The color of religion in crime!
The color of religion in crime!

– मुरारी गुप्ता

सलेक्टिव मीडिया और एक्टिविस्ट की जमात उस मासूम को इंसाफ दिलाने से ज्यादा दिलचस्पी इस बात में लेने लगती हैं कि दुष्कर्म और हत्या करने वाले का धर्म क्या था। जाहिर है, उनका इरादा ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ जैसे सनातनी वेद वाक्यों पर विश्वास और अनुसरण करने वाली हजारों साल पुरानी सनातनी परंपरा पर कुठारघात करना था। जम्मू-कश्मीर के कठुआ में दुष्कर्म और हत्या की शिकार मासूम बालिका के पिता एक निजी चैनल से बातचीत में कहते हैं-हिंदु

murari gupta
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लोग हमारे भाई हैं। गुज्जर-बकरवाल और हिंदु लोग शुरू से साथ साथ रह रहे हैं। इन्हीं लोगों ने हमें यहां बसाया है और इन्हीं के खेतों में उनके मवेशी चरते हैं। वे आगे कहते हैं-जब बच्ची की लाश मिली थी, तो हमारे हिंदु भाइयों की औरतें रो रही थीं। वे स्थानीय पुलिस पर आशंका जाहिर करते हुए कहते हैं- जो पुलिस सात दिनों में कैटल शैट से बच्ची की लाश नहीं निकाल सकी, वह इस मामले का क्या जांच करेगी। पीडिता के पिता आखिर में कहते हैं- कुछ लोग इस घटना पर सियासत कर रहे हैं। लेकिन हमारी मांग है कि इस मामले की सीबीआई जांच हो, और गुनहगारों को कड़ी सजा मिले।

पीड़िता के पिता के इंटरव्यू को सुनने के बाद वैसे तो कुछ भी शेष नहीं रहना चाहिए। मगर सियासत में उसके पिता के इस इंटरव्यू का कोई महत्व नहीं है। लगभग चार साढ़े चार मिनट के इस इंटरव्यू में कुछ बातें गौर करने वाली हैं और चेताने वाली हैं। पहली गुज्जर बकरवाल और हिंदु लोग सालों से साथ साथ रह रहे हैं। गुज्जर बकरवाल समुदाय की चर्चा एक शांत, मेहनती और देश प्रेमी समुदाय के तौर पर की जाती है। अचानक से दुष्कर्म और हत्या की शिकार मासूम को इंसाफ दिलाने का अभियान एक खास अभियान में बदल देने का प्रयास शुरू हो जाता है। दुर्भाग्य से, देश की बुद्धिजीवी जमात इस अभियान को एक नई दिशा और नया रंग देने की कोशिशें शुरू कर देते हैं। स्थानीय बकरवाल और हिंदु समुदाय के बीच खाई पैदा करने का अभियान शुरू किया जाता है। दुर्भाग्य से, वे इस काम में आंशिक और तात्कालिक रूप से सफल भी होते दिखते हैं। सलेक्टिव मीडिया और एक्टिविस्ट की जमात उस मासूम को इंसाफ दिलाने से ज्यादा दिलचस्पी इस बात में लेने लगती हैं कि दुष्कर्म और हत्या करने वाले का धर्म क्या था। जाहिर है, उनका इरादा ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ जैसे सनातनी वेद वाक्यों पर भरोसा और अनुसरण करने वाली हजारों साल पुरानी सनातनी परंपरा पर कुठारघात करना था।

सोश्यल मीडिया में प्रवेश करें, तो ऐसा महसूस होता है मानों देश का बहुसंख्यक हिंदु समुदाय, उसके देवी देवता, देवस्थान, उसके पवित्र प्रतीक चिह्न मानों दुष्कर्म के प्रतीक हो गये हैं। फिल्म अदाकाराएं किसी चैनल के लिए प्रायोजित तख्ती लिए ट्वीट कर रही हैं-आई एम हिंदुस्तान, आई एम अशैम्ड, मर्डर्ड इन देवी स्थान, जस्टिस फोर आसिफा। पहली नजर में इस ट्वीट में कोई बुराई नजर नहीं आती। इस तरह के अभियान पहले भी चले हैं। ट्वीट हुए हैं। मगर थोड़ा गौर कीजिए, इस ट्वीट में दो नए शब्दों का इस्तेमाल हुआ। हिंदुस्तान और देवी स्थान। कथित उदारवादी और सेकुलरवादियों के अभियान से अनजान कोई भी साधारण सोच का व्यक्ति इस ट्वीट में से इन दो पूर्वाग्रह से डाले शब्दों को खारिज कर देगा। पीड़िता के लिए न्याय मांगना अलग बात है, मगर न्याय मांगने के बहाने अगर किसी को नीचा दिखाने की मंशा है, तो इससे बदतर काम कोई नहीं हो सकता। देवी स्थान या कैटल शैड जांच का विषय है। मगर, पूर्वाग्रहों का कोई आकाश नहीं होता है।

इसी तरह की वीभत्स दूसरी घटनाओं की चर्चा कर लेते हैं। यहां चर्चा करना इसलिए जरूरी है, क्योंकि एक सी घटनाओं को देखने का चश्मा कथित उदारवादियों और सेकुलरवादियों के पास अलग अलग है। और उन्हें बेनकाब करना वक्त की जरूरत है। इसी साल मार्च महीने में एक असम की लड़की के साथ दुष्कर्म होता है और उसे जिंदा जला दिया जाता है और आरोपी एक खास समुदाय से होता है। दूसरी घटना, अप्रेल महीने की है, जिसमें एक मौलवी एक मुस्लिम लड़की की दुष्कर्म के बाद हत्या कर देता है। कर्नाटक में एक साठ साल की महिला के साथ सामूहिक दुष्कर्म की घटना होती है, और आरोपी उसी समुदाय के होते हैं।

इन घटनाओं की चर्चा किसी खास समुदाय के आरोपी और किसी खास समुदाय की पीड़िता को उजागर करना नहीं है। बल्कि हर एक ऐसी घटना दुर्भाग्यपूर्ण है और उनके आरोपियों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए। मगर, इन घटनाओं में जो उल्लेखित बात है वह यह है कि इन घटनाओं के वक्त कथित उदारवादी और सेकुलरवादियों के हाथ में न तो कैंडल होती है और न तख्तियां। उनके ट्वीट होते हैं- दुष्कर्म की घटना का किसी समुदाय और स्थान से कोई संबंध नहीं होता। मगर अपराध की सुई जब कठुआ की ओर घूम जाती है तो इसी तरह के वीभत्स घटनाक्रम के लिए उनके पास अलग व्याकरण होती हैं। उनका यह रवैया निश्चित ही विशाल भारत के समाज में वैमनस्य पैदा करता है।

राजस्थान काडर के वरिष्ठ आईएएस संजय दीक्षित ने अपने एक ट्वीट में कथित उदारवादियों और सेकुलर बिरादरी के लिए लिखा है- उनके लिए आतंक का कोई धर्म नहीं होता, मगर रेप का धर्म होता है, उनकी नजर में अच्छा रेप और बुरा रेप भी होता है। पढ़ने में निश्चित रूप से ये लाइनें बिलकुल अच्छी नहीं लगती। मगर उनके पूर्वाग्रहों और समाज को तोड़ने के कुचक्रों को उजागर करने के लिए इस तरह की शब्दावली का जिक्र अनिवार्य है। अगर पीड़िता मुस्लिम समुदाय से है और आरोपी हिंदु है तो नजरिया अलग होता है और तथ्य अगर ठीक इसके उलट हुए तो नजरियां बिलकुल अलग होता। पिछले कुछ महीनों में हुए इस तरह के अन्य मामलों की पड़ताल में इसका आसानी से विश्लेषण किया जा सकता है। इसका ताजा उदाहरण लीजिए, हाल ही में उनचास पूर्व नौकरशाहों ने कठुआ जैसी घटनाओं पर चिंता जताते हुए प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है। उनके ह्रदय में अचानक से उभर आई चिंता को समझा जा सकता है।

कुछ पुरानी घटनाओं की यहां चर्चा करना लाजिमी है। याद कीजिए, पिछले साल हरियाणा में ट्रेन में सीट की लड़ाई को कैसे सांप्रदायिक रंग में रंगते हुए ‘नोट इन माई नेम’ अभियान चलाकर देश के मुस्लिम वर्ग की भावनाओं को हिंदुओं के खिलाफ भड़काने का जलील काम किया गया। पिछले महीने ही 28 मार्च के अपने फैसले में पंजाब हरियाणा उच्च न्यायालय ने इस मामले में कहा कि यह मामला महज सीट बंटबारे को लेकर था और इसमें किसी पूर्व योजना या वैमनस्य पैदा करने की किसी साजिश का कोई सबूत नहीं मिला है। और खास बात यह कि इस मामले की एफआईआर में बीफ का जिक्र तक नहीं था, जिस पर कथित उदारवादियों ने बौद्धिक आतंक मचा दिया था। उस वक्त मीडिया की हैडलाइंस देखिए- ‘एक्युज्ड आफ कैरिंग बीफ, टीन कील्ड आन ट्रेन’, ‘मुस्लिम टीनेजर स्टैब्ड टू डैथ इन हरियाणा ट्रेन आफ्टर मोब एक्युज्ड विक्टिम आफ कैरिंग बीफ’, और बीबीसी ने हैडलाइन बनाई- ‘मुस्लिम्स आन इंडिया ट्रेन असाल्टेड बीकाज दे एट बीफ’। क्या भारतीय समाज में जानबूझकर वैमनस्य पैदा करने के लिए अब माफी मांगी जाएगी!

आखिर में एक और घटना का जिक्र। इसी साल फरवरी में होली पर दिल्ली के एलएसआर कालेज के सामने लड़कियों पर कथित तौर पर सीमन भरे गुब्बारे फैंकने को लेकर हिंदु विरोधी मानसिकता के कथित बुद्धिजीवियों ने सनातन परंपराओं को अपनी जलील टिप्पणियों, ट्विटों और रिपोर्टिंग से खूब बदनाम करने की साजिश रची थी। फारेंसिक साइंस लेबोरैटरी ने अपनी जांच में उस बैलून में सीमन होने से साफ इनकार किया है। इस संबंध में दिल्ली पुलिस लैबोरेटरी की जांच की पुष्टि की है। अब वे एक्टिविस्ट अपनी उन टिप्पणियों को अब माफी मांगेंगे जिसमें उन्होंने होली जैसे पवित्र त्यौहार को इन घटनाओं से जोड़ कर हिंदु भावनाओं के साथ जमकर कुठाराघात किया था। याद रखिए भारत की सभ्यता और संस्कृति दसियों हजार साल पुरानी होने के साथ नित्य नूतन है। इसमें वह ताकत है कि यह वक्त के अनुसार खुद को ठीक भी कर सकती है और दूसरों को भी।

फिर से पहली घटना पर लौटते हैं, पीड़िता के मजबूर पिता की बयान फिर से गौर से सुनें। इस भयावह और शर्मनाक घटनाक्रम को कोई भी रंग देने की कोशिश जांच की गंभीरता को भटका सकती है। क्योंकि अपराध का कोई रंग, धर्म, नस्ल, जात नहीं होती। वह सिर्फ अपराध होता है। उम्मीद है न्याय की दहलीज पर उस मासूम के साथ सच्चा न्याय होगा।

(लेखक साहित्यकार हैं)

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