-बाल मुकुन्द ओझा
संयुक्त राष्ट्र द्वारा हर साल 13 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय आपदा न्यूनीकरण दिवस मनाया जाता है। यह दिन जोखिम-जागरूकता और आपदा में कमी के लिए मनाया जाता है। प्राकृतिक आपदा के नुकसान को कम करने के लिए आज पूरी दुनिया में अनेक कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। प्रकृति से छेड़छाड़ को अगर न रोका गया तो पृथ्वी पर जीवों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। अंतर्राष्ट्रीय आपदा न्यूनीकरण दिवस की शुरुआत 1989 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा जोखिम-जागरूकता और आपदा न्यूनीकरण की वैश्विक संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए किये गए आह्वान के बाद की गई थी। हर वर्ष 13 अक्टूबर को आयोजित होने वाला यह दिन इसलिए मनाया जाता है कि कैसे दुनिया भर के लोग और समुदाय आपदाओं के प्रति अपने जोखिम को कम कर रहे हैं और उनके सामने आने वाले जोखिमों पर लगाम लगाने के महत्व के
बारे में जागरूकता बढ़ा रहे हैं। अंधाधुंध वृक्षों की कटाई, मिट्टी का क्षरण और प्रदूषण, जल और वायु प्रदूषण ये सब हमारे
वजूद को खतरे में डाल रहे हैं। इसी बात को लेकर जागरूक करने के लिए हर साल 13 अक्तूबर को अंतरराष्ट्रीय प्राकृतिक आपदा न्यूनीकरण दिवस मनाया जाता है। प्राकृतिक आपदा न्यूनीकरण के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस हमारे पर्यावरण में होने वाले परिवर्तनों के नतीजों के बारे में सतर्कता बढ़ाने के लिए सालाना मनाया जाता है। लाखों लोगों को इससे निपटने के लिए आगे आने और उनके प्रयासों के बारे में बात करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, ताकि वे इस
खतरे को समझ सकें, जिसके कारण लोगों को जान-माल का नुकसान हुआ है। पृथ्वी पर रहने वाले तमाम जीव जंतुओं, पेड़-पौधों और प्राकृतिक संसाधनों को बचाने तथा दुनिया भर में प्रकृति के प्रति जागरुकता बढ़ाने और बचाने के लिए हर साल हम यह दिवस मनाते हैं। इस दिन प्रकृति की रक्षा, उसके संरक्षण और विलुप्ति की कगार पर पहुंच रहे जीव-जंतु तथा वनस्पति की रक्षा का संकल्प लिया जाता है। प्रकृति का संरक्षण प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण से सबंधित है। इनमें मुख्यतः पानी, धूप, वातावरण, खनिज, भूमि, वनस्पति और जानवर शामिल हैं। प्रकृति हमें पानी, भूमि, सूर्य का प्रकाश और पेड़-पौधे प्रदान करके हमारी बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करती है। इन संसाधनों का उपयोग विभिन्न चीजों के निर्माण के लिए किया जा सकता है जो निश्चित ही मनुष्य के जीवन को अधिक सुविधाजनक और आरामदायक बनाते हैं।
प्रकृति से हमारा तात्पर्य जल, जंगल और जमीन से है। हम लगातार प्रकृति का दोहन करते जा रहे हैं जिससे मानव जीवन संकट में पड़ गया है। जल, जंगल और जमीन के बिना प्रकृति अधूरी है। जल को व्यर्थ में बहा रहे हैं जंगलों को काट रहे हैं और जमीन पर जहरीले कीटनाशक का उपयोग करके उसकी उर्वरक क्षमता और उपजाऊ शक्ति को कमजोर कर रहे हैं। हम एक अर्से से दिवस मना रहे हैं और लोगों को प्रकृति संरक्षण का संदेश दे रहे हैं। लेकिन इसके बावजूद प्रकृति पर मंडराता खतरा जस का तस बना हुआ है। सबसे बड़ा खतरा तो इसे ग्लोबल वार्मिंग से है। धरती के तापमान में लगातार बढ़ते स्तर को ग्लोबल वार्मिंग कहते है।
वर्तमान में ये पूरे विश्व के समक्ष बड़ी समस्या के रुप में उभर रहा है। ऐसा माना जा रहा है कि धरती के वातावरण के गर्म होने का मुख्य कारण का ग्रीनहाउस गैसों के स्तर में वृद्धि है। इसे लगातार नजरअंदाज किया जा रहा है जिससे प्रकृति पर खतरा बढ़ता जा रहा है। ये आपदाएँ पृथ्वी पर ऐसे ही होती रहीं तो वह दिन दूर नहीं जब पृथ्वी से जीव-जन्तु व वनस्पति का अस्तिव ही समाप्त हो जाएगा। कहते है प्रकृति संरक्षित होगी तो मानव जीवन भी सुरक्षित होगा। प्रकृति हमारी धरोहर है, इसकी रक्षा करना हमारा कर्त्तव्य है। प्रकृति ने हमें जीव जंतुओं सहित सूर्य, चाँद, हवा, जल, धरती, नदियां, पहाड़, हरे-भरे वन और खनिज सम्पदा धरोहर के रूप में दी हैं। मनुष्य अपने निहित स्वार्थ के कारण प्राकृतिक संसाधनों का दुरुपयोग कर रहा है। बढ़ती आबादी की समस्या के लिए आवास समस्या को हल करने के लिए हरे-भरे जंगलों को काट
कर ऊंची-ऊंची इमारतें बनाई जा रही हैं। वृक्षों के कटने से वातावरण का संतुलन बिगड़ गया है और ग्लोबल वार्मिंग की समस्या पूरे विश्व के सामने भयंकर रूप से खड़ी है। खनिज-सम्पदा का अंधाधुंध प्रयोग किया जा रहा है। जीव-जंतुओं का संहार किया जा रहा है, जिसके कारण अनेक दुर्लभ प्रजातियां लुप्त होती जा रही हैं। हमें संकल्प लेना चाहिए कि हम पृथ्वी और उसके वातावरण को बचाने का प्रयास करेंगे। हम पर्यावरण के प्रति न सिर्फ जागरूक हो बल्कि उसके लिए कुछ करें भी। प्रकृति को संकट से बचाने के लिए स्वयं अपनी ओर से हमें शुरूआत करनी चाहिए। पानी को नष्ट होने से बचाना चाहिए। वृक्षारोपण को बढ़ावा देना चाहिए। अपने परिवेश को साफ-स्वच्छ रखना चाहिए। प्रकृति के सभी तत्वों को संरक्षण देने का संकल्प लेना चाहिए।

LEAVE A REPLY