केस एक : पृथ्वीराज नगर की रामदेव कालोनी के लोग बहुत खुश थे कि बरसों बाद उनके मकानों का नियमन हो जाएगा। जेडीए के पट्टे मिल जाएंगे। लोन लेकर मकान बना सकेंगे। उनकी यह खुशी उस समय मायूसी में बदल गई जब जेडीए के अफसरों ने उनकी कालोनी में कमियां बता कर नियमन करने से मना कर दिया। उन्हें बताया गया कि सोसासटी का रिकॉर्ड और विकास समिति का रिकॉर्ड अलग अलग है।
केस दो : जोन 16 के अंबानगर और सूर्यनगर के निवासियों ने भी नियमन शिविर लगाने के लिए बहुत मेहनत की। मौके पर सर्वेयर बुला कर हर मकान का सर्वे कराया, नक्शा बनाया, सदस्यता सूची बनवाई लेकिन, इस सारी तैयारी पर उस समय पानी फिर गया जब तहसीलदार ने उन्हें बताया कि यह जमीन मंदिर माफी की है और इसका नियमन नहीं हो सकता।
ये दो उदाहरण ऐसे है जो जेडीए में नियमन की आड़ में चल रहे खेल की पोल खोलते है। स्थानीय लोगों के आरोपों पर विश्वास करें तो जेडीए के अधिकारियों ने जो कमियां गिनाकर काम रोका है वह दरअसल उनकी सेवा नहीं होने के कारण किया है। जेडीए मेें सेवा का यह खेल इस कदर चलता है कि आम आदमी तो क्या प्रभावशाली का भी काम नहीं होता। यहां पर न तो सूचना का अधिकार लागू होता है और न ही लोकसेवा गारंटी कानून। जेडीए ने हर काम को पूरा करने के लिए समय सारणी तय की है वह पुस्तिकाएं तो नुमाइश की वस्तु बनकर रह गई। कानूनी पेचीदगियों के ऐसे दाव खेले जाते है कि एक फाइल को एक टेबल से दूसरी टेबल तक पहुंचने में ही महीनों बीत जाते है। यदि सेवा हो जाए तो फाइलों के पर लग जाएंगे और फाइल दौड़ पड़ेगी। इस खेल में जेडीए के बाबू से लेकर उपर तक हर मिलीभगत रहती है। वैसे यह खेल बरसों से चल रहा है। इसी कारण जेडीए पोस्टिंग के लिए आईएएस से लेकर इंजीनियर सभी लालायित रहते है।
नियमन का खेल
जेडीए में सैकड़ों कॉलोनियों का रिकॉर्ड जमा है। जिन कॉलोनियों की विकास समितियों ने अधिकारियों और कर्मचारियों की सेवा की उनके नियमन शिविर लग गए चाहे वहां बसावट पूरी तरह से हुई भी नहीं हैं। वहां पट्टे देने की कार्रवाई भी ताक में रखकर कर दी जाती है। दरअसल जेडीए में दलाल सक्रिय है। जो नियमन के लिए जमा रिकॉर्ड के आधार पर कॉलोनियों की विकास समितियों के पदाधिकारियों से सम्पर्क करते है और सौदा तय होने पर फाइल चलवाते है। सौदा नहीं पटा तो किसी न किसी बहाने उसे अटका दिया जाता है। लोग चक्कर लगा लगाकर थक गए। जानकारों की मानें तो यहां हर काम के पैसे तय है और इनका बंटवारा फाइल को एक टेबल से दूसरी टेबल तक पहुंचने वाले चपरासी, फाइल को अफसर तक पहुंचाने वाले बाबू और अफसर तक सब में हैसियत के हिसाब से होता है। जेडीए के कुछ पूर्व कर्मचारी भी इस काम में लगे हुए है। देखा जाए तो जनता की राहत के लिए खोला गया नियमन का रास्ता जेडीए में अवैध कमाई का जरिया बन चुका है।
निजी पर ज्यादा ध्यान
जेडीए अधिकारियों का हाउसिंग सोसायटी की कॉलोनियों के नियमन से ज्यादा ध्यान निजी खातेदारी की योजनाओं के नियमन पर रहता है। जोन 8, 9, 10, 11, 12, 13, 14, 15, 16 और 17 के अंतर्गत आने वाले अजमेर रोड, टोंक रोड, सीकर रोड के बाहरी इलाके जहां बसावट नहीं है वहां निजी खातेदारी की सैकड़ों आवासीय योजनाओं का नियमन हो चुका है। हाउसिंग सोसायटी के अधिकांश मामले सुविधा क्षेत्र, मंदिर माफी की जमीन, बसावट, रिकॉर्ड में हेराफेरी आदि के कारण विवादित रहते है। हाल में विवाद में आए पृथ्वीराज नगर के जोन 16 में 12 हजार से अधिक भूखंड है जिसमें से 92 स्कीमों में 6052 पट्टे बांटे गए हैं। इसमें 90 स्कीमों में 5800 पट्टे तत्कालीन उपायुक्त हरिसिंह मीणा के कार्यकाल में जारी किए है। इसको लेकर नगरीय विकास मंत्री राजपाल सिंह शेखावत ने भी आश्चर्य जताया है।

इन स्कीमों में विवाद
करीब 20 स्कीमों के ऐसे उदाहरण है जिनका नियमन शिविर किसी न किसी विवाद के चलते नहीं लगाया गया। जबकि अफसर चाहते तो इनके नियमन का रास्ता नियमानुसार निकाल सकते है। अंबानगर, सूर्यनगर, गोकुलनगर ए, गोविन्दपुरा, श्रीगंगा विहार, चन्द्रनगर में मंदिर माफी की जमीन पर बसावट होना बताया है। इसमें निर्णय तहसीलदार के स्तर पर निर्णय लिया जा सकता है। रामदेव विहार, कल्याण नगर प्रथम रामालय वाटिका में सोसायटी और विकास समिति का रिकॉर्ड अलग अलग होना बताया गया। जेडीए का सहकारिता प्रकोष्ठ इन सूचियों को समाचार पत्रों में प्रकाशित करा कर आपत्तियां मांग कर उनका निराकरण कर सकता था। मित्रनगर, आफिसर्स एन्क्लेव, उमा विहार, हनुमान वाटिका ए, हरि ओमनगर, शिवजीनगर के नियमन की कार्रवाई होनी थी लेकिन, हरिओम नगर मौके पर नहीं होना बताया गया। जोन उपायुक्त ने 25 फरवरी तक के और भी स्कीमों के नियमन शिविरों के कार्यक्रम तय कर दिए जिनमें रामदेवनगर, पारीक विहार, कैलाश विहार, राम विहार, कल्याणनगर प्रथम, मोती विहार, यादव ब्लाक, नारायणपुरी और नाथावतपुरी है। इनका नियमन अब अटक गया है।
विवाद फिर भी मिली मंजूरी
जोन 19 में वास्तुश्री योजना के रिकॉर्ड बदल दिया गया। मौजूदा रिकॉर्ड में कई बड़े भूखंडों के विभाजन कर संख्या बढ़ा दी गई। सुविधा क्षेत्र कई जगह हजम कर दिया गया। नए रिकॉर्ड में इस योजना में 300 से ज्यादा भूखंड सृजित कर दिए गए जबकि पहले सौंपे गए रिकॉर्ड में इनकी संख्या 250 थी। इसी तरह मित्र नगर हाउसिंग सोसायटी की योजना सुमेर नगर मैन में पुराने और नए नक्शे में सुविधा क्षेत्र अलग अलग दिखा दिया।मीनावाला हाउसिंग कोआपरेटिव हाउसिंग सोसायटी की योजना नारायण एनक्लेव का रिकॉर्ड विकास समिति ने 13 सितंबर 13 को सौंपा था। इसके बाद समिति ने एक बार फिर 20 नवंबर 2014 को रिकॉर्ड पेश किया। इन दोनों रिकॉर्ड में भूखंडधारियों के नाम बदल दिए गए बल्कि नक्शा तक बदल दिया गया। इसमें भूखंडों का साइज घटा कर संख्या बढ़ा दी गई। 60 भूखंडधारियों की सूची में 42 के नाम बदल दिए गए। एक हजार वर्गगज से अधिक भूखंडों का साइज घटा कर नए भूखंड सृजित कर दिए गए। तहसीलदार ने भी अपनी नोटिंग में इसकी पुष्टि कर दी।इससे योजना का क्षेत्रफल 66. 10 प्रतिशत और सड़क का हिस्सा 33.90 प्रतिशत कर दिया। पार्क, अस्पताल, सामुदायिक केन्द््र की जमीन गायब कर दी। जेडीसी ने भी इस खेल को दरकिनार कर रिकॉर्ड के आधार पर नियमन की रजामंदी दे दी।
इस आदेश से हुई शुरुआत
पृथ्वीराज नगर की कालोनियों के नियमन की शुरुआत हाईकोर्ट के आदेश के बाद हुर्ई। राज्य सरकार ने पृथ्वीराजनगर के नियमन का प्लान हाईकोर्ट में पेश किया था जिसे मंजूर कर लिया था। इसके बाद सरकार ने जेडीए को नियमन के आदेश दिए। जेडीए ने इस संबंध में सार्वजनिक सूचना प्रकाशित की जिसमें गृह निर्माण सहकारी समितियों से 22 अक्टूबर 1999 तक सृजित योजनाओं का रिकार्ड मांगा गया था। यह रिकॉर्ड 25 जुलाई 2012 तक जमा कराना था। हाउसिंग सोसायटियों के पदाधिकारियों के आपसी विवाद, आधा-अधूरा रिकॉर्ड होने के कारण राज्य सरकार ने लोगों को राहत पहुंचाने के लिए नियमों में ढील दे दी कि सोसायटी का रिकॉर्ड नहीं आने की स्थिति में कालोनी की विकास समिति भी अपना रिकॉर्ड जमा करा सकती है। इसके बाद कालोनियों का रिकॉर्ड जमा होना शुरु हुआ।
मंत्री के बाद सीएम ने फटकारा
पृथ्वीराज नगर में नियमन को लेकर उजागर हुई गड़बडिय़ों को लेकर नगरीय विकास मंत्री राजपाल सिंह शेखावत की बयानबाजी के बाद अब खुद मुख्यमंत्री वसुंधराराजे ने भी इस मामले को गंभीर माना है। हाल ही में नगरीय विकास विभाग की समीक्षा बैठक के दौरान उन्होंने पृथ्वीराज नगर इलाके में खाली चारदीवारी वाली जमीन की कॉलोनियों के नियमन की जानकारी जेडीए अधिकारियों से ली। उन्होंने जब जेडीए के अधिकारियों ने घनी आबादी वाली कॉलोनियां छोड़ कर खाली कॉलोनियां के नियमन शिविर लगाने की वजह पूछी तो उनसे उत्तर देते नहीं बना। इस पर जेडीसी शिखर अग्रवाल को कड़ी फटकार लगाते हुए लगाते हुए पूरे मामले की रिपोर्ट तलब की है। गौरतलब है कि इस मामले को लेकर नगरीय विकास मंत्री ने जेडीए अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के खुलकर आरोप लगाए है। इस समीक्षा बैठक के दौरान मुख्यमंत्री ने हाउसिंग बोर्ड के कामकाज पर भी सवाल उठाए। अधिकारियों को भी जमकर लताड़ लगाई। दरअसल पुराने कामों को नजरन्दाज कर हाउसिंग बोर्ड ने नए काम शुरू कर दिए और इसकी जानकारी उन्होंने बैठक में दी तो सीएम ने सीधा सवाल किया कि, पहले वाले पूरे हो गए क्या? किससे पूछ कर ये काम शुरू किए? उन्होंने हाउसिंग बोर्ड को बन्द करके सम्पत्तियां निकायों को देने और कर्मचारियों को निकायों में समायोजित करने की चेतावनी दी।

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