• राकेश कुमार शर्मा

जयपुर। पहियों पर महल के नाम से मशहूर पैलेस ऑन व्हील्स में सैर करने के लिए कभी सैलानी तरसते थे। अब स्थिति यह हो गई है कि यह शाही रेल पर्यटकों को तरसने लगी है। दुनिया की बेहतरीन शाही रेलों में शुमार पैलेस ऑन व्हील्स इस पर्यटन सीजन के अंतिम फेरों में इक्के-दुक्के पर्यटकों के साथ चली। इसके बाद चार फेरों में पच्चीस से तीस सैलानी ही भ्रमण पर आए। सीजन की शुरुआत से ही इस शाही रेल की स्थिति डांवाडोल रही। कभी पर्यटकों से फुल रही तो कभी आधे-पडते सैलानियों के भरोसे चली। एक फेरा (31 मार्च को) ऐसा भी रहा, जिसमें कोई पर्यटक नहीं आया, जो अपने आप में अनोखा रिकॉर्ड रहा। तीन दशक के सफर में पहली बार पैलेस ऑन व्हील्स को पर्यटक नहीं मिले। कभी दो-दो साल तक इस शाही रेल में पर्यटकों की अग्रिम बुकिंग रहती थी। इस रेल के शाही सफर के लिए पर्यटक तरसते थे और टिकट बुक कराने के लिए हर कीमत देने को तैयार रहते थे। अब कुछ सीजन से वक्त कहे या इसका संचालन करने वाले राजस्थान पर्यटन विकास निगम की लापरवाही नीतियां जिसके चलते यह शाही रेल अब सैलानियों को तरसने लगी है। पर्यटक नहीं मिलने से एक फेरा रद्द होने तथा शेष बचे फेरों में भी नाम-मात्र के पर्यटकों की बुकिंग होना यह संकेत देता है कि अब इस शाही रेल के दिन लदने लगे है। लगातार पर्यटकों की कमी और इस शाही रेल के संचालन में हो रहे घोटालों से यह तो साफ है कि निगम के अफसरों को शाही रेल से राजस्थान के पर्यटन और निगम की आय बढ़ाने के बजाय खुद की तरक्की की चिंता ज्यादा दिखाई देती है। करीब चालीस करोड़ रुपए की लागत से तैयार करवाई रॉयल राजस्थान ऑन व्हील्स तो अपनी शुरुआत से ही पर्यटकों को खींच नहीं पा रही है, वहीं तीन-चार साल से पैलेस ऑन व्हील्स का आकर्षण भी देश-दुनिया में कम होने लगा है। ऐसे ही हालात रहे तो वह दिन दूर नहीं जब यह शाही सफर का महल पहियों से ही गायब हो जाए। हालांकि निगम व पैलेस ऑन व्हील्स के अफसरों का कहना है कि मंदी के चलते पर्यटकों की बुकिंग पर फर्क पड़ा है। इस वजह से इस बार पर्यटक शाही रेल में कम आए है। अगले सीजन के लिए पैलेस ऑन व्हील्स के लिए अभी से बुकिंग आने का दावा किया जा रहा है। पैलेस ऑन व्हील्स के महाप्रबंधक प्रदीप बोहरा का कहना है कि बीस फीसदी बुकिंग आ चुकी है और करीब पौने दो करोड़ रुपए अग्रिम भुगतान के तौर पर आरटीडीसी के खाते में आ भी गए है। मंदी के चलते पर्यटकों की आवक में कमी रही। अगले सीजन में शाही रेल फुल रहेगी।
पैलेस ऑन व्हील्स ने खोया आकर्षण
इस पर्यटन सीजन (2015-16) में पैलेस ऑन व्हील्स के प्रति पर्यटकों का आकर्षण काफी कम रहा या यह कहे कि अब तक सबसे खराब रिकॉर्ड रहा। पूरे सीजन में मात्र पचास फीसदी बुकिंग आई यानि शाही रेल खाली सी चलती रही। करीब 3500 की बुकिंग में मात्र 1800 सैलानी घूमने आए। शुरुआत में तो बुकिंग सत्तर से अस्सी फीसदी रही, लेकिन दिसम्बर के बाद बुकिंग कम होती गई। कई फेरों में तो पच्चीस-तीस पर्यटक ही आए। इससे खराब स्थिति रॉयल राजस्थान ऑन व्हील्स की रही। पूरे सीजन मात्र पांच सौ ही सैलानी इस शाही रेल में घूम पाए। पर्यटक नहीं मिलने के कारण अधिकांश फेरे रद्द ही करने पड़े। जिनमें 30 से अधिक पर्यटक थे, वे ही फेरे चलाए गए। जनवरी, 2009 से ही रॉयल राजस्थान की यही स्थिति रही है। सर्वाधिक 950 पर्यटक वर्ष 2012-13 में आए थे। इससे पहले भी पर्यटक कम ही थे और इसके बाद भी पर्यटकों की आवक कम ही रही। इस वजह से यह शाही रेल शुरु से ही निगम के लिए घाटे का सौदा रही है। इस बार पर्यटक नहीं आने से पैलेस ऑन व्हील्स की आय में भी कमी आई। इस बार पैलेस ऑन व्हील्स से मात्र सात करोड रुपए की आय हुई है। पूरे सीजन में करीब 22 करोड रुपए की आय हुई, जबकि पन्द्रह करोड रुपए का व्यय हुआ। जबकि पांच साल पहले तक यह शाही रेल 12 से 14 करोड रुपए की आय दे रही थी और इसकी आय से निगम भी लाभ में चल रहा था। जब से इसकी आय कम हुई है तब से निगम भी घाटे में आने लगा है। स्थिति यह हो गई कि अफसर कर्मचारियों को दो-तीन महीने से वेतन नहीं मिल रहा है।
सात हजार सैलानी घटे, 100 करोड का नुकसान
पैलेस ऑन व्हील्स का आकर्षण पांच साल से लगातार घट रहा है। हर सीजन में साढ़े तीन हजार तक पर्यटक घूमाने वाली यह शाही रेल सैलानियों की कमी से जूझने लगी है। आरटीडीसी के आंकड़ों के मुताबिक
2011-12 से 2015-16 तक पैलेस ऑन व्हील्स के दौरान करीब ग्यारह हजार सैलानियों ने शाही भ्रमण का लुत्फ उठाया, जबकि अगर शाही रेल में बुकिंग फुल रहती तो पर्यटक घूमते करीब 18 हजार। इन पांच साल में करीब सात हजार पर्यटक कम घूमने आए। इससे पैलेस ऑन व्हील्स का आकर्षण घटा, वहीं राजस्थान पर्यटन को भी नुकसान पहुंचा है। वहीं पर्यटक नहीं आने से करीब 80 से 100 करोड़ रुपए की राजस्व आय से भी राजस्थान पर्यटन विकास निगम को हाथ धोना पड़ा। 2011-12 में जहां 2883 पर्यटक शाही रेल में घूमे, वहीं 2014-15 में यह आंकडा 2014 और 2015-16 में 1800 तक सिमट गया। रॉयल राजस्थान ऑन व्हील्स की स्थिति तो और भी बदतर रही। पांच साल में रॉयल राजस्थान में करीब दस हजार पर्यटक घूम सकते हैं, लेकिन करीब साढ़े तीन हजार पर्यटक ही घूम पाए, जबकि इसके निर्माण में ही चालीस करोड़ रुपए की लागत आई थी। इस रेल के संचालन में आय से अधिक खर्चा उठाना पड़ रहा है।
रॉयल राजस्थान ने भी बिगाड़ा खेल
वर्ष 2008-09 तक पैलेस ऑन व्हील्स पर्यटकों से गुलजार रहती थी और इसमें अग्रिम बुकिंग रहती थी। इससे राजस्थान पर्यटन विकास निगम को काफी लाभ मिलता था। पैलेस ऑन व्हील्स की अग्रिम बुकिंगों को देखते हुए निगम ने राजस्थान में नई शाही रेल रॉयल राजस्थान ऑन व्हील्स बनाकर जनवरी, 2009 में इसे पटरी पर उतारा। हालांकि यह शाही रेल शुरु से ही बेपटरी रही। तमाम प्रयासों के बावजूद पर्यटकों को आकर्षित नहीं कर पाई। छह साल के आंकडे देखें तो इसमें मात्र तीस फीसदी बुकिंग ही आई। जबकि इसके निर्माण पर चालीस करोड़ रुपए खर्च कर दिए। इसके आने से पैलेस ऑन व्हील्स की मार्केटिंग पर भी प्रभाव पड़ा। एक ही निगम की दो शाही रेलें होने से टूरिस्ट बंट गए। जो आकर्षण पैलेस ऑन व्हील्स का रहा, उसकी धार भी कम होने लगी। आय से अधिक खर्चा होने और पर्यटक नहीं आने से रॉयल राजस्थान शुरु से ही घाटे का सौदा रही। कई फेरों में तो पर्यटक तक नहीं होते हैं।
गलत नीतियां व कमजोर मार्केटिंग
पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए राजस्थान पर्यटन विकास निगम ने टूर कंपनियों, एजेन्ट और पर्यटकों को अच्छे ऑफर भी दिए। सीधे ही ऑन लाइन बुकिंग करवाने पर दस फीसदी टूर पैकेज में छूट दी गई। कंपनियों व एजेन्टों को पर्यटक लाने के लिए 12 से 17 फीसदी तक कमीशन कर दिया, लेकिन इसके बाद भी शाही रेलों को पर्यटक नसीब नहीं हुए। बताया जाता है कि चार सालों से पर्यटकों को तरस रही दोनों शाही रेलों में पर्यटकों की कमी का एक कारण निगम की कमजोर मार्केटिंग और गलत नीतियां भी रही है। पैलेस ऑन व्हील्स और रॉयल राजस्थान ऑन व्हील्स की विदेशों में मार्केटिंग नहीं की गई। विदेशों में पहले की तरह आक्रामक रुप से फेयर, रोड शो नहीं किए गए। नई टूर कंपनियों व एजेन्टों को नहीं जोड़ा गया और ना ही अनुबंधित कंपनियों से उत्साहजनक रिजल्ट प्राप्त किए। बताया जाता है कि निगम प्रशासन समय-समय पर टेरिफ बढ़ाती रही, लेकिन सुविधाओं की तरफ ध्यान नहीं दिया। पहले हर कूपे में कर्मचारी तैनात रहते थे, जो पर्यटकों की सुविधाओं पर विशेष ध्यान रखते थे। अब इन्हें हटा दिया गया। तीन दशक पुरानी पैलेस ऑन व्हील्स में आज भी कई तकनीकी खामियां रहती है। वक्त के अनुरुप इस शाही रेल को डवलप नहीं किया जा रहा है। अनुभवी अफसरों व कर्मचारियों को शाही रेलों से दूर रखा जा रहा है। शाही रेलों की मार्केटिंग टीम भी कमजोर है। निगम की ऑन लाइन बुकिंग व्यवस्था हमेशा खराब रहती है, जिससे सीधे बुकिंग करके दस फीसदी का लाभ चाहने वाले पर्यटकों को मजबूरन एजेन्टों व कंपनियों के यहां जाना पड़ता है। वे इन्हें कोई छूट व लाभ नहीं देते है। शाही रेलों की बुकिंग और दूसरे कार्यों में घपलों, एसीबी के छापे जैसे मामलों के चलते भी पर्यटन क्षेत्र में इनकी साख गिरी है। अब होटलों के बेचने, कर्मचारियों को वेतन नहीं मिलने और निगम के बंद होने की सूचनाओं से भी बदनामी हो रही है।
दूसरी शाही रेलों में पर्यटक नहीं
राजस्थान की पैलेस ऑन व्हील्स और रॉयल राजस्थान ऑन व्हील्स ही नहीं देश की दूसरी शाही रेलों में भी इस बार पर्यटकों की कमी रही। भारतीय रेलवे की ओर से संचालित महाराजा एक्सप्रेस, महाराष्ट पर्यटन विभाग की डेक्कन ओडिसी, कर्नाटक पर्यटन विभाग की गोल्डन चेरिएट शाही रेल में भी चालीस से साठ फीसदी सैलानियों की कमी रही। खास बात यह है कि इन तीनों शाही रेलों की सात दिन की यात्रा में राजस्थान के जयपुर, उदयपुर जैसे शहर शामिल रहते हैं। इसी तरह फेयरी क्वीन रेल भी पर्यटकों को तरस रही है। भाप के इंजन की यह रेल आजादी से पहले की है। दिल्ली से अलवर के बीच सप्ताहांत में चलने वाली इस रेल का भी पहले काफी क्रेज था, लेकिन सुविधाओं और मार्केटिंग पर ध्यान नहीं देने से पर्यटकों की आवक घटी। वहीं अलवर में बाघ खत्म होने के कारण भी पर्यटकों का मोह काफी कम हो गया था। हालांकि अब अलवर में रणथंम्बौर से बाघ शिफ्ट करने से वन्य क्षेत्र में पर्यटन को फिर से पंख लगने लगे हैं। इसका फायदा इस रेल को भी मिलेगा।

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