जयपुर. रामगढ़ बांध और बाणगंगा नदी से विशनपुरा गांव के इस रघुनाथ मंदिर का गहरा रिश्ता है। सन् 1924 में जलझूलनी एकादशी को जब रामगढ़ बांध पहली बार भरा। यह मंदिर और विशनपुरा गांव डूब में आने से जलमग्न हो गया। पूरे 75 साल यह रघुनाथ मंदिर और इसके प्रहरी बालाजी जलमग्न रहे। जलचर सर्पों का यहां वास रहा।
रामगढ़ बांध के निर्माण से पहले की अनेक सदियां इस रघुनाथ मंदिर के स्वर्णिम युग की साक्षी रही हैं। बाणगंगा नदी के तट पर विशनपुरा गांव की सरहद पर विशन घाट होता था। प्राचीन काल में मांच प्रदेश के निवासी इसी घाट पर अपने परिजनों की अस्थि- विसर्जन करते थे। सदियों का यह क्रम जमवारामगढ़ में मध्ययुग तक जारी रहा। विशनघाट पर कई प्राचीन मंदिर थे जो बाणगंगा की किसी बाढ़ में सदियों पहले भूमि में दफन हो गये। लेकिन यह रघुनाथ मंदिर और इसके रक्षक बालाजी अडिग रहे।
आज भी यह मंदिर अडिग खड़ा है। कुछ वर्ष पहले इसके पैतृक पुजारी चतुर्वेदी परिवार ने इसका जीर्णोद्धार कराया है। रामगढ़ बांध निर्माण के लिए इनके पूर्वजों ने अपनी सैंकड़ों बीघा भूमि सहर्ष सौंप दी थी। खोले के हनुमानजी के परम संत-साधक स्वर्गीय राधेलाल चौबे इसी पुजारी कुटुम्ब में से थे। इसी परंपरा में पुजारी चौबे परिवार रघुनाथ मंदिर और बालाजी की उपासना कर रहा है। हर माह यहां अखण्ड रामायण होती है।
लेकिन प्राचीन रघुनाथ मंदिर कुछ और भी अनुभूति कराता है। ‘ राम-अवतार ‘ वैराग्य व दिव्यत्व की कथा है। मानव-मन के लिए ‘ राम ‘ सर्वाधिक प्रेरणादायी और हनुमान अतुलित बल व साहस के प्रतीक हैं। इस रघुनाथ मंदिर की नीरवता वैराग्य और दिव्यत्व दोनों की अनुभूति देती है और बालाजी अंर्तशक्ति व साहस की प्रेरणा।
किंवदती है कि यह महाभारतकालीन है तो कोई इसके स्थापत्य को दो हजार वर्ष से अधिक प्राचीन बताता है। पुरातत्ववेत्ताओं के लिए जमवारामगढ़ क्षेत्र के ऐसे अनेक प्राचीन मंदिर शोध का विषय हैं। जहां इतिहास पसरा पड़ा है।
इतिहास से परे, हम यहां से हर सांझ सूर्यास्त के नयनाभिराम दृश्य की बात भी कर रहे हैं। मंदिर से अरावली की पहाड़ियों की ओट में छिपते सूरज का नजारा बहुत सम्मोहक होता है। सांझ को यहां कुछ घड़ी बैठना और प्रकृति को निहारना…’ मानव- मन की लौ को वैराग्य व दिव्यत्व से जोड़ता है। ‘ यही ‘ राम- अवतार ‘ का मूलतत्व है।

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