टोंक। इस्लामी विद्वान और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के संस्थापक सर सैय्यद अहमद खान की पोती उजमा कादरी ने पति के साथ टोंक जिले के ख्यातनाम अरबी फारसी शोध संस्थान में रखी ऐतिहासिक ग्रंथों व पुस्तकों को ना केवल निहारा, बल्कि इन ग्रंथों को सहेजने और इतिहास की जानकारी भी हासिल की। संस्थान में दुनिया की सबसे बडी कुरान से लेकर कई बादशाहों का इतिहास, हिन्दु ग्रंथों में फारसी में अनुवाद जैसे ग्रंथ भी है। सर सैय्यद अहमद खां की पोती उजमा कादरी ने अपने पति मसूद बख्श कादरी के साथ संस्थान में पहुंची। वे दोनों ही अमरीका में रहते हैं। इन्होंने दुनिया की सबसे बड़े साइज की कुरआन एवं वहां रखे दुर्लभ ग्रंथ देखकर अचंभा जाहिर किया। मंगोल शासक चंगेल खान के पोते हलाकू की ओर से जलाए और नदी में बहाए ग्रंथों में से बचे उन ग्रंथों-पुस्तकों को भी देखा। एक हजार साल बाद भी ये ग्रंथ खासे सुरक्षित हैं। ग्रंथों को सुरक्षित रखने के लिए संस्थान के कार्यों की भी जानकारी ली। मसूद बख्श कादरी ने बताया कि यहां पर रखे दुर्लभ ग्रंथों आदि को देखकर यहां के लोगों की काबिलियत व महत्ता का भी अंदाजा लगाया जा सकता है। उजमा कादरी ने बताया कि यहां आकर बहुत अच्छा लगा। यहां से दुर्लभ पुस्तकें देखकर संस्थान की महत्ता का भी पता चलता है। इस मौके पर शोध संस्थान के संस्थापक निदेशक शौकत अली खां, निदेशक सौलत अली खान, मौलाना सलाहुद्दीन कमर, बदरुद्दीन खान, फैसल हसनी सहित अन्य लोग भी मौजूद थे। मसूद बख्श कादरी के दादा टोंक स्टेट के प्रधानमंत्री भी रहे।

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