नयी दिल्ली। शीर्ष न्यायपालिका में चल रही खींचतान आज सतह पर आ गई जब उच्चतम न्यायालय ने कथित तौर पर न्यायाधीशों से संबंधित भ्रष्टाचार के एक मामले पर सुनवाई करने के लिये बड़ी पीठ गठित करने के दो न्यायाधीशों की पीठ के एक आदेश को पलट दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि पीठ गठित करने और मामले आवंटित करने का विशेषाधिकार सिर्फ प्रधान न्यायाधीश के पास है। यह टकराव एक पीठ के गठन में सर्वोच्चता के मुद्दे को लेकर था। न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की पीठ ने एक आदेश के जरिये कल कथित तौर पर प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के प्राधिकार को कम कर दिया था। दो सदस्यीय पीठ ने न्यायाधीशों को कथित तौर पर रिश्वत दिए जाने से जुड़े मामले पर सुनवाई के लिये पांच न्यायाधीशों की एक पीठ का गठन किया था।
इस मामले में ओडिशा उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति इशरत मसरूर कुद्दुसी एक आरोपी हैं। न्यायमूर्ति चेलमेश्वर प्रधान न्यायाधीश के बाद सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश हैं। उन्होंने एक एनजीओ और एक अधिवक्ता द्वारा दायर याचिका पर उच्चतम न्यायालय के पांच शीर्ष न्यायाधीशों वाली पीठ गठित करने का आदेश दिया था। याचिकाकतार्ओं ने दावा किया था कि न्यायमूर्ति मिश्रा के खिलाफ भी आरोप हैं। हालांकि, एक नाटकीय घटनाक्रम में सीजेआई ने अपनी अध्यक्षता में पांच न्यायाधीशों की पीठ का गठन किया और दो न्यायाधीशों वाली पीठ के कल के आदेश को पलट दिया। पांच सदस्यीय पीठ ने कहा कि कोई पीठ गठित करने और मामले आवंटित करने का विशेषाधिकार सिर्फ प्रधान न्यायाधीश के पास है। पांच सदस्यीय पीठ में न्यायमूर्ति आर के अग्रवाल, न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा, न्यायमूर्ति अमिताभ राय और न्यायमूर्ति ए एम खानविल्कर भी शामिल थे। तेजी से हुए एक घटनाक्रम के तहत पांच न्यायाधीशों की पीठ ने अपराह्न तीन बजे इस सवाल पर अविलंब सुनवाई शुरू की कि किसी खास मामले पर सुनवाई करने के लिये खास न्यायाधीशों की पीठ गठित करने का निर्देश कौन दे सकता है। पीठ ने कहा, ऐसा कोई आदेश नहीं दिया जा सकता जिसमें सीजेआई को खास संख्या वाली पीठ गठित करने का निर्देश दिया जाए। पीठ ने साफ शब्दों में कहा कि न तो दो न्यायाधीशों और न ही तीन न्यायाधीशों वाली पीठ सीजेआई को कोई खास पीठ गठित करने का निर्देश दे सकती है।
पांच सदस्यीय पीठ ने दो न्यायाधीशों की पीठ के फैसले को रद्द करते हुए कहा, यह कहना अनावश्यक है कि कोई भी न्यायाधीश खुद से किसी मामले पर विचार नहीं कर सकता है जब तक कि उसे सीजेआई ने आवंटित नहीं किया हो क्योंकि सीजेआई न्यायालय के मुखिया हैं। मामले पर सुनवाई के दौरान न्यायाधीशों और याचिकाकतार्ओं का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता प्रशांत भूषण के बीच गर्मा-गरम बहस हुई। सीजेआई ने सख्त टिप्पणी में कहा, इस आदेश :संविधान पीठ: के विपरीत दिया गया कोई भी आदेश महत्वपूर्ण नहीं रहेगा और इसे रद्द समझा जाएगा। उन्होंने मीडिया के मामले को रिपोर्ट करने से रोकने के अनुरोध को खारिज करते हुए कहा कि वह वाक्य, अभिव्यक्ति और प्रेस की स्वतंत्रता में भरोसा रखते हैं। पीठ ने कहा कि अगर कानून के सिद्धांतों, न्यायिक अनुशासन और अदालत के शिष्टाचार का पालन नहीं किया गया तो न्याय प्रशासन के साथ-साथ संस्थान के कामकाज में अराजकता और अव्यवस्था होगी। कल के आदेश से नाराज सीजेआई ने संबंधित न्यायाधीशों का नाम लिए बगैर कहा कि अदालत में रोजाना सैकड़ों मामले सूचीबद्ध होते हैं और अगर इस तरह से आदेश दिया गया तो अदालत कामकाज नहीं कर सकती है।

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