Increase in water storage capacity of 91 major reservoirs of the country by 2%

जयपुर। मकान बनाने और आधारभूत संरचनाओं में इस्तेमाल की जाने वाली बजरी की कमी अब दूर होने वाली है। अब खनिजों और खनिज सवंद्र्धन उद्योगों से निकलने वाले अवशेषों से बनी बजरी के इस्तेमाल होने से नदी के बजरी की कमी नहीं खलने की उम्मीद बढ़ गई है। राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण मंडल के सदस्य सचिव अजय कुमार गुप्ता ने बताया कि तकनीकी अड़चनों को दूर करने के लिए राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण मंडल और खनन व भूविज्ञान विभाग के अधिकारियों की एक समिति बनाई गई है। इस समिति को 24 मई, 2018 तक अपनी रिपोर्ट सौंपने को कहा गया है। समिति विचार करेगी कि ऐसे क्या-क्या तरीके हो सकते हैं, जिससे प्रदेश में पाये जाने वाले खनिजों से ही बजरी बनायी जाये। साथ ही समिति इस पर भी विचार करेगी कि इस संबंध में उभरकर सामने आने वाली पर्यावरणीय समस्याओं को कौन से तरीके अपनाकर दूर रखा जा सकता है।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा नदी की बजरी के इस्तेमाल पर रोक लगाये जाने संबंधी आदेश के बाद से बजरी की काफी कमी महसूस की जा रही थी। सुप्रीम कोर्ट का मानना था कि इससे नदी के अंदर के जीवन यानी जैव विविधता पर असर पड़ रहा था। नदी में गंदगी बढ़ती जा रही थी। पानी के स्तर सहित पर्यावरणीय समस्याएं भी बढ़ती जा रही थी। ऐसे में कोर्ट के आदेश के बाद से ही प्रदेश में बजरी की भारी कमी महसूस की जा रही थी।
समिति की सिफारिशों को लेकर एक कार्यशाला भी इसी माह में प्रस्तावित है, जहां विशेषज्ञ अपनी राय प्रकट करेंगे। इसमें खान, क्रशर, ग्राइंडिंग उद्योग, प्लांट सप्लायर्स सहित कई संबंधित क्षेत्रों के उद्यमी उपस्थित रहेंगे।
इन खनिजों से बनेगी बजरीः- ग्रेनाइट, सैंडस्टोन, बसाल्ट, क्वार्टजाइट, पीगामीटिज, चारनोकाइट, खोंडालाइटस सहित अन्य खनिज।

क्या है तकनीकी अड़चनः- खनिजों से बनने वाली बजरी को बारीक बनाना होगा। बजरी के कणों में उच्च क्रशिंग मजबूती लानी होगी और इसके कणों को समतल रखना होगा। ऐसी बजरी की गुणवत्ता को बनाये रखने पर ही लोग पसंद करेंगे जिसके लिए बीआईएस द्वारा स्थापित मानक संबंधी गुणवत्ता की निगरानी के लिए समुचित संख्या में लैब आवश्यक होगी।
नीतिगत अड़चनः- अभी खनिजों से निकलने वाले अवशिष्ट मुख्यतया पत्थर खनन के स्थान पर धूल के तौर पर, स्टोन कटिंग यूनिट में कटिंग वेस्ट के तौर पर और खदान के मुहाने पर भारी मात्रा में उपलब्ध हैं। लेकिन इसके उपयोग के लिए पर्यावरणीय स्वीकृति में संशोधन करने की आवश्यकता होगी। आबादी को ध्यान में रखते हुए अभी स्टोन क्रशर यूनिट को 1500 मीटर दूर रखा जाता है। खनिजों के अवशिष्टों को खपाने के लिए अभी कोई अनुदान या वित्तीय सहायता नहीं मिलती है, जबकि खनन विभाग द्वारा 5-10 रूपए प्रति टन की सब्सिडी दी जा सकती है।

 

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