नई दिल्ली। यूपीए सरकार में रामसेतु को बाधक मानते हुए हटाने के फैसले को लेकर देश भर में भारी विरोध प्रदर्शन हुआ था। तब सरकार ने रामसेतु के अस्तित्व पर सवाल उठाते हुए कहा था कि यह मानव निर्मित नहीं है और ना ही इसका कोई पुरातात्विक महत्व है। भाजपा व हिन्दु संगठनों का विरोध हुआ तो यूपीए सरकार को कदम पीछे खींचने पड़े। रामसेतु के पौराणिक इतिहास को जानने के लिए अब केन्द्र सरकार इसका अध्ययन करेगी। इसकी जिम्मेदारी भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद (आईसीएचआर) को दी गई है। परिषद ने दो महीने का पायलट प्रोजेक्ट बनाया है। इसके तहत पुरातात्विक तरीके से यह पता लगाया जाएगा कि रामसेतु ढांचा प्राकृतिक रूप से बना था या मानव निर्मित था। आईसीएचआर के अध्यक्ष वाई. सुदर्शन राव ने मीडिया को बताया है कि राम सेतु के अध्ययन के लिए पायलट परियोजना तैयार की है। इसके इतिहास का अध्ययन किया जाएगा। यह पहल परिषद की है। समुद्र के पुरातत्व विज्ञान के इतिहास पर दो सप्ताह की कार्यशाला भी मई-जून में होगी। राम सेतु को एडम्स ब्रिज भी कहते हैं। इसका निर्माण भगवान श्रीरामचन्द की वानर सेना ने लंका तक जाने के लिए समुन्द्र में किया था।
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