नवरात्रों का आगमन होते ही मन में उल्लास भर जाता है मन माता की भक्ति में भाव-विभोर हो जाता है पूरे नौ दिन तक नवरात्रा मनाने के बाद मन और आत्मा एकदम पवित्र हो जाता है क्योंकि मां शब्द ही अपने आप में सम्पूर्ण ब्रम्हाण्ड है सारा ब्रम्हाण्ड इसी शब्द में समाया हुआ है। नौ अलग-अलग दिन माताओं की पूजा की जाती है जिनमें से तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा होती है। मां का यह रूप बेहद ही सुंदर, मोहक और अलौकिक है। चंद्र के समान सुंदर मां के इस रूप से दिव्य सुगंधियों और दिव्य ध्वनियों का आभासहोता है।
मां का यह स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है। इनके मस्तक में घंटे का आकार का अर्धचंद्र है इसलिए इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है। इनके शरीर का रंग सोने के समान चमकीला है। इनके दस हाथ हैं। इनके दसों हाथों में खड्ग आदि शस्त्र तथा बाण आदि अस्त्र विभूषित हैं। इनका वाहन सिंह है, यह वीरता और शक्ति का प्रतिक हैं। मां चंद्रघंटा की कृपा से अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं, दिव्य सुगंधियों का अनुभव होता है तथा विविध प्रकार की दिव्य ध्वनियां सुनाई देती हैं। ये क्षण साधक के लिए अत्यंत सावधान रहने के होते हैं। इस देवी की आराधना से साधक में वीरता और निर्भयता के साथ ही सौम्यता और विन्रमता का विकास होता है। इसलिए हमें चाहिए कि मन, वचन और कर्म के साथ ही काया को विधि-विधान के अनुसार परिशुद्ध-पवित्र करके चंद्रघंटा के शरणागत होकर उनकी उपासना-आराधना करना चाहिए। इससे सारे कष्टों से मुक्त होकर सहज ही परम पद के अधिकारी बन सकते हैं। ये देवी कल्याणकारी है।