मेडिकल दुकानों की जांच के बहाने रिश्वत लेते हुए ड्रग इंस्पेक्टर सिंधु कुमारी अरेस्ट हुई। दो दिन पहले आमेर तहसील के एक अधिकारी मोटी रकम लेते हुए धरे गए। इससे पहले भी कई अधिकारी, कर्मचारी ट्रेप हो चुके हैं। ट्रेप होने वालों में आईएएस, आईपीएस, आरएएस, आरपीएस भी शामिल हैं। राजनेता भी पीछे नहीं है। अलवर सभापित, जयपुर नगर निगम के दो पार्षद, जिला प्रमुख, प्रधान, सरपंच व सरपंच पति आए दिन रिश्वत लेते हुए पकड़े जाते हैं। कोई मनमुताबिक जांच रिपोर्ट देने के बहाने रिश्वत ले रहा था तो कोई टेंडरों कार्यों की राशि रिलीज करने के एवज में कमीशन मांगते हुए रंगे हाथ धरे जा रहे हैं। जयपुर कमिश्नरेट में आरपीएस कैलाश बोहरा तो रिश्वत में अस्मत मांगने के आरोप में आजतक जेल में है। ड्रग इंस्पेक्टर सिंधु कुमारी जब ट्रेप हुई तो उसका कहना था कि रिश्वत की राशि ऊपर आला अधिकारियों तक जाती है। अगर रिश्वत नहीं लूंगी तो मेरा तबादला हो जाएगा। परिवादी से भी इंस्पेक्टर ने तय राशि से दुगुनी राशि रिश्वत की मांगी यानि कि हर मेडिकल स्टोर की जांच के नाम पर एक निश्चित रकम ली जा रही है। छोटे व बड़े स्टोर के हिसाब से रकम अलग-अलग है। जिस तरह से मेडिकल स्टोर में रिश्वत का खेल चल रहा है, वैसा ही मिठाई की दुकानों, खाद्य सामग्री की दुकानों व दूसरे प्रतिष्ठानों में भी चल रहा है। वहां भी हर काम या जांच की रेट तय है। यह रिश्वत इसलिए ली जा रही है कि अगर कोई प्रतिष्ठान गलत काम भी कर रहा है तो उसके खिलाफ रिपोर्ट गलत ना जाए। सब कुछ अच्छा ही अच्छा दिखाया जाए। इस तरह के भ्रष्टाचार और मिलीभगत के चलते ही दवाईयों, खाद्य पदार्थों में मिलावट के मामले खूब सामने आ रहे हैं। हजारों लाखों लोग मिलावटी सामान खा-पीकर बीमार हो रहे हैं। कैंसर व दूसरी बीमारियों से जनता लुट-पिट रही है, लेकिन रिश्वत रुपी कैंसर जिसके चलते यह सब बीमारियां फल-फूल रही है, उस पर रोकथाम के लिए ना तो सरकार और ना ही प्रशासन ठोस कदम उठा पा रहा है और ना ही कानून ला पा रहा है। सरकारें चाहे वह केन्द्र की हो या राज्यों की, भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए खूब बड़ी बड़ी बातें करती हैं, लेकिन भ्रष्टाचार के खात्मे के लिए कठोर कानून लाने से कतराती रहती है। आज भी अंग्रेजों के जमाने के कानून प्रचलन में है। कुछ थोड़े संशोधन किए हैं, लेकिन वे भी अपर्याप्त है। राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव करोड़ों रुपयों का घोटालों को अँजाम देने के बाद भी कोर्ट ने मात्र पांच साल की सजा दी है। सजा काटने के बाद भी फिर से आजाद हो जाएंगे नेताजी। फिर से भ्रष्टाचार की गंगा में डूबकी लगाएँगे नेता और अफसर। भ्रष्टाचार तभी काबू में आएगा, जब सरकार कठोर कानून बनाएगी। रिश्वत लेते धरे गए अधिकारियों की अभियोजन स्वीकृति तक केन्द्र और राज्य सरकारें स्वीकृति नहीं देती। फिर किस तरह से भ्रष्टाचार खत्म होगा। रिश्वतखोरी अफसर कुछ महीने में बहाल होकर वापस मलाईदार पोस्ट पर आ जाते हैं। ये सब सरकार और नौकरशाही के गठजोड के बिना संभव नहीं है। भ्रष्टाचार तभी खत्म होगा, जब इतने कठोर कानून लागू किए जाएं कि कोई कर्मचारी व अफसर रिश्वत मांगते हुए भी दस बार सोचें और रिश्वत देने वाला भी। चीन की तर्ज पर भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों को फांसी की सजा के प्रावधान होने चाहिए। उनके और उनके परिवार की तमाम सम्पत्ति को जब्त करने के प्रावधान लागू हो। जो कोई रिश्वत लेते पकड़ा जाए या भ्रष्टाचार में लिप्त पाए जाए उसे तब तक बहाल ना किए जाए जब तक कोर्ट बरी ना कर दे। तब तक उसे किसी भी तरह का वेतन नहीं मिले और ना ही पोस्टिंग। कानून में कठोर प्रावधान किए जाने पर ही देश में भ्रष्टाचार खत्म हो पाएगा।

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