाती हैं। यह दिवस हम इसलिए मनाते है ताकि पृथ्वी साफ सुथरी हो और मानव सुखपूर्वक पृथ्वी पर अपना जीवन यापन कर सके। लगभग हर दिवस के पीछे मानव कल्याण की भावना रहती है। पृथ्वी दिवस भी इससे अछूता नहीं है। कहते है पृथ्वी संरक्षित होगी तो मानव जीवन भी सुरक्षित होगा। पर्यावरण विशेषज्ञों के मुताबिक लॉकडाउन पृथ्वी के लिए वरदान साबित हुआ। जिसका सकारात्मक परिणाम धरती पर साफ नजर आया। लॉकडाउन के चलते धरती का कंपन 30 से 50 प्रतिशत तक कम हुआ। यातायत, मशीन, ध्वनि, वायु और जल प्रदूषण सहित सड़क दुर्घटनाएं आदि कम हुई। इसके अलावा ओजोन परत में सुधार, प्रदूषण और नदियों के स्तर पर व्यापक सुधार होने से पृथ्वी को बहुत लाभ हुआ है। पेड़ पौधे खिलखिला उठे। प्रकृति ज्यादा साफ-सुथरी, खिली-खिली और अधिक महकी-महकी नजर आने लगी थी। मगर लोक डाउन के समाप्त होते ही हमने अपनी रोजमर्रा की गतिविधियां शुरू करदी और पृथ्वी पर एक बार फिर घाव नजर आने लगे। आबोहवा खराब होने लगी। जन्म से मरण तक हम पृथ्वी की गोद में रहते है। यह धरती हमें क्या नहीं देती। आज हमारी धरती अपना प्राकृतिक रूप खोती जा रही है। जहाँ देखों वहाँ कूड़े के ढेर व बेतरतीब फैले कचरे ने इसके सौंदर्य को नष्ट कर दिया है। विश्व में बढ़ती जनसंख्या, औद्योगीकरण एवं शहरीकरण में तेजी से वृध्दि के साथ-साथ ठोस अपशिष्ट पदार्थों द्वारा उत्पन्न पर्यावरण प्रदूषण की समस्या भी विकराल होती जा रही है। पृथ्वी अनमोल है। इसी पर आकाश है, जल, अग्नि, और हवा है। इन सबके मेल से सुंदर प्रकृति है। अपने-अपने स्वार्थ के लिए पृथ्वी पर अत्याचार किया जाता है और उनके परिणामों के बारे में कोई नहीं सोचता। लोक डाउन में पृथ्वी साफ सुथरी नजर आने लगी थी। मगर एक बार फिर हमने इसे गन्दा करना शुरू कर दिया जिससे पृथ्वी आहत हुई है। इसमें प्लास्टिक का योगदान सबसे ज्यादा है। प्लास्टिक से बनी वस्तुओं का जमीन या जल में इकट्ठा होना प्लास्टिक प्रदूषण कहलाता है। जिससे वन्य जन्तुओं और मानव के जीवन पर बुरा प्रभाव पडता है। इसमें कोई दो राय नहीं है प्लास्टिक निर्मित वस्तुएँ गरीब एवं मध्यवर्गीय लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति एवं रोजी रोटी में सहायक है। लेकिन हम इसके लगातार उपयोग के खतरे से अनभिज्ञ हैं। यह एक ऐसी उपभोग की चीज है जो घर में चौके चूल्हे से लेकर हर स्थान के कार्य के उपयोग में आने लग गई है। यही नहीं यदि हमें बाजार से कोई भी वस्तु जैसे राशन, फल, सब्जी, कपड़े, जूते, मसाले, कॉपी, किताबे, दवाएं ,रेडीमेड सामान, प्रेस किये कपडे ,तरल पदार्थ जैसे दूध, दही, तेल, घी, फलों का रस इत्यादि लाना हो तो उसको लाने में पॉलीथीन का ही प्रयोग करते है। आज के समय में फास्ट फूड का काफी प्रचलन है जिसको भी पॉलीथीन में ही दिया जाता है। आज हम पॉलीथिन के इतने अधिक आदी हो गए है कि कपड़े, कागज और जूट के बने थैलों का प्रयोग करना ही भूल गए है। हमारी आदतों से वाकिफ दुकानदार भी हर प्रकार के पॉलीथीन बैग रखने लग गए है क्योंकि वे सस्ते होने के साथ आसानी से उपयोगमें लिए जाते है। यही पॉलीथिन उपयोग के बाद हम सड़क ,गली,नुक्कड़ और धरती पर जहाँ जगह मिले फेंक देते है। इससे पर्यावरण तो प्रदूषित होता ही है अपितु जिसकी हम पूजा अर्चना करते नहीं थकते और मां का दर्जा देते है यह निरीह गाय जैसी पशु इसे खाकर अकाल काल का ग्रास बन जाते है। हमारी नालियां अवरुद्ध होजाती है। पानी का बहाव रुक जाता है। यत्र-तत्र सर्वत्र पॉलीथिन ही पॉलीथिन दिखाइ देती है जो सम्पूर्ण पर्यावरण को दूषित कर रही है। पृथ्वी पर सर्वत्र अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। पृथ्वी को संकट से बचाने के लिए स्वयं अपनी ओर से हमें शुरूआत करनी चाहिए। पानी को नष्ट होने से बचाना चाहिए। वृक्षारोपण को बढ़ावा देना चाहिए। अपने परिवेश को साफ-स्वच्छ रखना चाहिए। पृथ्वी के सभी तत्वों को संरक्षण देने का संकल्प लेना चाहिए।

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