Supreme Court

नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय के चार न्यायाधीशों द्वारा शीर्ष अदालत में स्थिति ठीक नहीं होने का बयान दिये जाने के बाद कांग्रेस ने कहा कि लोकतंत्र ‘खतरे’ में है जबकि माकपा ने इसकी पूरी जांच कराने को कहा है। कांग्रेस पार्टी के आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर कहा गया, ‘‘हम यह सुनकर बहुत चिंतित हैं कि उच्चतम न्यायालय के चार न्यायाधीशों ने शीर्ष न्यायालय के कामकाज पर चिंता जतायी है। लोकतंत्र खतरे में है।’’ माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा कि इस बात को समझने के लिए पूरी जांच कराये जाने की जरूरत है कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता एवं ईमानदारी कैसे ‘‘प्रभावित’’ हो रही है क्योंकि न्यायाधीशों ने कहा है कि कई ‘‘कम वांछित’’ चीजें शीर्ष अदालत में हो रही हैं।

उन्होंने कहा कि लोकतंत्र के तीन स्तंभों के लिए यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि उठाए गए मुद्दे सही हैं। पूर्व केन्द्रीय विधि मंत्री और कांग्रेसी नेता अश्वनी कुमार ने पीटीआई भाषा से बातचीत में कहा कि भारत के इतिहास में यह ‘‘दुखद दिन’’ है कि न्यायाधीशों को शीर्ष अदालत की घटनाओं को सार्वजनिक करने के लिए ‘‘मजबूर’’ होना पड़ा। उन्होंने भी न्यायाधीशों द्वारा उठाए गए मुद्दों पर गौर करने के लिए सामूहिक संकल्प का आह्वान किया, बजाय इसके कि उन्होंने जो कहा उसमें खामियां निकाली जाएं।

कांग्रेसी नेता ने कहा, ‘‘न्यायाधीशों द्वारा असाधारण एवं असामान्य कदम में प्रत्यक्ष एवं परोक्ष पीड़ा में ही संदेश छिपा है। राष्ट्र के लिए उन बड़े मुद्दों पर बहस का समय आ गया है जो न्यायाधीशों द्वारा प्रेस को जारी विज्ञप्ति से स्पष्ट तौर पर पैदा होते हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘…मुझे आशा है कि माननीय सीजेआई और सभी संबंधित सदस्य तत्काल उपचारात्मक कदम उठाएंगे।’’ राज्यसभा के पूर्व सदस्य शरद यादव ने इसे लोकतंत्र के लिए ‘‘काला दिन’’ कहा। उन्होंने कहा कि पहली बार उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को शिकायतें बताने के लिए मीडिया के सामने बोलना पड़ा। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका लोकतंत्र का सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ है। उन्होंने दावा किया कि न केवल यह बल्कि अन्य स्तंभ भी खतरे में हैं।

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