गणेश चतुर्थी: क्यों आैर कैसे मनाएं? 

भगवान गणेश बुद्धीके देवता भी हैं । गणपति सभीको आनंद देनेवाले देवता हैं । ऐसे देवताका उत्सव हमें शास्त्रके अनुसार मनाना चाहिए, तभी हमपर गणपति देवताकी कृपा होगी । आज हम शास्त्रानुसार गणेशोत्सव कैसे मनाएं एवं गणेशोत्सवके अनाचार कैसे बंद करें, यह देखेंगे । 

आखिर क्यों मनाते है गणेशोत्सव ?

श्री गणेशोत्सवकाल में नित्य की तुलना में पृथ्वी पर गणेशतत्त्व १ सहस्र गुना अधिक कार्यरत रहता है । इस काल में की गई श्री गणेशोपासना से गणेशतत्त्व का लाभ अधिक होता है ।

गणेशोत्सव को नयी मू्र्ति क्यों लायी जाती है ?

गणेश चतुर्थी के दिन पूजाघर में गणपति की मूर्ति होते हुए भी नई मूर्ति लाते हैइसका उद्देश्य हैश्री गणेश चतुर्थी के समय पृथ्वी पर गणेशतरंगें अत्यधिक मात्रा में आती हैं । उनका आवाहन यदि पूजाघर में रखी गणपति की मूर्ति में किया जाए तो उसमें अत्यधिक शक्ति की निर्मिति होगी । इस ऊर्जित मूर्ति की उत्साहपूर्वक विस्तृत पूजाअर्चना वर्षभर करना अत्यंत कठिन हो जाता है । उसके लिए कर्मकांड के कडे बंधनों का पालन करना पडता है । इसलिए गणेश तरंगों के आवाहन के लिए नर्इ मूर्ति उपयोग में लाई जाती है । तदुपरांत उसे विसर्जित किया जाता है ।

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दूब आैर गुडहल के पुष्प ही क्यों जिस मूर्ति की हम पूजा करते हैंउसके देवत्त्व में वृद्धि हो एवं चैतन्य के स्तर पर हमें या पूजक को उसका लाभ हो । इसलिए उस देवता को उनका तत्त्व अधिक से अधिक आकर्षित करनेवाली वस्तुएं चढाना उपयुक्त होता है । गुडहल के पुष्प में विद्यमान रंगकणों एवं गंधकणों के कारण ब्रह्मांडमंडल के गणेशतत्त्व के पवित्रक उसकी ओर आकर्षित होते हैं । इसलिए गणेशजी को गुडहल के पुष्प अर्पित होते है । दूर्वा में गणेशतत्त्व आकर्षित करने की क्षमता सर्वाधिक होती हैअतः श्री गणेश को दूर्वा भी चढाते है । दूर्वा अधिकतर विषम संख्या में (न्यूनतम 3 अथवा 5, 7, 21 आदिअर्पण करते हैं ।

गणेशउत्सव में यह भूलकर भी ना करें 

कागदकी लुगदीसे बनाई गई मूर्ति सबसे अधिक प्रदूषण करती है, यह स्पष्ट हुआ है । इसलिए कि शास्त्रानुसार चिकनी मिट्टीकी मूर्ति लाएं । इस मूर्ति में वातावरणमें विद्यमान गणेश तरंगें आकर्षित करनेकी क्षमता अधिक होती है । वह क्षमता कागदमें नहीं है ।

श्री गणेशजी को लाते समय सिनेमाके गीत लगाए जाते हैं । ऐसे गीत लगाने तथा उनकी तालपर चित्र-विचित्र हावभाव करते हुए नाचना अत्यंत अयोग्य है । ऐसेमें अनावश्यक बोलना तथा पटाखे लगाना भी अयोग्य है ।

हम देवताओंकी आरती करते हैं । आरती अर्थात भगवानको आर्ततासे पुकारना । चिल्लाते हुए आरती करना, बीचमें ही कोई शब्द ऊंचे स्वरमें एवं विचित्र आवाजमें बोलना, सिनेमाके गीतोंकी चालपर आरती बोलना इत्यादि टालें ।

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यह अवश्य करें !

नैसर्गिक रंगोंका उपयोग की हुई मूर्तिका ही उपयोग करें; वह इसलिए कि इसीसे पर्यावरणकी रक्षा होगी ।

श्री गणेशजी की मूर्ति चित्र-विचित्र आकारोंमें न बनाकर उनका जो मूल रूप है, उसी रूपमें मूर्ति लाएं ।

सिनेमाके गीतोंपर नृत्य करनासिनेमाके गीतगायनके कार्यक्रमसंगीत कुर्सी इत्यादि कार्यक्रम न रखते हुए गणपति स्तोत्रपठनकी स्पर्धा आयोजित करें ।

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