ST bogus caste certificate was made 22 years ago, but till now no evidence appeared in the court nor did the witness come

जयपुर। दिल्ली विश्वविद्यालय में बी ए पार्ट प्रथम में प्रवेश प्राप्त करने के लिए 22 साल पहले अगस्त, 1995 में एसटी का फर्जी मीणा जाति का प्रमाण पत्र बना कर प्रवेश लेकर धोखा देने के मामले में राज्य सरकार की ओर से अदालत में ना तो साक्ष्य पेश हुई और ना ही महत्वपूर्ण गवाहों को पेश किया गया। यहां तक कि बनीपार्क थाने में 16 जनवरी, 1997 को मुकदमा दर्ज कराने वाले तत्कालीन एडीएम एवं रिटायर्ड आईएएस हनुमंत सिंह भाटी कोर्ट में गवाही देने ही नहीं आये। कोर्ट में केवल 5 गवाह बयान देने आये। गवाह चन्द्रभान, लक्ष्मीराम एवं अनुसंधान अधिकारी के भी बयान अधूरे रहे, जिनका साक्ष्य में कोई महत्व नहीं रहा। कोर्ट में एफएसएल में दस्तावेज जमा कराने की रशीद तो पेश हुई, लेकिन जांच रिपोर्ट पेश ही नहीं की गई। 1994 में कलक्ट्री में बाबू कैलाश मीणा गवाही देने तो आया लेकिन कोर्ट को अधूरी जानकारी दी। बाबू ने कहा कि फर्जी जाति प्रमाण पत्र पर अंकित क्रमांक 952/16.०8.95 उनके आॅफिस से जारी नहीं हुआ था, क्या जारी हुआ था, पता नहीं, डिस्पेच रजिस्टर भी पेश नहीं है। दिल्ली विश्वविद्यालय से गवाही आये देवेन्द्र सिंह भी अभियोजन पक्ष की कोई मदद नहीं कर सके।

एक आरोपी 6 माह पहले चल बसा एवं एक हुआ बरी
चालान पेश होने पर कोर्ट ने 3 अक्टूबर,1997 को प्रंसज्ञान लेकर 14 सितम्बर, 2००० को दोनों पर दफा 42०/12०बी, 467,468 एवं 471 के अन्तर्गत चार्ज लगाये थे। मामले में एक आरोपी प्रभू सिंह बारेठ निवासी एच-37, टेगोर पथ, बनीपार्क की मौत होने पर 17 मई, 2०17 को उसके खिलाफ कार्यवाही डशॉप हो गई एवं एक आरोपी जसवंत सिंह निवासी कटरा आत्माराम, सदर-दिल्ली को एमएम-6 रश्मि नवल की कोर्ट ने अभियोजन पक्ष की ओर से अपराध को प्रमाणित करने के लिए कोई भी दस्तावेजी या मौखिक साक्ष्य पेश नहीं करने के आधार पर बरी कर दिया।

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