नई दिल्ली। लोकप्रिय खेल जलीकट्टू के समर्थन को लेकर अब प्रदर्शन उग्र होते जा रहा है। मंगलवार की रात चैन्नई में जलीकट्टू के समर्थन में बड़ी संख्या में लोगों ने प्रदर्शन किए। नमक्कल जिले में वकीलों ने अदालतों के बहिष्कार की घोषणा की। वहीं प्रदेश के दो मंत्रियों से वार्ता के बाद भी हल नहीं निकल से सैंकड़ों की संख्या में कॉलेज छात्र व अन्य युवा मरीना बीच पर बैठे रहे। इस बीच बुधवार को मद्रास हाईकोर्ट मरीना बीच पर जारी भारी प्रदर्शन के मामले में एडवोकेट के. बालू की याचिका पेश कर शिकायत की थी कि जब जलीकट्टू के विरोध में शांतिपूर्ण प्रदर्शन चल रहा था। तो प्रशासन ने बिजली काट दी और प्रदर्शनकारियों को पेयजल की आपूर्ति जैसी कोई व्यवस्था नहीं की गई। इस पर चीफ जस्टिस एस.के. कौल और जस्टिस एम सुंदर की पीठ ने इस स्टेज में इस मामले में किसी तरह का दखल देने से इंकार कर दिया। खंडपीठ ने कहा सबसे पहली बात तो यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने इसे अपने हाथ में ले लिया है। अब इस मामले में हाईकोर्ट या तमिलनाडु सरकार कुछ नहीं कर सकती। दूसरी बात यह है कि मरीना रोड कोई प्रदर्शन करने की जगह नहीं है। अब इस स्टेज में कोई दखल देना नहीं चाहता। जल्लीकट्टू के आयोजन और पशु अधिकार संगठन पेटा पर प्रतिबंध की मांग कर रहे युवाओं बुधवार को दूसरे दिन राज्यभर में उग्र प्रदर्शन किया। पुलिस ने रात को मरीना बीच की बिजली आपूर्ति बंद कर दी। इसके बाद भी बावजूद प्रदर्शनकारी युवा रातभर मोबाइल फोन की रोशनी के सहारे प्रदर्शन करने में जुटे रहे। मदुरै जिले के अलंगनाल्लुर में जल्लीकट्टू के समर्थन में प्रदर्शनकारियों की गिरफ्तारी की खबर फैलने के बाद यहां भी मंगलवार सुबह से ही प्रदर्शन शुरू हो गया। द्रविड़ मुनेत्र कडग़म (डीएमके) के कार्यकारी अध्यक्ष और तमिलनाडु में विपक्ष के नेता एमके स्टालिन ने मुख्यमंत्री पनीरसेल्वम से प्रदर्शनकारियों से मुलाकात करने और जल्लीकट्टू के आयोजन के लिए तत्काल कार्रवाई करने का आग्रह किया है। प्रदर्शनकारी युवाओं को लोकप्रिय अभिनेता विजय का समर्थन भी मिला। इधर राज्य सरकार प्रदर्शनरत युवाओं को आश्वासन दिया है कि इस मामले में राष्ट्रपति से मिलकर अध्यादेश लाने का अनुरोध किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने 12 जनवरी को इस मामले में पोंगल त्योहार से पहले आदेश पारित करने से इंकार कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने साल 2014 में जलीकट्टू पर प्रतिबंध लगा दिया था। राज्य सरकार की समीक्षा याचिका को विगत वर्ष कोर्ट ने खारिज कर दिया। केंद्र सरकार बैन हटाने के लिए एक नोटिफिकेशन लेकर आई जिस पर कोर्ट ने अपना आदेश सुरक्षित कर दिया था।

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