Queen Avanti Bai Lodha statue unveiled can not be made in the boundaries of caste

-राकेश कुमार शर्मा
जयपुर। भारतीय जनता पार्टी राजस्थान इकाई के प्रदेश अध्यक्ष पद पर आज पार्टी हाईकमान ने राज्यसभा सांसद मदन लाल सैनी की नियुक्ति की। सैनी की नियुक्ति में सीएम वसुंधरा राजे का अहम रोल बताया जा रहा है, साथ ही यह राजे खेमे की बड़ी जीत के तौर पर मानी जा रही है। खासकर सीएम वसुंधरा राजे के लिए यह बड़ी जीत है। कुल मिलाकर यह राजे की जिद मानी जा रही है। क्योंकि अजमेर, अलवर और मांडलगढ़ सीट पर हुए उप चुनाव में करारी हार के बाद पार्टी हाईकमान ने प्रदेश अध्यक्ष पद से अशोक परनामी का इस्तीफा ले लिया था। इस पद पर केन्द्रीय नेतृत्व ने जोधपुर के सांसद और केन्द्रीय कृषि मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत की ताजपोशी की पूरी तैयार कर ली थी। शेखावत को पीएम नरेन्द्र मोदी और पार्टी के राष्टÓीय अध्यक्ष अमित शाह की पसंद माना जा रहा था, साथ ही आरएसएस के केन्द्रीय व प्रदेश नेतृत्व ने भी शेखावत के नाम की हरी झण्डी दे दी थी।

हर किसी की जुबान पर शेखावत के अध्यक्ष पद की चर्चा थी, लेकिन सीएम वसुंधरा राजे व उनके खेमे के नेताओं को शेखावत पसंद नहीं थे। वे इसे प्रदेश के सियासी समीकरणों के हिसाब से ठीक नहीं मान रहे थे। इनका तर्क था कि शेखावत के अध्यक्ष बनने से जाट समाज पार्टी से नाराज हो सकता है और छिटककर वापस कांग्रेस की तरफ जा सकता है। दो दशक के दौरान जाट समाज को भाजपा से जोडऩे के लिए सीएम वसुंधरा राजे ने काफी प्रयास किए हैं। जाट समाज के पार्टी के प्रति झुकाव होने के कारण ही वसुंधरा राजे के प्रदेशाध्यक्ष होने के कारण २००३ में भाजपा को पहली बार पूर्ण बहुमत मिला और १२० सीटें भाजपा ने जीती। भाजपा के दिग्गज नेता व पूर्व सीएम एवं उपराष्टÓपति भैरोंसिंह शेखावत के समय भी यह करिश्मा नहीं हो पाया था। गजेन्द्र शेखावत का नाम जैसे ही सामने आया तो सीएम वसुंधरा राजे ने इस नाम को हरी झण्डी नहीं दी। पार्टी हाईकमान को साफ कह दिया कि शेखावत के अध्यक्ष बनने से पार्टी को बड़ा नुकसान हो सकता है। प्रदेश की सियासी व जातिगत समीकरण में गजेन्द्र सिंह का नाम फिट नहीं बैठता है। राजे खेमे के तेवरों को देखते हुए हाईकमान भी ढाई महीने तक पसोपेश में रहा।

हालांकि वे लास्ट टाइम तक शेखावत के पक्ष में दिखाई दिए। शेखावत के लिए दो-तीन बार दिल्ली में गहन मंथन भी हुआ। राष्टÓीय अध्यक्ष अमित शाह, संगठन महामंत्री रामलाल समेत तमाम बड़े पदाधिकारियों व केन्द्रीय नेताओं के साथ सीएम राजे की बैठकें हुई। राजे खेमे के मंत्री व नेता भी दिल्ली में डेरा डाले बैठे रहे। राष्टÓीय उपाध्यक्ष ओमप्रकाश माथुर से भी लंबी मंत्रणा हुई, लेकिन सहमति नहीं बन पाने के कारण शेखावत का नाम जिस तेजी से ऊपर आया, उसी तेजी से धरातल पर आ गया। गजेन्द्र सिंह के नाम पर विवाद देख पार्टी हाईकमान ने वसुंधरा राजे खेमे के सुझाए सांसद मदन लाल सैनी के नाम को आज मंजूरी दे दी, जिससे ढाई महीने से चल रहा विवाद पर विराम लग गया है, वहीं विधानसभा चुनाव में पार्टी जोर-शोर से चुनावी अभियान में लग सकेगी। गजेन्द्र सिंह शेखावत के नाम को मंजूर नहीं मिलना एक तरह से वसुंधरा राजे व उनके खेमे की बड़ी जीत के तौर पर मानी जा रही है। साथ ही राजे की जिद की जीत भी है, जो उन्होंने जिद (शेखावत को अध्यक्ष नहीं बनने देने की) पकड़ी तो उसे पूरी करवाकर ही मानी। वैसे मदन लाल सैनी पार्टी व संघनिष्ट के वफादार रहे हैं और वे किसी गुट के नहीं माने जाते हैं। सहज, सरल और मधुर स्वभाव के मदन लाल सैनी की छवि कार्यकर्ताओं व नेताओं में अच्छी है। राजस्थान में उनकी अपनी पहचान भी है। सैनी प्रदेश के सबसे बड़े ओबीसी वोट बैंक से आते हैं और प्रदेश के जातिगत व सियासी समीकरणों में फिट बैठते हैं, जिसे देखते हुए सीएम वसुंधरा राजे व उनके खेमे ने सैनी के नाम पर सहमति जताई।

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