• विनोद पाठक

पंजाब में पहली बार त्रिकोणीय मुकाबला होने जा रहा है। अब तक कांग्रेस और अकाल दल बारी-बार से यहां सत्ता का सुख भोगते आए हैं, पर एक दशक से सत्तारुढ़ अकाली-भाजपा गठबंधन को इस बार कांग्रेस और आम आदमी पार्टी से चुनौती मिल रही है। दोनों पार्टी सत्ता विरोधी लहर का लाभ लेने में जुटी हैं। कौन मुख्य विपक्षी की भूमिका में है, इसे लेकर दोनों पार्टियों में होड़ है। यही कारण है कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी एक-दूसरे पर निशाना साधती रहती हैं। पर, सवाल जनता जनार्दन किस के सिर ताज पहनाएगी, इसका है। वैसे देखा जाए तो तीन-चार बड़े मुद्दे राज्य में दिखते हैं। नशे के कारोबार और भ्रष्टाचार के मुद्दे को लेकर आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल बेहद आक्रमक हैं। वे न केवल सत्तारुढ़ अकाली के नेता को जेल में डालने की चुनौती दे रहे हैं, बल्कि कांग्रेस के मुख्यमंत्री पद के दावेदार कैप्टन अरविंदर सिंह पर भी निशाना साधने से नहीं चुकते। इसी मुद्दे पर कांग्रेस भी अकालियों पर अंगुली उठाती है। अन्य मुद्दे बेरोजगारी, किसानों की स्थिति, जनसुविधाएं जैसे हैं। अगर जमीनी हकीकत की बात करें तो चुनाव किस दिशा में जाएगा, यह स्पष्ट नहीं है। स्थानीय राजनीति के जानकार अकाली-भाजपा सरकार के विरुद्ध सत्ता विरोधी लहर तो बता रहे हैं, पर उनका यह भी कहना है कि गठबंधन सरकार ने पिछले कुछ महीनों में अपनी पोजीशन को थोड़ा मजबूत किया है। सरकार को थोड़ा लाभ मोदी फैक्टर से है। गठबंधन को दौड़ से बाहर कहना जल्दबाजी होगी। जहां तक कांग्रेस की बात है, पार्टी फाइट में है। सत्ता विरोधी लहर का अधिक फायदा कांग्रेस को होता दिख रहा है। नेतृत्व का संकट पार्टी के पास नहीं है। कैप्टन अरविंदर मजबूत चेहरा हैं। नवजोत सिंह सिद्धू की भूमिका पर जानकार कहते हैं कि सिद्धू के आने से कांग्रेस को बहुत अधिक लाभ नहीं होगा। सिद्धू राजनीति से लंबे समय से दूर हैं। हां, उनकी पत्नी नवजोत कौर जरूर राजनीति में थोड़ा प्रभाव रखती हैं। हालांकि, उनका भी क्षेत्र कैप्टन की भांति पटियाला ही है। आम आदमी पार्टी पहली बार पंजाब के चुनाव में उतर रही है। लोकसभा चुनाव में पार्टी ने 24 प्रतिशत वोट लेकर अच्छी उपस्थिति दर्ज कराई थी। पार्टी के चारों सांसद पंजाब से चुनकर आए थे। पार्टी की राज्य में उपस्थिति को लेकर राष्ट्रीय स्तर तक शोर मचा हुआ है। अरविंद केजरीवाल दिल्ली में कम और पंजाब में ज्यादा समय बिता रहे हैं। पर, राजनीति के जानकार कहते हैं कि सालभर पहले पार्टी की जो स्थिति थी, अब वो नहीं दिखती। पार्टी के चार में से तीन सांसद किनारे लगाए जा चुके हैं। चौथे सांसद भगवंत सिंह मान को जनता सीरियस उम्मीदवार नहीं मानती। पार्टी से हटाए जाने के बाद पार्टी कोर्डिनेटर छोटेपुर अलग गुट बना चुके हैं। बड़ी संख्या में जमीनी कार्यकर्ता उनके साथ चले गए हैं। स्थितियां ऐसी हैं कि पार्टी का कार्यकर्ता भम्रित हो गया है। पंजाब में पहली बार का यह त्रिकोणीय मुकाबला बेहद दिलचस्प होने जा रहा है। नेताओं के बयानों के चीर, आरोप-प्रत्यारोप, जुमलों से दोआब का यह क्षेत्र अगले एक माह तक गुलजार रहने वाला है। 4 फरवरी को जनता किसके सिर ताज पहनाती है, इसका इंतजार 11 मार्च तक करना होगा।

  • लेखक वरिष्ठ पत्रकार है.

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