नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने किशोर न्याय अधिनियम :जेजे: को लागू करने के मामले में आधा-अधूरा हलफनामा दायर करने के लिये केंद्र की आज कड़ी आलोचना की और कहा कि सरकार को इस देश के बच्चों के बारे में गंभीर होना है। शीर्ष अदालत ने कहा कि केंद्र ने 80 पन्ने का हलफनामा दायर किया है, लेकिन उसने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा प्रदत्त आंकड़ों का संकलन नहीं किया और अदालत को पूरी सूचना नहीं दी गई है। न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील से कहा कि हलफनामा पूरा और सटीक होना चाहिये था और सरकार से यह भी सूचित करने को कहा कि प्रत्येक राज्य और केंद्रशासित प्रदेश के किशोर न्याय कोष में कितना धन पड़ा हुआ है।
पीठ ने कहा, ह्यह्यअगर आप :केंद्र: बच्चों के बारे में गंभीर नहीं हैं, तो आप हलफनामा दायर करें कि आप बच्चों के बारे में चिंतित नहीं हैं। हम कहेंगे कि भारत सरकार अपरिहार्य है और हम याचिका खारिज कर देंगे। पीठ ने कहा, 29 राज्य और सात केंद्रशासित प्रदेश हैं।आप हमसे चाहते हैं कि हम इनमें से प्रत्येक का अध्ययन करें। आपको इसका पालन करना चाहिये था। आपने ऐसा क्यों किया। 80 पन्ने का हलफनामा दायर करके आप किसे प्रभावित करने की चेष्टा कर रहे हैं। कुछ विवेक का इस्तेमाल होना चाहिये। शीर्ष अदालत ने अगस्त में केंद्र से एक हलफनामा दायर कर इस बात का संकेत देने को कहा था कि क्या बच्चों के अधिकारों के संरक्षण के लिये राज्य आयोग और राज्य बाल संरक्षण सोसाइटी का हर राज्य और केंद्रशासित प्रदेश में गठन किया गया है।