आगरा। काफी समय से यह बहस चली आ रही है कि दुनिया के आठ अजूबो में से एक ताजमहल एक मकबरा या मंदिर इसके लिए लोग अपने-अपने तर्क भी देते रहे हैं। और कई याचिकाएं कोर्ट में लग चुकी है। कोई कहता है यह मंदिर है कोई कहता है यह मकबरा है। लेकिन अभी तक पता नहीं लग पाया है कि आखिर ताजमहल है क्या इस सिलसिले में आर्कियॉलजिकल सर्वे आॅफ इंडिया (एएसआई) ने पहली बार माना है कि ताजमहल मंदिर नहीं, बल्कि मकबरा है। कोर्ट में सुनवाई के दौरान दाखिल हलफनामे में एएसआई ने इसकी तस्दीक की है। एएसआई अफसरों के मुताबिक ताजमहल को संरक्षित रखने से जुड़े 1920 के एक नोटिफिकेशन के आधार पर अदालत में हलफनामा पेश किया गया है। इससे पहले केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने नवंबर 2015 के दौरान लोकसभा में साफ किया था कि ताजमहल की जगह पर मंदिर होने के कोई सबूत नहीं मिले हैं।

अप्रैल 2015 में आगरा जिला अदालत में छह वकीलों ने एक याचिका दाखिल की थी। इस अपील में कहा गया कि ताजमहल एक शिव मंदिर था और इसे तेजो महालय के नाम से जाना जाता था। इस याचिका के जरिए हिंदू दर्शनार्थियों को परिसर के अंदर पूजा की इजाजत देने की मांग की गई थी। इस मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने केंद्र सरकार, केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय, गृह सचिव और एएसआई से जवाब तलब किया था। एएसआई ने गुरुवार को अदालत में अपना जवाब सौंपा है। एएसआई ने एक बार फिर मामले की सुनवाई को लेकर स्थानीय अदालत के अधिकार क्षेत्र को चुनौती दी है। एएसआई ने याचिकाकतार्ओं के दावे पर भी सवाल खड़े किए हैं। एएसआई ने कोर्ट में दी अपनी दलील में कहा, ‘ताजमहल एक इस्लामिक ढांचा है, जबकि अपील करने वाले दूसरे धर्म के हैं। स्मारक पर कोई भी धार्मिक गतिविधि पहले कभी नहीं हुई थी।’ कोर्ट ने याचिकाकतार्ओं को जवाब दाखिल करने के लिए वक्त देते हुए मामले की अगली सुनवाई के लिए 11 सितंबर की तारीख तय की है।

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