जयपुर। राजस्थान हाईकोर्ट ने 21 साल पुराने प्रकरण का निस्तारण करते हुए रिटायर्ड आरएएस अफसर को 24 साल पहले दी गई चार्जशीट और बाद में दी गई अनिवार्य सेवानिवृत्ति के आदेशों को गलत मानते हुए रद्द कर दिया है। इसके साथ ही अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिए हैं कि वह याचिकाकर्ता को सभी सेवा परिलाभ तीन माह में अदा करें।  अदालत ने यह आदेश सीएल वर्मा की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए। अदालत ने अपने आदेश में कहा है कि प्रकरण में याचिकाकर्ता को चार्जशीट देना न केवल कानूनन गलत है, बल्कि दांडिक कार्रवाई के तौर पर अनिवार्य सेवानिवृत्ति भी गैर कानूनी है।
याचिका में कहा गया कि याचिकाकर्ता 1976 में नायब तहसीलदार नियुक्त हुआ था। वहीं अक्टूबर 1991 को वह आरएएस सेवा कैडर में पदोन्नत हुआ। राज्य सरकार ने याचिकाकर्ता को भूमि नामान्तरण खोलने के मामले में कार्रवाई करते हुए 29 जुलाई 1994 को उसे चार्जशीट दी और 14 मार्च 1997 को अनिवार्य सेवानिवृत्त कर दिया। याचिकाकर्ता पर आरोप था कि अलवर में वर्ष 1985 में असिस्टेंट सेटलमेंट ऑफिसर रहने के दौरान उन्होंने भूमि की खातेदारी बदलते हुए नामान्तरण अन्य खातेदारों के नाम खोल दिया।
याचिका में कहा गया कि नामान्तरण खोलने की प्रक्रिया सभी खातेदारों की सहमति से हुई थी। इस कार्रवाई को किसी पक्षकार ने अपीलीय कोर्ट में चुनौती भी नहीं दी है। याचिका में कहा गया कि नामान्तरण खोलने के दौरान की गई कार्रवाई की शक्ति याचिकाकर्ता को थी। इसके अलावा की गई कार्रवाई नियमों के तहत ही हुई थी। राज्य सरकार ने याचिकाकर्ता को अनिवार्य सेवानिवृत्ति देते हुए कोई ठोस आधार नहीं दिया है। ऐसे में राज्य सरकार के सभी आदेशों को रद्द करते हुए उसे समस्त सेवा परिलाभ दिलाए जाएं।
जिस पर सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने याचिकाकर्ता के खिलाफ जारी आदेशों को रद्द करते हुए समस्त परिलाभ अदा करने को कहा है।

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