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जयपुर। राजस्थान हाईकोर्ट ने फीस नियामक कानून, 2016 के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए याचिकाकर्ता स्कूल संचालक से पूछा है कि उनकी ओर से कितनी फीस बढ़ाई गई है और प्रशासन की ओर से संसाधनों पर कितना खर्च किया जा रहा है। मुख्य न्यायाधीश प्रदीप नान्द्रजोग और न्यायाधीश जीआर मूलचंदानी की खंडपीठ ने यह आदेश यह आदेश भारतीय विद्या भवन व अन्य की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए।
याचिका में कहा गया कि याचिकाकर्ता सरकार से किसी तरह का अनुदान प्राप्त नहीं करता है। ऐसे में उस पर फीस नियामक कानून लागू नहीं होता है।

इसके अलावा संभागीय आयुक्त की अध्यक्षता में अन्य अफसरों को शामिल करते हुए फीस कमेटी बनाई गई है। कमेटी में राज्य सरकार की ओर से नामित व्यक्ति ही स्कूल प्रशासन का प्रतिनिधि होता है। डीईओ ने याचिकाकर्ता की ओर से बढ़ाई स्कूल फीस पर गत 20 अप्रैल को रोक लगा दी। जबकि डीईओ को इस संबंध में कोई अधिकार ही प्राप्त नहीं है। याचिका में कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट तय कर चुका है कि संसाधनों के आधार पर स्कूल संचालक फीस वसूल कर सकते हैं। इसके अलावा याचिकाकर्ता आरटीई के तहत 25 फीसदी सीटों पर पात्र विद्यार्थियों को भी प्रवेश दे रहा है। ऐसे में फीस नियामक कानून को रद्द किया जाए अथवा याचिकाकर्ता को इसके क्षेत्राधिकार से बाहर माना जाए।

जिस पर सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने याचिकाकर्ता से फीस बढ़ोत्तरी और संसाधनों पर किए जाने वाले खर्च की जानकारी मांगी है। वहीं दूसरी तरफ हाईकोर्ट की एकलपीठ ने भारतीय विद्या भवन की ओर से फीस बढ़ोत्तरी करने पर राज्य सरकार व स्कूल प्रबंधन को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। न्यायाधीश इन्द्रजीतसिंह की एकलपीठ ने यह आदेश पीयूष जैन व अन्य की ओर से दायर याचिका पर प्रारंभिक सुनवाई करते हुए दिए। याचिका में स्कूल प्रबंधन की ओर से मनमाने तरीके से स्कूल फीस बढ़ाने को चुनौती दी गई है।

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